पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए फल्गू तीर्थ Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors

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Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors
आज समाज डिजिटल, अम्बाला:
Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors :
अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान के लिए मशहूर फल्गू मेला इस बार के बाद 2028 में भरेगा। ऐसे में अगले मेले के इंतजार के लिए श्रद्धालुओं को 13 साल का इंतजार करना पड़ेगा। अभी तक यह मेला तीन से चार साल में भरता रहा है।
Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors

फल्गू मेले का संयोग वर्ष 2028 में होगा

फल्गू मेला एक विशेष संयोग के आधार पर लगता है। जब भी अश्विन मास के श्राद्धों में सोमवार को अमावस्या आती है, तभी फल्गु मेला भरता है। फल्गु मेला 2001, 2005, 2008 एवं 2012 में भरा।  इसके बाद श्राद्धों में फल्गू मेले का संयोग वर्ष 2028 में होगा। इतनी लंबा इंतजार होने के चलते इस बार मेले में भारी भीड़ उमड़ने के आसार हैं। वर्ष 2028 के बाद 2032, 2035, 2039 एवं फिर 2049 में यह मेला भरेगा।

यह है मेले के पीछे की कवाहत Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors

कहा जाता है कि त्रेता युग में महर्षि फल्क यहां तपस्या करते थे। उस समय गयाजी में एक गयासुर नामका दैत्य था। उसने यह ऐलान किया था कि जो कोई उन्हें युद्ध में हरा देगा। वह अपनी पुत्रियों का विवाह उसके साथ कर देगा। ऐलान के बाद महर्षि फल्क ने उन्हें युद्ध में पराजित कर दिया। कन्यादान के रूप में गयासुर ने वहां मिलने वाले पुण्य का महत्व महर्षि फल्क को दे दिया।
इसके बाद से फरल गांव में फल्गु मेला भरता है। यहां मेले के समय पिंडदान कराने से पूर्वकाें को शांति मिलती है। पिंडदान कराने वाले को भी पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसी भी कहावत है कि महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने अपने पितरों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां पिंडदान कराया था।
Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors

गा पादोदकं विष्णो: फल्गुहृादि गदाधर:। स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद् गंगाधिकं विदु:।। अर्थात् गंगा भगवान विष्णु की पादोदक स्वरूप है किंतु फल्गु तो स्वयं आदि गदाधर स्वरूप है। उनका महात्म्य गंगा से अधिक माना गया है।

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इस तीर्थ के महात्म्य विस्तार में आगे लिखा है कि जो व्यक्ति एक लाख अश्वमेध यज्ञ करता है वह भी इतना फल प्राप्त नहीं करता जितना मनुष्य फल्गु तीर्थ में स्नान कर लेने से प्राप्त कर लेता है। फल्गु तीर्थ में स्नान करने के बाद मनुष्य को तर्पण एवं पिंड श्राद्ध कर्म अपने गृह्यसूक्त के अनुसार ही करना चाहिए।

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इस क्षेत्र में मान्यता है कि फल्गु तीर्थ में स्नान कर आदि गदावर देव दर्शन करने पर मनुष्य अपने उद्धार के साथ-साथ अपने पूर्व की दस पीढि़यों का उद्धार करता है। इस पावन तीर्थ पर फल्गु ऋषि के मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य अभी हाल ही में मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा के प्रयास से संपूर्ण हुआ है।

इस प्रसिद्ध तीर्थ पर अनेक सुंदर मंदिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मंदिर है जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। घाट के पास ही एक प्राचीन वट वृक्ष है जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। यहीं पर राधा-कृष्ण का मंदिर भी है जो नागर शैली में बना हुआ है।

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