कोरोना महामारी काल में जहां लोगों के रोजगार छिन रहे हैं। बीमारी से लड़ने में तमाम लोगों के जेवरात और जमीन बिक रही है। वहीं, कुछ पूंजीपतियों की आय और संपत्ति दोनों में दिन दूना रात चौगुना बढ़ रही है। मौकापरस्त लोग एक दूसरों को लूटने में लगे हैं। उस दौर में देश के स्वास्थ मंत्री डॉ. हर्षवर्धन महामारी से अधिक अपने नेता की क्षवि बनाने में लगे हैं। उन्होंने ट्वीट किया, “कोरोना काल में भी पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 14 मई 2021 को समाप्त सप्ताह में 56.3 करोड़ डॉलर बढ़कर 590.028 अरब डॉलर हो गया। यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक नीतियां सही दिशा में हैं”। देशवासियों को सेहतमंद रखने के लिए जिम्मेदार मंत्रालय के प्रमुख डॉ हर्षवर्धन, यह नहीं बताते कि बगैर जांच, इलाज और खराब वित्तीय हालत के चलते दो महीने में ही छह लाख से अधिक लोगों ने दम तोड़ दिया। सरकारी आंकड़ों में तीन लाख कोरोना मरीजों ने भी दम तोड़ा है। दो महीने में सवा करोड़ लोग बेरोजगार हो गये हैं। कोरोना काल में 10 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगारी और गरीबी की भेंट चढ़ गये। टीका के प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री का फोटो लगाने वाले उनके मंत्रालय ने राज्यों के हिस्से का स्वास्थ बजट खुद ही खर्च कर लिया है। युवाओं को बचाने के लिए केंद्र सरकार के पास अब न बजट है और न वैक्सीन। राज्य सरकारें और युवा दोनों लाचार दिख रहे हैं।
वैक्सीन बनाने पर एक भी रुपया खर्च न करने वाली हमारी सरकार, आपदा में अवसर लगातार तलाशती रही। उसने प्रचार के बूते क्षवि बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब सरकार के पास इतना धन था, तब भी, उसने, उसे कुर्सी पर बैठाने वाली जनता को कोई राहत नहीं दी। सत्ता रईशी में जी रही है। उसके लिए राजमहल भी बन रहा है और राज दरबार भी। सिर्फ प्रधानमंत्री की सुरक्षा में रोजाना पौने दो करोड़ रुपये और प्रचार पर तीन करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते हैं। विश्व की सबसे महंगी गाड़ियां और प्लेन उनके काफिले में हैं। अन्य खर्चे भी रोजाना एक करोड़ रुपये से अधिक हैं। देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय लगातार गिर रही है। रईश और भी रईश हो रहे हैं। गरीब और मध्यमवर्ग आत्महत्या की ओर बढ़ चले हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में आत्महत्याओं में 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसमें सबसे अधिक किशोर और युवा 50 फीसदी हैं। जब देश को सबसे युवा प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी मिले थे, तो उम्मीद जागी थी। उन्होंने युवाओं के भविष्य को सशक्त बनाने के लिए कंप्यूटर और आईटी क्रांति के साथ ही युवा कार्यक्रमों को संचालित किया था। उनके प्रयासों का नतीजा ही था कि 2014 का लोकसभा चुनाव आईटी और औद्योगिक क्रांति के बूते लड़ा गया। आईटी सेक्टर के साथ ही अन्य उद्योग इतनी तेजी से बढ़े थे, जिससे योग्य युवाओं के आगे रोजगार की लाइन लगी थी। अब वही युवा भिखारी की तरह झोली फैलाये खड़े हैं।
टीका बनाने वाली हमारी तीनों सरकारी कंपनियों से काम नहीं लिया गया, जिससे युवाओं का वैक्सिनेशन कार्यक्रम टीके के अभाव में रुका हुआ है, जबकि इस बार मरने वालों में युवा सबसे ज्यादा हैं। आपदा में अवसर तलाशने वालों ने युवाओं में रोजगार की उम्मीद जगाने वाले दो दर्जन सार्वजनिक उद्यम बेच दिये। 224 बैंक शाखायें बंद कर दी गईं। बेरोजगारी और फिर आर्थिक तंगी ने युवाओं को मानसिक रूप से विकृत करने का काम किया है। विदेशी और देशी मुद्रा भंडारण का रिकॉर्ड बताने वाली सरकार मौत के आंकड़े छिपाने में लगी है। हर राज्य में मौत के आंकड़े 400 से 500 फीसदी तक कम दिखाये जा रहे हैं। यूपी के शिक्षक संघ ने 1621 शिक्षकों की पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने से मृत्यु का विवरण सरकार को सौंपा, तो सरकार ने कहा सिर्फ तीन मरे हैं। आपदा में अवसर तलाशती वह कंपनियां वेंटिलेटर बनाकर सप्लाई कर आईं, जिन्हें इसका अनुभव ही नहीं था। नतीजतन 65 फीसदी खराब वेंटिलेटर की आपूर्ति हुई। पीएम केयर फंड से इसका भुगतान भी हो गया। जिन्हें आक्सीजन प्लांट लगाने का ठेका दिया, वे कंपनियां लापता हो गईं। लाखों लोग आक्सीजन के अभाव में मर गये। शर्मनाक हालात तो तब हुए जब कोरोना काल के दौरान पेट्रोलियम के दाम 21 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिये गये। खाद्य पदार्थों की जमाखोरी को सरकारी संरक्षण मिलने के कारण खाने-पीने के सामान की कीमत 100 से 200 फीसदी तक बढ़ गई है। जहां किसानों के खेत में फल और सब्जियां सड़ रही हैं, वहीं मंडी में इनके दाम दोगुने हो गये हैं। मौकापरस्त धंधेबाजों ने कोरोना काल को आपदा में अवसर माना है, जबकि सेवा भाव वाले लोग ऐसे वक्त में मानवता के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर रहे हैं। जहां युवा कांग्रेस अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास बगैर किसी भेदभाव के मरीजों की जान बचाने में लगे हैं, वहीं भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या मुस्लिम युवाओं को नौकरी से निकलवाकर एजेंडा सेट करने में।
वेद कहते हैं “मनुर्भव:”। हम मानव बनें और मानवता को धारण करें। दूसरों के कष्टों को अपना कष्ट समझकर सहायता करें। कोरोना काल में जो देखने को मिल रहा है, वह दुखद है। मानवता को अपनाने के बजाय अधिकतर लोग और सत्ता में अवसर खोजते मौकापरस्त बन रहे हैं। वे अपने लाभ के लिए न सिर्फ कफन चोरी कर रहे हैं बल्कि लोगों को कफन उढ़ाने के लिए विवश कर रहे हैं। सत्ता भी उसी दिशा में ढकेल रही है। ऐसे में गुरुद्वारे, चर्च और मस्जिदों सहित कुछ मंदिर भी सेवा के लिए आगे आये हैं मगर जिन्हें सबसे आगे होना चाहिए, वो सबसे पीछे खड़े हैं। धर्म की राजनीति करने वाले ही अपने धर्म से नहीं सीख रहे, तो दूसरों से क्या उम्मीद की जाए।
जय हिंद!
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं।)
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