Religion: नाथ पंथ का समरसता संदेश, सनातन धर्म में समरसता का भाव समाहित

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Religion : नाथ पंथ का समरसता संदेश, सनातन धर्म में समरसता का भाव समाहित
Religion : नाथ पंथ का समरसता संदेश, सनातन धर्म में समरसता का भाव समाहित

Sanatan Dharma, आज समाज (डॉ दिलीप अग्निहोत्री): सनातन धर्म में समरसता का भाव समाहित है। समय-समय पर अनेक मनीषियों ने इसके अनुरूप आचरण का संदेश दिया। नाथ सम्प्रदाय में भी समरसता को बहुत महत्व दिया गया। महान संत महंत अवैद्यनाथ श्री राम कथा के माध्यम से जन मानस को समरसता की प्रेरणा देते हैं और उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ इसी भाव से कार्य करते हैं।

भारतीय दर्शन में जीवन का चौथा चरण संन्यास आश्रम

भारतीय दर्शन में जीवन का चौथा चरण संन्यास आश्रम होता है, लेकिन आध्यात्मिक प्ररेणा से किसी भी अवस्था में संन्यास ग्रहण किया जा सकता है। इस परंपरा में बालक, युवा और वृद्ध सभी लोग सम्मिलित हैं। हमारी परंपरा में इस प्रकार के संन्यास जीवन पर अमल करने वाले अनगिनत उदाहरण हैं। संन्यास, आश्रम के साथ समाज सेवा को जोड़कर चलने की भी परंपरा रही है। इस मार्ग का अनुसरण करने वालों ने निजी जीवन में संन्यास को अपनाया।

साथ ही इसमें समाज सेवा का भी समावेश किया। इस प्रकार के उदाहरणों की भी कमी नहीं है। योगी आदित्यनाथ संन्यास की इसी परंपरा पर चल रहे हैं। वह निजी जीवन में संन्यास आश्रम की मयार्दाओं का अमल करते हैं। इसके साथ ही वह समाज सेवा के प्रति भी समर्पित है। संन्यास और समाज सेवा का सामंजस्य उनके आचरण में परिलक्षित होता है। संन्यास व समाज की यह भावभूमि उन्हें लोगों के कष्ट पर व्यथित करती है।

आपदा का वर्णन कर छलक जाती हैं योगी आदित्यनाथ की आंखें

पूर्वी उत्तर प्रदेश की संचारी रोग आपदा का लोकसभा में वर्णन करते हुए योगी आदित्यनाथ की आंखें छलक जाती है। मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस समस्या के समाधान पर ध्यान दिया और मामले में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली है। कई क्षेत्रों में सत्तर से अस्सी प्रतिशत तक सुधार हुआ है। अब भी सुधार की प्रक्रिया जारी है। समाज के प्रति सीएम योगी की संवेदना दिखाई देती है।

योगी आदित्यनाथ के पूर्व आश्रम के पिता का निधन होता है। उन्हें सूचना मिलती है, लेकिन प्रदेश में कोरोना की आपदा है और वह आपदा प्रबंधन की बैठक जारी रखते हैं। मन की व्यथा को रोकते हैं, आंसू पोछ लेते हैं। जरुरतमंदों के भोजन व इलाज आदि की व्यवस्था करते हैं। प्रदेश की जनता के प्रति योगी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं और वह पूर्व आश्रम पिता के अंतिम संस्कार में नहीं जाते है।

केंद्र की योजनाओं को प्राथमिकता पर लागू किया

योगी आदित्यनाथ ने केंद्र की योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वित किया। इसका सकारात्मक परीणाम दिख रहा है।हमारा देश अति विशाल एवं समृद्ध संस्कृति वाला है परन्तु अनेकता में एकता इसके मूल में समाहित है। अपनी विविधता के लिए भारत पूरे विश्व में विख्यात है। जैसे बगीचे में फूलों के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं और इकट्ठा होकर एक माला का रूप लेते हैं उसी प्रकार सभी प्रदेश मिलकर भारत माता की आकृति का रूप लेते हैं और हम सब उसी भारत माता के सपूत हैं।

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी

विभिन्न भाषा और संस्कृति के बावजूद सभी भाषाओं में एकरूपता दिखाई पड़ती है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। भाषा और भेष अलग-अलग हो सकते हैं पर हम सब की संस्कृति की मूल धारणा एक है। योगी आदित्यनाथ ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ह्यसमरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का अवदानह्ण विषयक संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।

सदैव जोड़ने वाली रही है संतों की परंपरा

गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने संतों और ऋषियों की परंपरा को समाज और देश को जोड़ने वाली परंपरा बताते हुए आदि शंकर का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषियों संतों की परंपरा सदैव जोड़ने वाली रही है। इस संत-ऋषि परंपरा ने प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है। संत परंपरा ने समाज में छुआछूत और अस्पृश्यता को कभी महत्व नहीं दिया। यही नाथपंथ की भी परंपरा है। नाथपंथ ने प्रत्येक जाति,मत, मजहब,क्षेत्र को सम्मान दिया। सबको जोड़ने का प्रयास किया।

आध्यात्मिक उन्नयन पर जोर

नाथपंथ ने काया की शुद्धि के माध्यम से एक तरफ आध्यात्मिक उन्नयन पर जोर दिया। समाज के हरेक तबके को जोड़ने के प्रयास किए। महायोगी गुरु गोरखनाथ जी की शब्दियों,पदों और दोहों में समाज को जोड़ने और सामाजिक समरसता की ही बात है। उनकी गुरुता भी सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रतिष्ठित है।

मलिक मुहम्मद जायसी ने कहा है, बिनु गुरु पंथ न पाइये

मलिक मुहम्मद जायसी ने भी कहा है बिनु गुरु पंथ न पाइये,भूलै से जो भेंट,जोगी सिद्ध होई तब, जब गोरख सौं भेंट। संत कबीरदास जी भी उनकी महिमा का बखान करते हैं तो गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग निगम नियोग सों। संत साहित्य की परंपरा, इसकी शृंखला गुरु गोरखनाथ के साहित्य से आगे बढ़ती है। नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न सिर्फ देश के हर कोने में ही नहीं हैं बल्कि विदेशों में भी हैं।

नाथपंथ की परंपराएं आज भी विद्यमान

तमिलनाडु के सुदूर क्षेत्रों की नाथपंथ की पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। यहां गोरखनाथ जी से जुड़े अनेक साधना स्थल और नाथपंथ की परंपराएं आज भी विद्यमान हैं। कर्नाटक की परंपरा में जिस मंजूनाथ का उल्लेख आता है, वह मंजूनाथ गोरखनाथ जी ही हैं। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर दास की परंपरा भी मत्स्येंद्रनाथ जी, गोरखनाथ जी और निवृत्तिनाथ जी की कड़ी है। महाराष्ट्र में रामचरितमानस की तर्ज पर नवनाथों की पाठ की परंपरा है। पंजाब,त्रिपुरा, असम,बंगाल आदि राज्यों के साथ ही वृहत्तर भारत और नेपाल,बांग्लादेश, तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत अनेक देशों में नाथपंथ का विस्तार देखने को मिलेगा।

नाथपंथ के योगियों ने देश पर आए खतरे के प्रति जागरूक किया

देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप नाथपंथ ने अपनी भूमिका को सदैव समझा। जब देश पर बाहरी आक्रमण शुरू हो गए थे तब नाथपंथ के योगियों ने सारंगी वादन के जरिये समाज को देश पर आए खतरे के प्रति जागरूक किया। महायोगी गोरखनाथ जी ने गोरखपुर को अपनी साधना से पवित्र किया। संतों और ऋषियों की समाज और देश को जोड़ने वाली रही है। प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है। संत परंपरा ने समाज में छुआछूत और अस्पृश्यता को कभी महत्व नहीं दिया। यही नाथपंथ की भी परंपरा है।

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