वेल्कम हरियाणा से हुआ हरियाणा दिवस राज्यस्तरीय उत्सव रत्नावली का आगाज
Kurukshetra News (आज समाज) कुरुक्षेत्र : हरियाणवी संस्कृति के संरक्षण व युवाओं को व्यवसाय से जोड़ने में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का रत्नावली महोत्सव बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। इस महाकुंभ में जहां युवा पीढ़ी अपनी धरोहर व संस्कृति से रूबरू हो रही हैं, वहीं युवा अपने स्वयं के उत्पादों को क्राफ्ट मेले में प्रदर्शित कर स्वावलम्बी भारत का सपना साकार कर रहे हैं। यह विचार राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र के निदेशक प्रो. बीवी रमन्ना रेड्डी ने शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आॅडिटोरियम हॉल में हरियाणा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित 37वें राज्य स्तरीय रत्नावली महोत्सव उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पहुंचने पर प्रो. बीवी रमन्ना रेड्डी, विशिष्ट अतिथि केडीबी के मानद सचिव उपेन्द्र सिंघल व राष्ट्रपति अवार्डी प्रेम देहाती का कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा व कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा सहित अन्य अधिकारियों ने उनका ढोल नगाड़ो व हरियाणवी लोकधुनों के साथ स्वागत व अभिनंदन किया।
इसके बाद सभी अतिथियों व अधिकारियों ने सरस्वती मां की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत् रूप से महोत्सव का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि रत्नावली महोत्सव में देश को कई बड़े कलाकार दिए हैं। इसी मंच से महान गजल गायक जगजीत सिंह, प्रसिद्ध कलाकार यशपाल शर्मा, मेघना मलिक सहित अन्य बड़े कलाकार निकले हैं। पानीपत की छात्रा हिती ने वेलकम हरियाणा व एसडी कॉलेज, पानीपत के छात्रों ने हरियाणा के पारंपरिक लोकनृत्य लूर की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
हरियाणवी संस्कृति को नई पहचान दिला रहा रत्नावली
प्रो. बीवी रमन्ना रेड्डी ने कहा कि यह महोत्सव जहां हरियाणवी संस्कृति को समृद्ध करने का कार्य कर रहा है, वहीं एक दूसरे से संवाद कायम करने के साथ-साथ छात्रों को नई चीजे सीखने के लिए भी प्रेरित करता है। नृत्य व संगीत से जहां भगवान की प्राप्ति होती है वहीं छात्रों में रचनात्मक कौशल का भी विकास होता है। सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि रत्नावली महोत्सव 1985 में 8 विधाओं व 300 कलाकारों के साथ आरंभ हुआ था और यह यात्रा अब 34 विधाओं और 3000 से अधिक युवा कलाकारों के साथ हरियाणवी संस्कृति को देश-विदेश में समृद्ध करने के साथ एक नई पहचान भी दिला रहा है।
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