Ratnavali In Kurukshetra : रत्नावली के विकास में महिलाओं की अहम् भूमिकाः प्रो. सुदेश छिकारा

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Important role of women in the development of Ratnavali Prof. sudesh chikara
  • रत्नावली ने हरियाणवी संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया: प्रो. सुदेश छिकारा
  • भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुदेश छिकारा ने तीसरे दिन दूसरे सत्र में मुख्यातिथि के रूप में की शिरकत
  • राधाकृष्णन सदन में वाद्य यंत्र प्रतियोगिता का आयोजन

(Ratnavali In Kurukshetra) कुरुक्षेत्र। हरियाणा दिवस के उपलक्ष्य में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे रत्नावली महोत्सव ने हरियाणवी संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। रत्नावली के विकास में महिलाओं की अहम् भूमिका है। पूरे विश्व में हरियाणवी संस्कृति का डंका बज रहा है। यह विचार भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुदेश छिकारा ने तीसरे दिन दूसरे सत्र में ऑडिटोरियम हाल में चल रहे ग्रुप डांस रसिया में बतौर मुख्यातिथि के रूप में व्यक्त किए।

प्रो. सुदेश छिकारा ने कहा कि हरियाणवी संस्कृति के उत्थान एवं संरक्षण में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का विशेष योगदान है। रत्नावली उत्सव हरियाणवी संस्कृति को संरक्षित करने के साथ -साथ हरियाणा के सांस्कृतिक गौरव को बढ़ा रहा है। अपने विश्वविद्यालय में आकर उन्होंने अच्छा लग रहा है। खासतौर पर दर्शकों से खचाखच भरा ऑडिटोरियम हाल अच्छा लगा। इसे देखकर लगता है कि रत्नावली उत्सव अपने चरम पर है और दर्शकों में इस महोत्सव को लेकर भारी उत्साह है। उन्होंने इससे पहले कुवि कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा ने भगत फूल महिला महाविद्यालय, खानपुर कलां सोनीपत की कुलपति प्रो. सुदेश छिकारा तथा डॉ. पवन आर्या, उपनिदेशक आर्ट्स एंड कल्चर अफेयर्स का रत्नावली महोत्सव में पहुंचने पर स्वागत व अभिनन्दन किया और कार्यक्रम के समापन पर स्मृति चिह्न देकर सम्मान किया।

प्रो. सुदेश छिकारा ने ऑडिटोरियम हॉल के प्रांगण में लगे क्राफ्ट मेले का अवलोकन किया और प्रतिभागियों की खुले मन से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि रत्नावली महोत्सव हरियाणा की पहचान है और इस महोत्सव में महिलाओं की भागीदारी इस महोत्सव को और ज्यादा आकर्षक और बेहतरीन बना देता है।

इस मौके पर कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एआर चौधरी, आर्ट एंड कल्चरल अफेयर्स के उपनिदेशक डॉ. पवन आर्य, प्रॉक्टर प्रो. रमेश भारद्वाज, युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक प्रो. विवेक चावला, लोक सम्पर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया, मुख्य सुरक्षा अधिकारी प्रो. अनिल गुप्ता, प्रो. जसबीर ढांडा, उप-निदेशक डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. ज्ञान चहल सहित शिक्षक, कर्मचारी व विद्यार्थी मौजूद थे।

ढोलक और बीन ने हरियाणवी संस्कृति नई पहचान दी

हरियाणा के सांस्कृतिक महोत्सव रत्नावली के तीसरे दिन राधाकृष्णन सदन में वाद्ययंत्र प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में मुख्यातिथि के रूप में एस. राठौर, उस्ताद मुस्तफा हुसैन एवं एच.सी. राय रहे। उन्होने प्रतियोगिता आरंभ होने से पूर्व सभी प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत समृद्ध और विविध है, जो राज्य के इतिहास और परंपराओं को दर्शाती है। यदि हम वाद्य संगीत में हरियाणा का एक अद्वितीय योगदान है। लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शनों में उपयोग किया जाने वाला एक पारंपरिक वाद्य ढोलक जो हरियाणा की लोक संगीत विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन वाद्यों का उपयोग अक्सर पारंपरिक हरियाणवी लोक गीतों और नृत्यों में किया जाता है जैसे कि लोक नृत्य और रास लीला।

इस अवसर पर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टैक्नोलॉजी जींद के प्रतिभागी दक्ष, राजकीय कॉलेज नारायणगढ़ के प्रतिभागी देवेंद्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रतिभागी मनन, आरकेएसडी कॉलेज कैथल के प्रतिभागी राहुल और एसडी कॉलेज पानीपत के प्रतिभागी अभिषेक ने ढोलक पर अपनी शानदार प्रस्तुति दी। सभी प्रतिभागियों ने ढोलक बीन बजाकर हरियाणवी संस्कृति को दर्शाय व ढोलक व बीन बजाकर सबको प्रसन्न किया।

एक सप्ताह में हरियाणा धरोहर संग्रहालय को देखने पहुचे 14000 से अधिक दर्शक

कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हरियाणा संस्कृति को सहजने, संवारने और आगे बढ़ाने के लिए 37वां ‘रत्नावली सांस्कृतिक‘ महोत्सव चल रहा है वही दूसरी तरफ हरियाणा समृद्व संस्कृति को समेटे हुए हरियाणा धरोहर संग्राहलय में एक सप्ताह से दर्शकों की भीड़ उमड़ रही हैं। इस अवसर पर धरोहर संग्रहालय के क्यूरेटर डॉ. गुरचरण सिंह ने बताया कि धरोहर धरोहर संग्रहालय को देखने वाले दर्शकों जिसमें विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थीगण, विभिन्न कॉलेजों विद्यार्थीगणों के अतिरिक्त दूसरे दर्शकों में इजाफा हुआ। उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह में 13908 दर्शक हरियाणा धरोहर संग्रहालय पहुंच चुके हैं। उन्होने बताया कि हरियाणा संस्कृति को समेटे और समृद्ध धरोहर संग्रहालय को देखने के लिए हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों से दर्शक पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि जून में 14174 दर्शक, जुलाई में 7819 दर्शक, अगस्त में 1135 दर्शक और अक्टूबर महीने की 27 तारीख तक 14000 से अधिक दर्शक पहुंचे है।

इस अवसर पर धरोहर संग्रहालय के सुपरवाइजर डॉ कुलदीप आर्य ने कहा कि हरियाणा संस्कृति बहुत ज्यादा ही समृद्ध संस्कृति है और इस समृद्ध संस्कृति को संजोने का कार्य कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा के कुशल नेतृत्व में बखूबी प्रत्येक दिन के प्रत्येक पल चल रहा है। उन्होने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का प्रयास है कि हरियाणा संस्कृति के संस्कार अपनी वर्तमान पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक सांस्कृतिक समारोह रत्नावली और धरोहर संग्रहालय के माध्यम से पहुंचे।

रत्नावली में विभिन्न स्टॉल्स बने आकर्षण का केन्द्र

रत्नावली महोत्सव में जहाँ एक ओर हरियाणवी संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है, वही क्राफ्ट मेले ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस क्राफ्ट मेले में 45 स्टॉल लगे हैं। यह स्टॉल विश्वविद्यालय के अलग-अलग विभागों, संस्थानों के विद्यार्थियों एवं यूनिवर्सिटी सीनियर सेकेंडरी मॉडल स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा लगाई गई है। जिसमे आई एम सी एम टी डिपार्ट्मेन्ट, टूरिज़म डिपार्टमेन्ट,, फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट, एमबीए डिपार्ट्मेन्ट, गृह विज्ञान विभाग, होटल मैनेजमेंट विभाग और दयाल सिंह कॉलेज करनाल शामिल हैं।

लोक सम्पर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया ने बताया कि मेले में सजावटी सामान के स्टॉल्स ने स्थानीय कारीगरों की कला को प्रदर्शित किया है। जहाँ पारंपरिक कलाकृतियों से लेकर आधुनिक डिजाइन तक हर चीज़ मौजूद है। इन सजावटी सामानों में मिट्टी के दीये, टैटू बनाना, फुलझड़ी, फोटो फ्रेम, कार्टून पेंटिंग, ऊन से बने बैग, लिप्पनआर्ट, आभूषण , बंदरवाल आदि शामिल हैं, जो हरियाणवी संस्कृति की पहचान हैं।

प्रो. महासिंह पूनिया ने बताया कि स्वस्थ भोजन के स्टॉल्स ने भी लोगों का ध्यान खींचा। यहाँ ताज़ी सब्जियों से बने सलाद, जलेबी, ब्राउनीस, कप केक, मफिन, परांठे, भेलपुरी शामिल थे। इसके अलावा, हस्तनिर्मित कारीगरी के स्टॉल्स ने शिल्पकला प्रेमियों को आकर्षित किया। कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति की जड़ों को जीवित रखा। चित्रकला के स्टॉल्स ने भी मेले में चार चाँद लगा दिए। विभिन्न कलाकारों ने अपनी कलात्मक रचनाएँ प्रदर्शित की जिसमें लोककथाएँ और हरियाणवी जीवन की झलकियाँ शामिल थीं। इन चित्रों ने न केवल कला के प्रति प्रेम को बढ़ावा दिया, बल्कि सांस्कृतिक संवाद को भी मजबूत किया।

इस मेले ने रत्नावली में न केवल विविधता का अनुभव कराया, बल्कि हरियाणवी संस्कृति के संरक्षण और प्रचार में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्थानीय निवासियों और पर्यटकों ने इस उत्सव का भरपूर आनंद लिया जिससे संस्कृति की समृद्धि और विविधता को और भी उजागर किया गया।

रत्नावली महोत्सव में विद्यार्थियों ने जीवित रखी पारंपरिक परंपरा

कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे रत्नावली महोत्सव में उत्तर भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में सांझी कला ने एक अनूठा स्थान बना लिया है। रंग-बिरंगे कागज के डिज़ाइन से बनाई जाने वाली ये कलाकृतियाँ मुख्यतः त्योहारों, विशेषकर दीवाली और होली के दौरान देखने को मिलती हैं। रत्नावली गांव में छात्रों ने इस अद्भुत कला को जीवित रखने का कार्य किया है, जिससे यह परंपरा नई पीढ़ी में भी संचारित हो रही है। कॉलेज के छात्र मुकेश ने बताया कि उनकी सांझी बनाने में गहरी रुचि है, जो उनके परिवार के बड़े-बुजुर्गों से प्रेरित है।

मुकेश ने कहा, मेरे घर में सांझी माता बनाई जाती थी, और यही मेरी इस कला के प्रति रुचि का स्रोत है। पिछले 5 सालों से मैं संतोषजनक रूप से सांझी बना रहा हूँ और अब मैं एक प्रोफेशनल आर्टिस्ट बन गया हूँ। वहीं, प्रतिभागी प्रिया ने भी अपनी कला यात्रा साझा की। उन्होंने बताया कि उन्होंने सांझी बनाना अपनी दादी से सीखा है। प्रिया ने कहा, जब से मैं पैदा हुई हूँ, हमारे परिवार में सांझी को एक माता की तरह पूजा जाता है। यह मेरा तीसरा वर्ष है जब मैं सांझी बना रही हूँ। हरियाणा में, लोग सांझी माता को बड़े श्रद्धा भाव से मानते हैं। हर्ष ने कहा, जैसे हमारी माँ हमें प्यार करती हैं और हमारी रक्षा करती हैं, उसी प्रकार सांझी माता भी हमारे लिए एक संरक्षक की तरह हैं। उनकी बातों से स्पष्ट होता है कि हरियाणवी संस्कृति में सांझी माता की अहमियत सिर्फ एक देवी के रूप में नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह है।

हर्ष ने आगे बताया, उनके हाथों में न तो अस्त्र है और न ही शस्त्र। वे बिल्कुल सीधी और सरल हैं। यही उनकी विशेषता है। यह बात दर्शाती है कि सांझी माता का स्वरूप सामान्यता में निहित है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह प्रयास केवल सांझी कला को बनाए रखने का नहीं बल्कि इसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का भी है। इन विद्यार्थियों की मेहनत और समर्पण से यह पारंपरिक कला जीवित है, जो आगामी पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

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