रामनाम महामंत्र ही प्रेम रूपी अक्षयवट का मूल आधार

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morari bapu
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मोरारी बापू
संगम के सुरम्य तट पर जग विख्यात रामकथा मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने प्रेम, अपमान, सत्य और साधुता की व्याख्या कर देश-दुनिया से आए मानस प्रेमियों में आत्म चेतना का संचार कर दिया। उन्होंने रामनाम महामंत्रों को प्रेम रूपी अक्षयवट का मूल बताया और उसके तने की तुलना धीरता और वीरता से की। संदेश दिया कि जिसमें धैर्य नहीं होगा, वह प्रेम नहीं कर सकता। अक्षयवट की अनुकृति वाले भव्य पंडाल में स्प्रिंकलर सेट से चौतरफा इत्र की खुशबुओं की फुहार के बीच मोरारी बापू ने प्रेम अक्षयवट के मूल की तुलना भी रामनाम महामंत्र से की। उन्होंने जय सियाराम की विवेचना सत्य, प्रेम और करुणा के रूप में की। बताया कि सत्यमेव जयते का अर्थ जो सत्य है उसी की जय है। यानी रामनाम रूपी जय ही सत्य है। मां जानकी प्रेम का स्वरूप हैं और राम करुणा के आधार। परम सत्य की महिमा ही अलग है। जहां उंगली उठ जाए, वहां प्रेम नहीं हो सकता। शून्य प्रेम है तो सत्य अक्षयदान।

संत मोरारी बापू ने साधु के अर्थ और उनके अपमान पर भी रोशनी डाली। बताया कि जो भेद न करे वही साधु है। साधु की कथनी करनी में अंतर नहीं हो सकता। एक और फर्क है कि संत क्षमा कर देता है, लेकिन भगवंत कभी नहीं करता। उन्होंने बताया कि राजस्थान में दो बार संतों का अपमान हुआ और दोनों बार वहां के लोगों को भीषण अकाल का सामना करना पड़ा था। उन्होंने प्रेममयी मीराबाई के अपमान का जिक्र किया, जब उन्होंने मेवाड़ छोड़ दिया था। तब राजस्थान को अकाल की त्रासदी झेलनी पड़ी थी।
इसी तरह रामभक्त संत मुरारी दास के अपमान के बाद भी अकाल का सामना करना पड़ा था। बापू ने प्रेम रूपी अक्षयवट के तने, शाखाओं, टहनियों, फल और उसकी छाया केबारे में बताया। बापू ने कहा कि श्रद्धा जगत की बातें बुद्धि से नहीं पकड़ी जा सकतीं।

संस्कृति के आधार वटवृक्षों की बताई महिमा प्रयागराज। मानस अक्षयवट रामकथा में मोरारीबापू ने शुक्रवार को अक्षयवट के अलावा कई और वट वृक्षों की चर्चा की। बताया कि उनकी नजर में जहां तुलसीदास ने अपने गुरु से रामकथा सुनी थी, उस वाराह क्षेत्र में स्थित वृद्ध वट भी महत्वपूर्ण है। वहां भगवान वाराह ने पृथ्वी को उपदेश दिया था। वृद्ध वट की महिमा भी अक्षय है। दूसरे स्वयं अक्षयवट हैं। तीसरा मथुरा का वंशीवट और चौथा गया का बौद्ध वृक्ष। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर मौजूद वट वृक्ष की भी अपनी महिमा है। कहा जाता है यह  वट  वृक्ष भगवान श्रीकृष्ण की ओर से अर्जुन को दिए गए गीता केउपदेश का साक्षी है। मोरारीबापू ने अक्षय नाम से जुड़े प्रमुख तिथियों, शब्दों का भी जिक्र किया। बताया कि अक्षय पात्र की अपनी महिमा है, जिसमें भोजन कभी खत्म न हो वह अक्षय पात्र है। सोमवती अमावस्या, रविवार की सप्तमी और मंगलवार की चतुर्थी भी अक्षय है।

इसी तरह समस्त कर्म जल जाने पर साधक की जो स्थिति होती है वह अक्षय स्थिति है। वाक सिद्धि अर्थात बोले और निहाल हो जाए वह अक्षय वाणी है। अर्जुन का तूणीर अक्षय है, जिसमें बाण कभी खत्म नहीं होते थे। बिना पंडित से पूछे मंगल तिथि अक्षय तृतीया है। मंगल काम की हर वेला अक्षय है। कार्तिक महीने की शुक्ल नवमी के दिन बेटियां वट की पूजा करती है। यह नवमी अक्षय है। मोरारी बापू ने बृहस्पतिवार को एक दलित के घर का भोजन करने का आग्रह स्वीकार किया। बापू ने उसको भोजन बनाकर परिवार सहित कथास्थल पर आने का न्योता दिया। उन्होंने कहा कि जो दूसरे को हल्का समझे, उसके समान दूसरा कोई हल्का नहीं है। उन्होंने किसी के प्रति भेदभाव न करने की सीख दी। इस दलित ने पत्र भेजकर मोरारी बापू को अपने घर भोजन कराने की इच्छा जताई थी।