Ram Navami 2022
आज समाज डिजिटल, अंबाला:
Ram Navami 2022 : नवरात्र की नवमी तिथि पर रामनवमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। रविवार को पुष्य नक्षत्र, सुकर्म, सर्वार्थ सिद्धि योग, शश महापुरुष योग बन रहे हैं। रवि पुष्य योग व त्रिशक्ति योग होने के कारण श्रीराम की पूजा समृद्धि और विजय प्राप्त कराने वाली होगी।
श्रीराम विष्णु के सातवें अवतार
ज्योतिषाचार्य पूनम वार्ष्णेय ने बताया कि श्रीराम को भगवान विष्णु का सप्तम अवतार माना जाता है। त्रेता युग में जब धरती पर असुरों का उत्पात बढ़ गया। तब उनका विनाश करने के लिए भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्रीराम के स्वरूप में अवतार लिया। श्रीराम ने धर्म की स्थापना के लिए पूरे जीवन अपार कष्ट सहे और एक आदर्श राजा के रूप में स्वयं को स्थापित किया। इसलिए उन्हें मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा गया।
सुबह साढ़े 11 बजे से शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पूजन का शुभ मुहूर्त प्रात: 11:30 बजे से दोपहर 1:32 बजे तक है। पंडित ज्ञानेश शास्त्री ने बताया कि श्रीराम की प्रतिमा चौकी पर लाल कपड़े के ऊपर स्थापित करें। केसर, चंदन, अक्षत से तिलक करें। सुंदर वस्त्र, आभूषण धारण कराएं। पुष्प माला पहनाएं। सुगंधित इत्र भी प्रदान करें। पीली बर्फी, लड्डू, फल, तुलसी के पत्ते अर्पित करें। घी का दीपक, धूपबत्ती जलाकर श्रीरामचरितमानस राम रक्षा स्रोत और सुंदरकांड का पाठ करें। आरती के बाद प्रसाद वितरण करें।
दस साल बाद बन रहा दुर्लभ योग Today is the Birthday of Lord Shri Ram
रामनवमी पर इस वर्ष रवि पुष्य योग बन रहा है, जो पूरे 24 घंटे तक रहेगा। खरीदारी के लिए इसे अबूझ मुहूर्त भी माना जा रहा है। ज्योतिषाचार्य शिवशरण पारासर ने बताया कि इससे पहले ऐसा शुभ संयोग 1 अप्रैल 2012 को बना था और अब 6 अप्रैल 2025 को दोबारा बनेगा। उन्होंने बताया कि शनिवार को देर रात 1.25 बजे से रविवार को देर रात 3.15 बजे तक रामनवमी रहेगी।
राम जन्म कथा
प्राचीन समय की बाद है अयोध्या के राजा दशरथ प्रतापी और दानी थे। राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। मगर उनके कोई पुत्र नहीं था। पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा ने भव्य यज्ञ करवाया। इस यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए राजा दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को बुलावा भेज दिया।
वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ
यज्ञ के लिए तय किए गए समय पर महाराज दशरथ ने अपने गुरु वशिष्ठ जी भी पधारे। इसी के बाद महान यज्ञ का शुरु हो गया है। यज्ञ का विधिवत शुभारंभ हो चुका है। यज्ञ के समय सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा।
खीर कोतीनों रानियों में वितरित किया
जब यज्ञ समाप्त हो गया तो सभी पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट के साथ विदा किया गया। यज्ञ के प्रसाद के रूप में मिली खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के फलस्वरूप कुछ समय बाद तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
रानी कौशल्या ने शिशु को जन्म दिया
इसके बाद चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया। उनका नील वर्ण चुंबकीय आकर्षण वाला था।
कैकेयी ने एक तथा सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया
जो भी उस शिशु को देखता अपनी दृष्टि उस से हटा नहीं सकता था। इसके बाद नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी ने एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। चारो पुत्रों के जन्म से पूरी अयोध्या में उत्स्व मनाये जाने लगा। राजा दशरथ के पिता बनने पर देवता भी अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे।
चारों पुत्रों के नामकरण संस्कार
पुत्रों के नामकरण के लिए महर्षि वशिष्ठ को बुलाया गया। उन्होंने राजा दशरथ के चारों पुत्रों के नामकरण संस्कार करते हुए उन्हें रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम दिए। अपने शांत स्वभाव और निपुण गुण के चलते वो प्रजाओं में लोकप्रिय हो गए। अपने आदर्शों से राजा राम ने लोगों का दिल जीत लिया।
Ram Navami 2022
Read Also : हिंदू नववर्ष के राजा होंगे शनि देव Beginning of Hindu New Year
Read Also : पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए फल्गू तीर्थ Falgu Tirtha For Peace Of Souls Of Ancestors
Read Also : नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ से करें मां दुर्गा को प्रसन्न Durga Saptashati