भारतवासियों के लिए यह अजब संयोग है कि स्वाधीनता दिवस यानी 15 अगस्त और रक्षाबंधन एक ही दिन मनाया जाएगा। दोनों महापर्व एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। एक हमें जहां त्याग और बलिदान की सीख देता हैं वहीं दूसरा बुराइयों और आसुरी प्रवृत्तियों से समाज को सुरक्षित रखने के लिए अपने दायित्वों की याद दिलाता है। ऐसी स्थिति में हमें स्वाधीनता दिवस और रक्षाबंधन को नए नजरिए और नई सोच के साथ मनाना चाहिए। देश और समाज की स्थितियां बदल चुकी हैं। इस बार का जश्न-ए-आजादी और रक्षाबंधन विशेष महत्व रखता है। कश्मीर जैसे मसले का एक झटके में समाधान निकाल देश ने बड़ा काम किया है। इस फैसले पर हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जब देश सुरक्षित रहेगा तो हमारा अस्तित्व भी बचा रहेगा। बदलते दौर में हमारी सामाजिक मान्यताएं और समस्याएं भी बदली हैं। इस तरह की समस्याओं के समाधान में हमारे पर्व बेहद सहायक हो सकते हैं। क्योंकि यह हमारे धार्मिक एंव सांस्कृतिक सरोकार से जुड़े होते हैं। रक्षाबंधन पर्व का सिर्फ भाई-बहन के रिश्तों तक सीमित नहीं है। यह कुरीतियों से लड़ने का संकल्प है।
स्वाधीनता दिवस और रक्षाबंधन पर्व देश, काल, वातावरण, जाति, धर्म, भाषा, प्रांतवाद की सीमा से अलग है। दोनों महापर्व हिंदुस्तान में एक साथ उमंग और उत्साह के वातावरण में मनाएं जाते हैं। यह हमारी सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी मिसाल है। हमारी आजादी को 72 साल हो जाएंगे। देश इस यात्रा में आर्थिक, सामाजिक और कई अतंरराष्ट्रीय चुनौतियों का सामाना करते हुए एक सशक्त राष्ट्र के रुप में उभरा है। वैश्विक मंच पर भारत को पूरा सम्मान मिल रहा है। भारत अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्ज करा रहा है। दुनियाभर में उसकी अपनी एक अलग छवि निखरी है। कश्मीर में धारा-370 के खत्म होने पर पास्कितान हर कूटनीति अपना रहा है लेकिन चीन, अमेरिका, रुस, फ्रांस के साथ कई मुस्लिम देशों की तरफ से उसे मुंह की खानी पड़ी है। संयुक्तराष्टÑ संघ में उसे कश्मीर मसला उठाने की इजाजत तक नहीं मिली। पाकिस्तानी विदेशमंत्री कुरैशी ने खुद स्वीकार किया है कि दुनियाभर में हमारे समर्थन में कोई नहीं खड़ा है। जिस कश्मीर को पाकिस्तान अब तक विवादित मसला कहता चला आ रहा था कि आज उसी कश्मीर को पूरी दुनिया भारत का आतंरिक मामला बताते हुए पाकिस्तान को जमींन दिखा दिया है। इस बात को हमें समझना होगा। यह मसला हमारे सियासी नफे-नुकसान से अधिक राष्टÑवाद और उसकी आत्मा से जुड़ा है। कश्मीर के अलगाववादियों को भी अपनी निहित सोच से बाहर आना चाहिए। जिसमें आम कश्मीरी का हित हो उस बात पर गंभीरता से विचार कर देश की मुख्यधारा से जुड़ना चाहिए। सरकार की नीतियों में सहभागी बन राष्ट्र निर्माण में एक सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए।
रक्षाबंधन सिर्फ हिंदुओं का ही नहीं जैन और दूसरे समाज के लोगों को भी पर्व है। सावन की पूर्णिमा को यह मनाया जाता है जिसकी वजह से इसे श्रावणी भी कहा जाता है। इसका धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक महत्व है। इस दिन पर्व पर बहनें भाई की कलाई में रक्षासूत्र यानी रखी बांध तिलक लगाकर आरती उतारती हैं। भाई से अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। इस रक्षाबंधन पर्व पर हमें अपनी सोच को बदलना होगा। बहन की रक्षा के साथ-साथ देश, समाज और बेटियों की रक्षा का भी संकल्प लेना होगा। इसके लिए युवाओं का आगे आना चाहिए। देश में मासूम बेटियों, स्कूली, कामकाजी और दूसरी महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घृणित घटनाएं हो रही हैं। ऐसी दंरिदगी को जड़ से खत्म करने के लिए आगे आना होगा। जब हमारी बहन हमारे हाथ की कलाई पर पवित्र रक्षासूत्र बांधकर रक्षा का संकल्प लेती है तो उसी दौरान हमें पूरे भारत की बेटियों के रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। भारत का हर भाई अगर इस स्वाधीनता दिवस पर यह प्रण कर ले तो देश और समाज से इस कलंक का खात्मा हो जाएगा। यह तभी संभव है होगा जब हमारी युवापीढ़ी आगे आए। देश की दूसरी सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण संकट है। अगर हर देशवासी यह संकल्प रखे कि आज से हम गंदगी नहीं फैलाएंगे। हरे पेड़ों की कटान नहीं होगा। जल की बबार्दी पर रोक लगाएंगे। फिर तो एक स्वच्छ भारत का निर्माण होगा।
इसी तरह हम बेरोजगारी की समस्या पर भी कुछ हद तक काबू पाया सकते हैं। अपने स्तर से अगर कोई व्यक्ति, संस्था, कंपनी युवाओं को रोजगार मुहैया कराने में सक्षम है तो उसे यह जिम्मेदारी राष्टÑीय दायित्व के रुप में निभानी चाहिए। भ्रष्टाचार न करने , एक दूसरी की पीड़ा में सहयोग करने का संकल्प लेकर भी हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। हमें अपने सैनिकों का बेहद सम्मान करना चाहिए। बहनों को सैनिक भाइयों को काफी तादात में राखियां भेज कर उनके हौसले बढ़ाने चाहिए। क्योंकि जब हम रात में बेखौफ होकर सोते हैं तो हमारे जवान हमारी सीमा की सुरक्षा में लगे रहते हैं। इस तरह के संकल्प से समाज को चुटकी बजाते बदला जा सकता है। उसके लिए किसी पैसे की या बजट की आश्यकता नहीं है। बस हर देशवासी को अपनी सोच बदलनी होगी। हम राजनेता हों या अफसर, डाक्टर, पत्रकार, अधिवक्ता, कंपनी मालिक हों या संस्थान संचालक, छात्र, शिक्षक, महिलाएं, युवा, किसान या फिर आम या खास। सब मिल कर यह परिवर्तन ला सकते हैं।
एक व्यक्ति देश को नहीं बदल सकता। देश का हर नागरिक इस रक्षाबंधन पर राष्टÑीय भावना के प्रति समर्पित कर ले तो सारी समस्याओं का समाधान निकल आएगा। लेकिन उसके लिए ईमानदार कोशिश करनी पड़ेगी। सिर्फ मंचीय भाषण से कोई सुधार नहीं होना वाला है। भारत में जब-जब आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ा उस दौरान रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्यौहार से हमने उस पर विजय पाई। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब राजाबलि देवराज इंद्र का सिंहासन यज्ञ के प्रभाव से लेना चाहा तो इंद्राणी ने एक रक्षासूत्र गुरु बृहस्पति के जरिए इंद्र के हाथों बांध दिया। जिसकी वजह से इंद्र की राजाबलि से रक्षा हुई और उसका इंद्रलोक सुरक्षित बच गया। गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग आंदोलन में रक्षाबंधन पर्व को सामाजिक और राजनैतिक रुप देकर अंग्रेजों के बंगाल विभाजन नीति का विरोध किया था। पवित्र अमरनाथ यात्रा गुरुपूर्णिमा को प्रारंभ होकर इसी दिन खत्म होती है। इसी दिन शिवलिंग अपने संपूर्ण आकार में आता है। उत्तराखंड में इसी दिन ब्राह्मणों का उपनयन संस्कार होता है।
महाराष्टÑ में इसे नारियल पूर्णिमां, राजस्थान में चूड़ाराखी बांधने की प्रथा कहते है। उड़ीसा, तमिलनाडू में इसे अवनि अवित्तम कहा जाता है। यूपी के ब्रज में हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। यह पर्व भगवान कृष्ण और द्रौपदी से भी जुड़ा हैं। कहा जाता है जब भगवान ने शिशुपाल का वध किया था तो सुदर्शनचक्र से उनकी अंगुली कट गई थी। रक्त की धार को बंद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़ कर बांधा था। मान्यता है जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया तो भगवान कृष्ण साड़ियों की लाट लगा दिए थे। इतिहास में भी कई उदाहरण मिलते हैं। रक्षाबंधन के दिन लोग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी रक्षासूत्र बांधते हैं। ब्राह्मण भी एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधते हैं। इस दौरान डाक विभाग राखी भेजने के लिए अपनी सेवा में विशेष सुविधा देता है। सरकार ने सरकारी बसों में बहनों के लिए यात्रा छूट दिया है। आइए एक नए उमंग, उत्साह के साथ स्वाधीनता दिवस के साथ रक्षाबंधन पर्व मनाएं। देश की खुशहाली, संवृ़िद्ध और उन्नति के लिए सब मिल कर काम करें। जयहिंद
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