अगर आप रणजी ट्रॉफी में देश में सबसे ज़्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज करें और इसके बावजूद 27 साल के घरेलू क्रिकेट के करियर में इंटरनैशनल क्रिकेट में मौके का इंतज़ार ही करते रहें और जिनकी वजह से उन्हें टीम इंडिया में मौका न मिला हो, उनके साथ भी वह दोस्ताना संबंध बनाए हुए हों तो ऐसा कोई अजूबा ही कर सकता है। जी हां, राजिंदर गोयल ऐसे ही एक अजूबे इंसान थे। इस बाएं हाथ के स्पिनर की मौत पर पूरा देश आज यही सवाल कर रहा है कि क्या बिशन सिंह बेदी की टीम इंडिया में मौजूदगी ही उनके टेस्ट न खेलने का कारण साबित हुई या इसके पीछे कुछ दूसरे कारण हैं।
ये बात ठीक है कि एक मयान में एक ही तलवार रह सकती है। बिशन बेदी और राजिंदर गोयल दोनों ही बाएं हाथ के स्पिनर थे। बेदी गेंदबाज़ी में ज़्यादा दिलेर थे। फ्लाइट किया करते थे लेकिन राजिंदर गोयल फ्लैटर ट्रैजेक्टरी की गेंदें किया करते थे लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो फ्लाइट नहीं करते थे। फर्क सिर्फ इतना था कि बेदी की फ्लाइट में जहां गति बेहद कम थी, वहीं राजिंदर की ऐसी गेंदों में गति ज़्यादा हुआ करती थी लेकिन यहां शायद इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि राजिंदर हर तरह की विकेट पर प्रभावशाली प्रदर्शन करने की काबिलियत रखते थे। ज़ाहिर है कि अगर उन्हें ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की विकेट पर गेंदबाज़ी का मौका मिलता तो निश्चय ही वह बिशन सिंह बेदी से ज़्यादा प्रभावित करते। यहां सवाल ये है कि आखिर उन्हें टेस्ट खेलने का मौका क्यों नहीं मिला। जब टीम में इरापल्ली प्रसन्ना और वेंकटराघवन के रूप में दो ऑफ स्पिनर खेल सकते हैं तो दो लेफ्ट आर्म स्पिनर क्यों नहीं खेल सकते थे।
इससे ज़्यादा खराब बात भला और क्या हो सकती है कि 1974-75 के बैंगलौर टेस्ट में उन्हें वेस्टइंडीज़ के खिलाफ मौका मिलना तय था। एक शाम पहले टीम की घोषणा में उनका नाम नहीं था। इस टेस्ट में बिशन सिंह बेदी अनुशासनात्मक कार्रवाई के तरह नहीं खेले थे लेकिन टीम मैनेजमेंट ने प्रसन्ना और वेंकट के रूप में दोनों ऑफ स्पिनरों को खिलाने का फैसला किया। ये विवियन रिचर्ड्स का भी डैब्यू टेस्ट था। अगर उन्हें उस टेस्ट में मौका मिल गया होता तो उनके लिए टीम में जगह पक्की करने का अवसर बन जाता जिसे बिशन सिंह बेदी और उनके समर्थक कतई पसंद नहीं करते।
इसी तरह कभी श्रीलंका के खिलाफ तो कभी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ साइड मैंचों में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। मगर उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने देश भर में खेल रहे आला दर्जे के क्रिकेटरों का दिल ज़रूर जीता। सुनील गावसकर ने तो अपनी किताब आइडल्स में यहां तक लिख दिया कि अगर उन्हें बिशन बेदी और राजिंदर गोयल में से किसी एक का सामना करना हो तो वो बिशन बेदी को खेलना पसंद करेंगे। ये वास्तव में राजिंदर गोयल के लिए बड़ा कॉम्पलिमेंट था।
राजिंदर गोयल की गेंदबाज़ी की एक विशेषता ये भी थी कि वो बल्लेबाज़ को ड्राइव के लिए कदमों का इस्तेमाल करने का मौका नहीं देते थे। उनकी कोशिश बल्लेबाज़ को बैकफुट पर खिलाने की रहती थी। गति परवर्तन उनकी गेंदबाज़ी की एक अन्य खासियत थी। कई बार तो स्पिन को बहुत अच्छा खेलने वाले बल्लेबाज़ भी उनके सामने फंस जाते थे। ऐसे ही स्पिन को अच्छा खेलने वाले विजय मांजरेकर भी उनके सामने बेहद सावधानी से खेलते थे और वो उन्हें भी इनसाइड एज पर नजदीकी फील्डर के हाथों लपकवा लेते थे। बाएं हाथ के एक अन्य लेफ्ट आर्म स्पिनर पदमाकर शिवाल्कर तो उन्हें अपने से ज़्यादा बड़ा स्पिनर मानते थे। दिलीप वेंगसरकर को उनके टाइम्स शील्ड में खेलने का इंतज़ार रहता था। एक स्तरीय स्पिनर को खेलकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय मैचों की तैयारी का अवसर रहता था। बिशन सिंह बेदी ने इस बात को स्वीकार किया है कि जब उन्हें टेस्ट में पहली बार मौका मिला था तब राजिंदर गोयल उनसे बेहतर गेंदबाज़ थे।
दिक्कत ये है कि हमारे देश में राजिंदर गोयल से लेकर पदमाकर शिवाल्कर और राजिंदर सिंह हंस, बाबू निम्बालकर, एजी राम सिंह, अमोल मुजूमदार, वेंकटरामन शिराकृष्णन, वेंकटसुंदरम और केपी भास्कर जैसे हज़ारों खिलाड़ियों को अच्छे खासे हुनर के बावजूद मौका नहीं मिल पाता। ऐसे में इन प्रतिभाओं के पास निराश रहने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता।
-मनोज जोशी