• सीएम शर्मा की ताकत को कम आंकना बड़ी भूल

अजीत मेंदोला | नई दिल्ली । बीजेपी के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने इस बार गलत जगह उलझ गए। मीणा ने अपने नोटिस के जवाब से बीजेपी आलाकमान को संतुष्ट कर लिया तो शायद कुर्सी बची रह सकती है। लेकिन बचने की गारंटी अभी दी नहीं जा सकती है। हालांकि अपने जवाब में किरोड़ी ने अपने को पार्टी का वफादार सिपाही बता विस्तृत जवाब दिया। आलाकमान ने भी अभी प्रदेश अध्यक्ष से नोटिस दिलवा टेस्ट लिया है।

अजीत मेंदोला।

मामला अनुशासन समिति तक नहीं गया। मतलब एक तरह से हिदायत दी है संयम बरतें। किरोड़ी का इतिहास उलझने का रहा है, लेकिन वह भूल गए कि देश की राजनीति अब पूरी तरह से बदल गई है। उससे राजस्थान भी अछूता नहीं है।भजनलाल शर्मा (Rajasthan Cm Bhajan lal sharma) जैसे मुख्यमंत्री बोलते कम जरूर हैं, लेकिन पार्टी के मामले में कोई रिहायत नहीं देते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत से लेकर वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत से भी उलझे किरोड़ी लाल मीणा

बीजेपी के राज में जाति समुदाय अब किसी के दबाव में नहीं आते हैं। अगर ऐसा होता तो जाति की राजनीति कर रही कांग्रेस को राज्यों में करारी हार का सामना नहीं करना पड़ता। किरोड़ी लाल मीणा का इतिहास अगर देखें तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत से लेकर वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत से भी उलझने में उन्होंने कोई कर कसर नहीं छोड़ी।

राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए उनसे उलझे तो पार्टी छोड़नी पड़ी। क्योंकि तब राजे दिल्ली से ज्यादा मजबूत थी। फिर कांग्रेस का दामन थामा तो अशोक गहलोत से भिड़ गए। उस भिड़ंत के बाद से किरोड़ी कमजोर होने लगे। उनकी अपनी वोटरों पर पकड़ कमजोर होती चली गई। 2014 में लोकसभा का चुनाव निर्दलीय लड़े और बीजेपी के हरीश मीणा से हार गए।

उसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में भी उनकी अपने इलाके में बड़ी हार हुई। अकेले पड़ते किरोड़ी ने फिर दिल्ली बीजेपी से तार जोड़े। तब तक दिल्ली में बीजेपी नया युग शुरू हो चुका था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के रूप में अब तक का सबसे शक्तिशाली केंद्रीय नेतृत्व मिल चुका था। उनकी घोर विरोधी माने जाने वाली पूर्व सीएम राजे कमजोर पड़ चुकी थी।

बीजेपी की सत्ता में वापसी होते ही किरोड़ी की उम्मीदों में पानी फिरा

दिल्ली ने भी राजस्थान में नई बीजेपी तैयार करने के लिए किरोड़ी को पार्टी में वापस ले लिया और राज्यसभा दे दी। यहीं से किरोड़ी की उम्मीदें जगने लगी। पहले केंद्र में मंत्री बनने के लिए ताकत लगाई लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद उन्होंने राज्य की राजनीति की ओर रुख कर तब के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने लगे।

दिल्ली उन्हें समर्थन देने लगा। 2023 के विधानसभा चुनाव आते आते राजे साइड कर दी गई थी।सीएम फेस नहीं था। किरोड़ी उम्मीद करने लगे कि आलाकमान कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का इनाम देगा।लेकिन बीजेपी की सत्ता में वापसी होते ही किरोड़ी की उम्मीदों में पानी फिर गया।

कैबिनेट मंत्री बनाए गए लेकिन ताकत कम कर दी। यहीं से किरोड़ी का मन बदलने लगा। लेकिन कुछ कर नहीं पाए। मोन रहने लगे। फिर लोकसभा चुनाव में किरोड़ी ने अपने भाई जगमोहन के लिए टिकट मांगा, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। पार्टी का साफ संदेश था पहले चुनाव जिताएं।

लेकिन लोकसभा चुनाव में किरोड़ी के इलाके में पार्टी की बड़ी हार हुई। घोषणा के मुताबिक हार की जिम्मेदारी ले मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लोकसभा में कम सीट आने पर पार्टी ने कोई खतरा मोल लेने के बजाए किरोड़ी के भाई जगमोहन को दौसा उप चुनाव में टिकट दे दिया। लेकिन तब तक दिल्ली में मोदी सरकार तीसरी बार शपथ ले चुकी थी।

विधानसभा के उप चुनाव के परिणामों ने मुख्यमंत्री शर्मा को मजबूती के साथ स्थापित कर दिया

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी राजनीति समझ चुके थे। सो उन्होंने उप चुनाव में कांग्रेस को तगड़ा झटका दे अपने को साबित कर दिया। विधानसभा के उप चुनाव के परिणामों ने मुख्यमंत्री शर्मा को मजबूती के साथ स्थापित कर दिया।बीजेपी 7 में से केवल दो सीट हारी उनमें एक किरोड़ी के भाई वाली दौसा थी।

किरोड़ी के राजनीतिक जीवन का यह सबसे बड़ा झटका था।किरोड़ी को लगा उन्हें अपनों ने हराया सो अपनी सरकार के खिलाफ बयान बाजी करने लगे। किरोड़ी भूल गए वह भजनलाल शर्मा की सरकार के खिलाफ नहीं दिल्ली को चुनौती दे रहे हैं।दिल्ली ने भी फिर धीरे से जोर का झटका दे दिया ।

किरोड़ी सब कुछ हल्के में ले रहे थे वह भूल गए नई बीजेपी।वो तो किरोड़ी ने समझदारी दिखाई नोटिस का जवाब दे चुप्पी साध ली। चुप रहेंगे तो चलेंगे वर्ना दिल्ली कभी भी कड़ा एक्शन ले लेगी।

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