- सोशल इंजीनियरिंग से सभी वर्गों को साधने के हो रहे हैं प्रयास
- पार्टी देना चाहती है ‘ऑल इज वेल’ का संदेश
अजीत मेंदोला | जयपुर। भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग को साधने में लगा है। इससे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी ताकत देने की कोशिश की जा रही है। साथ ही प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के कार्यभार ग्रहण करने वाले दिन नेताओं की एकजुटता दिखाकर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि यहां सब ‘ऑल इज वेल’ है। लंबे समय बाद एक मंच पर सभी प्रमुख नेता एकजुट दिखे, लेकिन इस सोशल इंजीनियरिंग में अभी भी कुछ नाराज जातियों को अभी पूरी तरह से एडजस्ट नहीं किया गया।
ऐसे संकेत हैं कि कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल के इस्तीफे से खाली हुई राज्यसभा की सीट पर नाराज मानी जाने वाली जाट, मीणा और गुर्जर में से किसी जाति के एक नेता को राज्यसभा भेजा जा सकता है। हालांकि यह सीट दो साल की है, लेकिन समझा जा रहा है कि जिन्हें अभी मौका मिलेगा उन्हें ही आगे भी मौका दिया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव में उम्मीद से कम सीट आने की एक बड़ी वजह सोशल इंजीनियरिंग की कमी रही थी। जबकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों से संकेत मिल गए थे कि जातीय राजनीति के चलते पार्टी को जाट बाहुल्य क्षेत्रों में कम सीटें मिली, लेकिन तब पार्टी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को राजस्थान में बड़ा झटका लगा। जाटों की नाराजगी के चलते जाट बाहुल्य इलाकों की सीट बीजेपी हार गई। इसके साथ ही मीणा बेल्ट वाले इलाकों में भी पार्टी की नुकसान हुआ। मीणा और गुर्जरों ने भाजपा को वोट नहीं किया। मीणा समाज के लोग इसलिए भी नाराज थे कि उन्हें मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला।
कमोवेश यही स्थिति गुर्जरों की थी। राजस्थान की 11 सीट भाजपा को भारी पड़ गई। जातिगत राजनीति नहीं साध पाने और भीतरघात के चलते पार्टी यह सीटें हारी क्योंकि दोनों प्रमुख पदों पर मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद पर ब्राह्मण चेहरे थे। प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह राजपूत थे। एक तरह से अगड़ी जाति का दबदबा बना था। इससे भाजपा को नुकसान हुआ तो कांग्रेस को लाभ हुआ।
कांग्रेस के अहम पदों पर जाट और पिछड़ों का दबदबा
कांग्रेस के अहम पदों पर जाट और पिछड़े वर्ग का दबदबा था। हालांकि जाटों को साधने के लिए लोकसभा चुनाव के समय पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को हरियाणा की जिम्मेदारी देकर खुश करने की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं बनी। इस हार के बाद पार्टी आलाकमान ने पिछले दिनों प्रदेश में कई नई नियुक्तियां की। इनमें ओबीसी के मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बना एक बड़े वर्ग को साधने की कोशिश की। इनके साथ ही वैश्य समाज के राधा मोहनदास अग्रवाल को प्रभारी बनाया।
अभी भी है गुंजाइश
भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से एक दम अभी भी फिट नहीं दिखती है। सीएम ब्रह्मण, दो डिप्टी सीएम में एक राजपूत तो दूसरा एसटी वर्ग से। जबकि प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी वर्ग से आते हैं। प्रभारी वैश्य जाति से है, लेकिन इसके बाद भी बड़ी संख्या वाले जाट और मीणा खुश नहीं दिखते हैं।
सतीश पूनिया को राष्ट्रीय संगठन में जगह तो दी गई है, लेकिन अभी बात बन नहीं रही है। मीणा समाज से आने वाले किरोड़ी लाल मीणा अपने इलाके में पार्टी को नहीं जिताने के कारण इस्तीफा दे चुके हैं। हालाकि सीएम ने अभी इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। पार्टी को मीणा समाज के एक ऐसे नेता की तलाश है जो सर्वमान्य हो। किरोड़ी अब कम प्रभावशाली माने जा रहे हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में दिखेंगे नए चेहरे…!
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जब भी भविष्य में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे तो शायद कुछ नए चेहरे सामने आएं। राठौड़ की टीम में भी कई युवा चेहरे दिखेंगे। अब रही भीतरघात को साधने की बात तो प्रदेश अध्यक्ष राठौड़ के कार्यभार संभालने वाले दिन प्रदेश के सभी प्रमुख नेता एक मंच पर थे। सभी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से लेकर पूर्व सीएम तक सभी एक साथ बैठे दिखाई दिए। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का उस दिन का भाषण चर्चाओं में भी रहा।
उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की, लेकिन पार्टी को ताकत देने की भी बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जमकर सराहा तो प्रदेश अध्यक्ष राठौड़ को सीख भी दी। एक तरह से राजे ने उनको लेकर लगाई जा रही अटकलों को दरकिनार कर यही जताया कि अपनी पार्टी और सरकार को मजबूत करेंगी। भाजपा को राजे ने ताकत दे विरोधियों को भी संदेश दे दिया।
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