Rajasthan By Elections: सात सीटों के उप चुनाव को लेकर भाजपा आलाकमान गंभीर

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Rajasthan By Elections: सात सीटों के उप चुनाव को लेकर भाजपा आलाकमान गंभीर
Rajasthan By Elections: सात सीटों के उप चुनाव को लेकर भाजपा आलाकमान गंभीर

Assembly ByElections, (अजीत मेंदोला),  (आज समाज), जयपुर: भारतीय जनता पार्टी का आलाकमान राजस्थान को लेकर खासा गंभीर हो गया है। उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान में ही सबसे ज्यादा सात सीटों पर उप चुनाव होना है। इन सीटों पर भी उत्तर प्रदेश वाली ही स्थिति है, लेकिन भाजपा की लोकसभा पूर्व वहां भी केवल एक ही सीट थी, बाकी विपक्ष के पास थी। ठीक उसी तरह राजस्थान में खाली हुई सात सीट में से 6 कांग्रेस या अन्य दल के पास थी और एक ही सीट भाजपा के पास थी।

  • राजस्थान में उत्तर प्रदेश से बड़ी चुनौती 

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बदले माहौल में अधिकांश सीटें जीतने का दबाव

अब लोकसभा चुनाव के बाद बदले माहौल में भाजपा पर अधिकांश सीटें जीतने का दबाव है। इस बीच सदस्यता अभियान ने भी पार्टी की चिंता बढ़ाई है। चिंता की सबसे बड़ी वजह कार्यकतार्ओं की उदासीनता सामने आ रही है। उत्तर प्रदेश की तरह राजस्थान में भी बीजेपी का राज है, इसके चलते आलाकमान प्रदेश के कार्यकतार्ओं को रिचार्ज करने में जुट गया है।संगठन महामंत्री बीएल संतोष तो राज्य के नेताओं से बात कर स्थिति का आंकलन करने में जुटे है। ऐसे संकेत हैं कि जल्द ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा भी नेताओं और कार्यकतार्ओं की नब्ज टटोलने के लिए जयपुर का दौरा कर सकते हैं।

सदस्यता अभियान से प्रभावित हो सकता है उप चुनाव

राजस्थान को लेकर भाजपा की चिंता इसलिए भी है कि हिंदी बेल्ट का प्रमुख राज्य है। सदस्यता अभियान में लक्ष्य नहीं हासिल कर पाती है तो उप चुनाव जीतने में जोर पड़ेगा। यदि पार्टी को हार मिलती है तो कार्यकतार्ओं में और निराशा फैलेगी। बीजेपी आलाकमान ने राजस्थान में प्रयोग कर एक दम नई टीम उतारी थी। पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को पिछले साल मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी।

सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस, फिर भी एडजस्ट नहीं

लोकसभा चुनाव में उम्मीद के हिसाब से सीटें नहीं आने के बाद बीजेपी आलाकमान ने सोशल इंजीनियरिंग को साधते हुए ओबीसी के मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी। उनके साथ वैश्य समाज के राधामोहन दास अग्रवाल को प्रभारी महामंत्री बनाया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ब्राह्मण हैं। उप मुख्यमंत्री पद एसटी और राजपूत के हिस्से में आए हैं, लेकिन इन सब के बाद बड़े समुदाय वाले जाट, मीणा और गुर्जर को अभी तक एडजस्ट नहीं किया गया है। ये तीनों जातियों का राजस्थान की राजनीति में ठीक ठाक दखल है। उप चुनाव वाली सभी सीटों पर इन जातियों का असर है।

मीणा को लेकर असमंजस की स्थिति

मीणा समाज के वरिष्ठ नेता हुए मंत्री किरोड़ी लाल मीणा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। किरोड़ी ने लोकसभा चुनाव में हुई हार की जिम्मेदारी ले अपने पद से जुलाई में इस्तीफा दे दिया था। तब से वह विभाग में भी नहीं बैठ रहे हैं। पिछले दिनों भारी बारिश के चलती आई आपदा पर विपक्ष ने सवाल भी उठाया था कि कौन मंत्री है। किरोड़ी के पास आपदा विभाग भी है। उनका इस्तीफा भी अभी तक नहीं स्वीकारा गया। इस्तीफे के बाद किरोड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी मिले थे।

मंत्रालय का कामकाज देख रहे प्रदेश अध्यक्ष

प्रदेश अध्यक्ष राठौर कहते हैं किरोड़ी मंत्रालय का कामकाज देख रहे हैं। दरअसल, बीजेपी ने पिछले साल सरकार गठन के समय सोशल इंजियरिंग पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। जातियों में जो नाराजगी बढ़ी वह बढ़ती ही चली गई।अनुभवी नेता निष्क्रिय हो गए।लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जातीय राजनीति का जो कार्ड खेला वह सफल रहा।कांग्रेस हरियाणा में भी जातीय राजनीति के सहारे ही चुनाव लड़ रही है।जाट,दलित और मुस्लिम वोटों को उसने साधा है।राजस्थान में कांग्रेस ने जातीय राजनीति के हिसाब से सभी प्रमुख पदों में नियुक्तियां की है।जाट,ओबीसी,मीणा ,दलित और गुर्जरों को साधा हुआ है।

पार्टी को एकजुट करने की कोशिश

भाजपा आलाकमान अब बदले हालात में सोशल इंजियरिंग को तो साधेगा ही अब उसकी पहली कोशिश यही है कि पार्टी को कैसे एक जुट कर कार्यकतार्ओं को सक्रिय किया जाए। ऐसे में 2 सितंबर से शुरू हुआ सदस्यता अभियान के पहले चरण में पार्टी ने सवा करोड़ नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन कुल 23 लाख ही सदस्य बन पाए। इस पर संगठन महामंत्री ने नाराजगी भी जताई। अब 15 अक्तूबर तक एक करोड़ सदस्य बनाए जाने है।आलाकमान सदस्यता अभियान को लेकर खासा गंभीर हो गया है।क्योंकि सदस्यता अभियान से ही उप चुनाव का माहौल बनेगा।

नवंबर में उप चुनाव के आसार

मना जा रहा है कि प्रदेश में नवंबर में उप चुनाव होने के आसार हैं।राजस्थान में जिन सात सीट पर चुनाव होने हैं, उनमें दौसा, झुंझुनू, चौरासी, देवली उनियारा, खींवसर, सलूंबर और रामगढ़ हैं। इनमें सलूंबर को छोड़ बाकी में बीजेपी की राह कठिन है। जातीय राजनीति के हिसाब से बीजेपी को जाटों और मीणा को राजी करना होगा। गुर्जर भी कुछ सीट पर असर डालते हैं।चौरासी और सलूंबर आदिवासी सीट है।

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बड़ी राजकुमार रोत की ताकत

भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ताकतवर हुए हैं। उनका कांग्रेस से गठबंधन है। इसी तरह आरएलपी के हनुमान बेनीवाल जाट नेता के रूप में जगह बना चुके हैं। उनका भी कांग्रेस से गठबंधन है, खींवसर उनकी सीट है।बाकी पर कांग्रेस मजबूत है। ऐसे में बीजेपी को नए सिरे से रणनीति बना जातीय राजनीति को साधना होगा।मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को अपने मंत्रिमंडल में भी फेरबदल करना है। मुख्यमंत्री शर्मा ने दिल्ली दौरे पर मंत्रिमंडल फेरबदल और उप चुनाव पर चर्चा की है।अब आने वाले दिनों में होने वाले फैसलों पर सबकी नजर रहेगी।

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