- पीएम मोदी से लेकर बड़े नेताओं ने यूपी सीएम के नारे को आगे बढ़ाया
- हरियाणा में जीत के बाद अब राजस्थान उपचुनाव में होगा नारे का असली परीक्षण
अजीत मेंदोला | नई दिल्ली/जयपुर। राजस्थान की सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिए नारे ‘बटोगे तो कटोगे’ को आगे बढ़ाते हुए हिंदुत्व वाले एजेंडे को फिर धार दे सकती है। योगी के इस नारे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी प्रमुख नेताओं ने आगे बढ़ाया है।
महाराष्ट्र की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी भी इस नारे का जिक्र कर एकजुटता की बात की है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में योगी ने एक माह पूर्व आगरा की एक सभा बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा था कि बटोगे तो कटोगे, इसलिए एक जुट रहें। फिर हरियाणा चुनाव में भी योगी ने अपने भाषणों में बटोगे तो कटोगे पर ही फोकस रखा। योगी ने जिस जिस सीट पर सभाएं की पार्टी ने वह सभी सीटें जीती। जिससे पार्टी के हौसले बुलंद हुए हैं।
लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने जाति का कार्ड खेल हिंदुओं को अगड़े—पिछड़े में बांटने की कोशिश की थी। विपक्ष के इस जाति के कार्ड की काट के रूप में योगी ने बटोगे तो कटोगे की बात कह फिर से हिंदुत्व के मुद्दे को धार दी। शुरू में योगी के नए स्लोगन से पार्टी में भ्रम की स्थिति थी, लेकिन बाद में सभी ने नारे को स्वीकार लिया।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश के बाद बड़ा झटका राजस्थान में लगा था। यहां 25 में से 11 सीट भाजपा हार गई थी। हार की बड़ी वजह जातीय राजनीति ही थी। जाट, गुर्जर और मीणा समुदाय ने भाजपा को वोट नहीं किया। कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग और जातीय राजनीति कारगर रही।
हरियाणा चुनाव के परिणाम आने से पूर्व तक राजस्थान में कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले सही स्थिति में दिख रही थी, लेकिन अब हालत बदलते दिख रहे है। हरियाणा की जीत ने भाजपा को बड़ी आॅक्सीजन दे दी है। केंद्र से लेकर राज्यों में कार्यकर्ता रिचार्ज हो गया है। पड़ोसी राज्य में जीती हुई बाजी के हार में बदलने से कांग्रेसियों में मायूसी है।
‘जातीय समीकरण साधने में कमजोर, इसलिए हिंदुत्व प्रमुख एजेंडा’
भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि जातीय समीकरण में वह कमजोर हैं। ऐसे में हिंदुत्व ही ऐसा एजेंडा है, जिसमें सभी नाराज जातियां एकजुट हो वोट कर सकती हैं। राजस्थान में सात सीटों पर उप चुनाव होने है। दो सीटों पर विधायकों के निधन के चलते चुनाव होगा, जबकि पांच पर लोकसभा में चुनकर जाने वाले विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीट है। इनमें देवली उनियारा, दौसा, झुंझुनू और रामगढ़ की सीट कांग्रेस की थी।
जबकि चौरासी और खींवसर कांग्रेस के सहयोगियों की थी। भाजपा की एकमात्र सीट सलूंबर है। अब इन सात सीटों का चुनाव भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे लोकसभा की हार का जवाब दिया जा सकेगा। ऐसे संकेत हैं कि आलाकमान ने सभी सात सीटों के लिए मोटे तौर पर सहमति बना ली है। चुनाव की घोषणा होते ही पार्टी नाम घोषित कर देगी। चुनाव आयोग आने वाले दिनों में कभी भी चुनाव की घोषणा कर सकता है।
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