- रेल पटरियों की सुरक्षा के रेल मंत्रालय ने शुरू की नई तकनीक का इस्तेमाल
मनोहर केसरी | नई दिल्ली | रेलवे सेफ्टी और पैसेंजर सिक्योरिटी को लेकर लगातार उठ रहे सवाल के मद्देनजर रेलवे ने पटरियों के साथ छेड़छाड़ और पटरियों में जंग पर लगाम लगाने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया है। फिलहाल, दो रेलवे जोन ईस्ट कोस्ट और साउथ सेंट्रल रेलवे जोन में इसका प्रयोग किया गया है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक़, पहले रेल पटरियों को स्लीपर के साथ टाइट करने के लिए चुड़ीदार रिंग का इस्तेमाल होता आया है जिसमें जंग लगने और छेड़छाड़ की आशंका ज्यादा होती है और बार बार चुड़ीदार रिंग को बदलने में आर्थिक नुकसान भी होता है। अब चुड़ीदार रिंग की जगह वर्ल्ड क्लास स्टैंडर्ड के पेंच का प्रयोग कर रहे हैं। इस पेंच को टॉर्क रेंच से कसा जाता है जिसे आम लोगों का खोल पाना संभव नहीं है।
इस तकनीक को लेकर रेल मंत्रालय के मेंबर इंफ्रा अनिल कुमार खंडेलवाल ने बताया कि इस पेंच की लाइफ 100 साल होती है, जबकि, चुड़ीदार रिंग को करीब 5 साल में बदलना पड़ता है। अब जो भी नई पटरी फैक्ट्री से बनकर आ रही है वो इस तकनीक के साथ बिछाई जाएगी और स्लीपर और पटरी को बिछाने और बदलने में भी आसानी होगी।
रेल पटरियों की होगी MRI
दरअसल, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि रेल पटरियों के अंदर और उसके ऊपरी हिस्से में कोई खामियां हो तो उसकी जांच आसान हो गया है। रेल मंत्रालय पटरियों की जांच के लिए अल्ट्रासोनिक फ्लो डिटेक्शन मशीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है ताकि, गलती की कोई गुंजाइश ना हो सके और समय रहते रेलवे ट्रैक पर बिछी पटरियों को बदला जा सके।
पहले रेलवे कर्मचारी पटरियों को एक मशीन के जरिए टच करके चेक करते थे, जबकि, अब अल्ट्रा सोनिक फ्लो मशीन से ऐसा नहीं है। इस बार आम बजट में रेलवे सुरक्षा के लिए 1 लाख करोड़ से ज्यादा रुपए आवंटित किया गया है।
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