Rahul Politics: राहुल की गलत ट्रेक राजनीति, राजग में टूट का सपना देखने वाले बिखराव की ओर

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Rahul Politics: राहुल की गलत ट्रेक राजनीति, राजग में टूट का सपना देखने वाले बिखराव की ओर
Rahul Politics: राहुल की गलत ट्रेक राजनीति, राजग में टूट का सपना देखने वाले बिखराव की ओर

Rahul Opposition Politics, अजीत मेंदोला,  (आज समाज) नई दिल्ली: लगभग 6 माह पहले लोकसभा चुनाव में मिली छोटी सी सफलता के बाद राजग में तोड़फोड़ कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार गिराने के सपने देखने वाले इंडिया गठबंधन में खुद ही टूट फूट का खतरा बढ़ गया है। यह सब लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी की जिद्द और अपनी अलग राजनीति के चलते होने जा रहा है। राहुल और पूरी कांग्रेस अहम मुद्दे छोड़ अडानी मामले को लेकर राजनीति करने में उतारू है। शीतकालीन सत्र के बीते सप्ताह कांग्रेस की इस राजनीति के चलते इंडिया गठबंधन में टूट के संकेत मिलने लगे हैं।

अलग राह पकड़ सकते हैं ‘इंडिया’ के कुछ घटक

आने वाले दिनों में गठबंधन के कुछ घटक दल अलग राह पकड़ सकते हैं। टीएमसी और वामदलों जैसे सबसे प्रमुख घटक दलों ने तो एक तरह से अलग राह पकड़ ली है। समाजवादी पार्टी भी अलग सी होती दिख रही है।उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी अब साथ रहेगी लगता नहीं है। आम आदमी पार्टी तो दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की ही खिलाफत कर रही है।सबसे अहम केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन खुद अडानी ग्रुप की सराहना कर चुके हैं। अडानी ग्रुप केरल में बड़े स्तर पर काम भी कर रहा है। शीतकालीन सत्र के बीते सप्ताह में राहुल के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी भी अडानी मामले में खुल कर राजनीति करते दिखी।शायद उनकी नजर केरल की राजनीति पर है।

बंदरगाह को लेकर वामदल कांग्रेस से अलग हुए

केरल में एक बंदरगाह को लेकर वामदल कांग्रेस से अलग हुए हैं। देश के सबसे बड़े बंदरगाह को अडानी ग्रुप ने बनाया है।केरल की राजनीति पर इसका असर साफ देखा जा सकता है।वामदलों के गठबंधन वाली केरल की सरकार और बीजेपी तो पहले से ही बंदरगाह का समर्थन करते रहे हैं अब लोकल कांग्रेसी भी बंदरगाह का समर्थन कर रहे हैं।लेकिन दिल्ली में राहुल गांधी,प्रियंका गांधी और पूरी कांग्रेस अडानी ग्रुप के खिलाफ अकेले मोर्चा खोले हुए है।केरल कांग्रेस के लिए बहुत अहम राज्य है।जिन राज्यों में आने वाले समय में चुनाव होने हैं उनमें कांग्रेस की एक मात्र उम्मीद केरल से ही है।बाकी हिंदी बेल्ट या अन्य किसी राज्य में कांग्रेस के लिए कुछ दिखता नहीं है। अगले साल दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं।इनके बाद केरल का नंबर है।

आपसी झगड़े के चलते केरल चुनाव हारी कांग्रेस 

कांग्रेस केरल का पिछला चुनाव गलत रणनीति और आपसी झगड़े के चलते हारी। बीते पांच साल में केरल की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ है। बीजेपी ने भी अपनी पैठ बना ली है। मुख्यमंत्री पी विजयन काफी मजबूत हुए हैं।वे खुल कर कांग्रेस की खिलाफत करते रहे हैं। वामदल गठबंधन भी जानता है बीजेपी अगर मजबूत हुई तो उनका नुकसान होगा।इसलिए उन्होंने राहुल और प्रियंका के केरल से चुनाव लड़ने का हमेशा विरोध किया। अब स्थिति वहां पर टकराव वाली हो गई है।कांग्रेस की हालत वहां पर चिंताजनक है।

राहुल की उदासीनता के चलते लगातार हो रही हार 

पांच साल में कांग्रेस के पास मजबूत नेता रहे नही। बचे हुए रमेश चेन्निथला और के सी वेणुगोपाल केंद्र की राजनीति कर रहे हैं। दोनों में जबरदस्त टकराव है। वेणुगोपाल आज के दिन कांग्रेस के नंबर दो नेता हैं। पार्टी के संगठन महासचिव और गांधी परिवार के करीबी हैं। केंद्र में आज कांग्रेस जितनी कमजोर हुई है उसी तरह केरल में भी होती जा रही है। इन हालात में राहुल गांधी और कांग्रेस राज्यों को लेकर नहीं चेती तो केरल जैसे राज्य में कांग्रेस की स्थिति यूपी और बिहार जैसी हो जाएगी। राहुल की राज्यों के प्रति उदासीनता के चलते ही कांग्रेस की लगातार राज्यों में हार होती जा रही है।

हरियाणा-महाराष्ट्र की हार ने हाशिए पर ला दिया

हरियाणा और महाराष्ट्र की हार ने कांग्रेस को पूरी तरह से फिर से हाशिए पर ला दिया। सहयोगी दल डर गए हैं।लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रेस के साथ जुड़े सहयोगी दल जो सत्ता वापसी का सपना देख रहे थे महाराष्ट्र की हार से डर गए हैं।यही वजह रही कि शीतकालीन सत्र में सबसे पहले टीएमसी ने राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठा उनके मुद्दों से अपने को अलग किया। फिर वामदल भी राहुल की अडानी जिद्द के चलते अलग हुए।समाजवादी पार्टी तो कांग्रेस के हर मुद्दों से नाराज है।

उपचुनाव ने साबित किया, कांग्रेस का नहीं वोट बैंक 

सपा नेता जानते हैं कि कांग्रेस जिस रास्ते पर चल रही है उसमें उन्हें साथ लेकर चलने में कोई फायदा है नहीं। उप चुनाव ने साबित भी कर दिया कि कांग्रेस का कोई वोट बैंक नहीं है। कांग्रेस उल्टा उनके मुस्लिम वोटरों को भ्रमित करने की राजनीति कर रही है। कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल की राजनीति भी न चाहते हुए यूपी से जुड़ गई है।सपा शुरू से ही अडानी और अंबानी के खिलाफ की जाने वाली राजनीति के खिलाफ रही है।

कांग्रेस और सपा में इस वजह से बढ़ी दूरी

शीतकालीन सत्र में संभल,अडानी और लोकसभा में सीट व्यवस्था को लेकर कांग्रेस और सपा में दूरी बढ़ी है।अडानी मामले में आप को छोड़ सब खिलाफ हैं।कांग्रेस के पुराने सहयोगी राजद भी अडानी अंबानी की खिलाफत के पक्ष में नहीं रहा।लालू यादव तो पूरे परिवार के साथ अंबानी परिवार की शादी में गए भी थे।बिहार में भी कह नहीं सकते क्या होगा।राजद को कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने से न तो विधानसभा में और न लोकसभा में कोई फायदा हुआ।राहुल पहले अडानी के साथ अंबानी उद्योग समूह पर भी हमला करते थे।लेकिन अब नहीं करते।गांधी परिवार अंबानी शादी में भले ही नहीं गया लेकिन पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन उस शादी में गांधी परिवार की तरफ से शामिल हुए थे।

समझ से परे राहुल की विरोध की राजनीति 

अडानी और अंबानी ग्रुप कांग्रेस शासित प्रदेशों में कई बड़े बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, उसके बाद भी राहुल गांधी की विरोध की यह राजनीति समझ से परे मानी जा रही है। असल आम जन से जुड़े मुद्दों को भूल राहुल अलग ट्रैक पर चल रहे हैं।जिसे सहयोगी पसंद नहीं कर रहे हैं।सहयोगी आम जन से जुड़े मुद्दों पर फोकस चाहते हैं।महाराष्ट्र में तो हार के बाद हाहाकार मचा हुआ है।उद्धव ठाकरे के पास अपनी पुरानी हिंदुत्व की राजनीति की तरफ लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।शरद पंवार उम्र के इस पड़ाव में क्या करेंगे उनके पास भी कुछ बचा नहीं है।राहुल गांधी अगर इसी तरह चलते रहे तो पार्टी बड़े संकट में फंस सकती है।

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