Rahul Gandhi & Caste Politics: जाति की राजनीति पड़ सकती है भारी, राहुल समझें कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है रीजनल नहीं

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Rahul Gandhi & Caste Politics जाति की राजनीति पड़ सकती है भारी, राहुल समझें कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है रीजनल नहीं
Rahul Gandhi & Caste Politics : जाति की राजनीति पड़ सकती है भारी, राहुल समझें कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है रीजनल नहीं

Congress News, अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जाति की राजनीति कर अपने को और पार्टी को संकट में डाल दिया दिखता है, क्योंकि पार्टी के अंदर बाहरी दबाव बढ़ गया है। जानकार भी मानते हैं कि राहुल ऐसे रास्ते पर चल रहे हैं जो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। राहुल एक तरह से पूर्व पीएम वी पी सिंह की हिंदुओं को बांटने की राजनीति कर रहे हैं। वीपी सिंह ने 1990 में लंबे समय तक राज करने की नीयत से मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू तो की लेकिन न तो उनकी पीएम की कुर्सी बची और ना ही राजनीति।देश में भड़की हिंसा के चलते उनको महीने भर ही सत्ता गंवानी पड़ी।

वी पी सिंह के टाइम रीजनल पार्टियों को मिला पूरा लाभ

जाति की राजनीति का पूरा लाभ रीजनल पार्टियों को मिला और मंडल से बंटे हिंदुओं को बीजेपी ने मंदिर से जोड़ अपने को ताकतवर किया।सबसे ज्यादा नुकसान में कांग्रेस रही। उससे हर तरह का वोट बैंक छिटक गया। उसके बाद से लेकर आज तक 35 साल में कांग्रेस अपने दम पर बहुमत नहीं ला पाई। कई राज्यों में कांग्रेस की जगह रीजनल पार्टियों ने ले ली। और कांग्रेस कमजोर होती गई। राहुल एक बार मंडल की ही उस राजनीति के रास्ते पर चल रहे हैं जिसका उनकी दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी ने विरोध किया था।

जातीय जनगणना को मुद्दा बना राजनीति कर रहे राहुल

राहुल गांधी बीते एक साल से जातीय जनगणना को मुद्दा बना राजनीति कर रहे हैं। साथ में ऐसी बातें बोलते हैं जिससे पार्टी की फजीहत होती है। मसलन कितने अफसर पिछड़ी जाति हैं, हलवा बांटने का फोटो दिखा सरकार को घेरना। उन्हें पता ही नहीं उनकी पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों के समय से परंपरा चल रही है।उसी को आधार बना वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सदन में राहुल से कांग्रेस से जुड़े संस्थानों में कितने पिछड़े हैं का सवाल उठाया तो राहुल परेशान दिखे।
यही नहीं सासंद अनुराग ठाकुर ने राहुल की जाति पर ही सवाल उठा उन्हें घेरे में ले लिया।

शुरुआत में किया था जाति की राजनीति का विरोध

सोशल मीडिया में  राहुल की जाति पर बहस शुरू हो गई। जबकि ये वही राहुल हैं जिन्होंने राजनीति की शुरुआत में खुद जाति की राजनीति का विरोध किया था। 2017 के गुजरात चुनाव में हिंदू वोटों की खातिर मंदिर मंदिर घूम अपने को जनेऊ धारी बह्मण बताया था। राहुल की सीधी गणित सबकी समझ में आ रही है। एसटी,ओबीसी और मुसलमानों को साथ ले कर चलो सत्ता अपने आप मिल जाएगी। वह भूल गए कि हिंदी बेल्ट के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में उनके सहयोगी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल तभी तक जिंदा ही तब तक हैं जब तकवह जाति की राजनीति कर रहे हैं। यूं कह सकते हैं कि वह भाजपा को तो फिर से साम्प्रदायिकता की राजनीति के लिए उकसा रहे हैं तो वहीं रीजनल पार्टियों को चिंता में भी डाल रहे हैं।

ब्रह्मण और अगड़ों को साधने की राजनीति करने लगे अखिलेश

जाति की राजनीति राष्ट्रीय स्तर पर अगर सफल होती तो किसी भी रीजनल पार्टी का नेता राष्ट्रीय स्तर का बन जाता। राहुल इस बात को समझ नहीं पाए और दूसरे मुद्दों को छोड़ जाति की राजनीति पर चल पड़े। एक तरफ उनके सहयोगी घोर जातिवादी समझे जाने वाले नेता अखिलेश यादव तो अब ब्रह्मण और अगड़ों को साधने की राजनीति करने लगे हैं।अखिलेश को लग रहा है जिस तरह बसपा नेता मायावती ने ब्राह्मणों को साधा था क्या पता उन्हें भी अगड़ी जाति का साथ मिल जाए।अखिलेश समझ गए हैं अगड़ी जाति के वोटरों के बिना बहुमत नहीं मिल सकता है। राहुल गांधी कांग्रेस के कभी परंपरागत वोट रहे ब्राह्मणों की पूरी तरह से खिलाफत में जुटे हैं। हालांकि अखिलेश को मायावती की तरह अगड़ी जातियों का वोट नहीं मिलेगा।

अखिलेश की परेशानी…

मायावती को 90 के दशक में अगड़ी जाति ने समजावादी पार्टी को हराने के चलते वोट किया था। मायावती ने सत्ता में आने के बाद अगड़ी जाति को निराश नहीं किया। मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए कानून व्यवस्था को सुधारने की ईमानदारी से कोशिश की थी। अखिलेश की परेशानी यह है कि सपा की इमेज आज भी अपराधियों को संरक्षण देने के साथ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने की है।राहुल को जाति की राजनीति करता देख अखिलेश भी उनके साथ खड़े सिर्फ इसलिए दिख रहे हैं कहीं उनका पिछड़ा और मुस्लिम वोट साथ न छोड़ दे।राहुल की राजनीति अभी पूरी तरह से रीजनल पार्टियों से प्रभावित दिख रही है।

भविष्य में हो सकता है बड़ा नुकसान

लोकसभा चुनाव में जाति की राजनीति करने वाले दलों के साथ गठबंधन कर आरक्षण और संविधान खतरे में है बोल सम्मानजनक सीटें तो पा ली, लेकिन इससे पार्टी को भविष्य में बड़ा नुकसान भी हो सकता है।क्योंकि न तो आरक्षण खत्म हुआ और संविधान के मुद्दे पर सरकार ने आपातकाल का जिक्र कर कांग्रेस को उल्टा फंसा दिया।राहुल इन दोनों मुद्दों पर तो अब चुप हैं लेकिन चक्रव्यू और पिछड़ों की राजनीति को लेकर फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं। पार्टी के भीतर भी उनकी जाति की रणनीति से नेता खुश नहीं है। एक बड़ा धड़ा जाति की राजनीति के पक्ष में न है और न रहेगा।पार्टी में भी अगड़ा पिछड़ा होना तय है।विरोध करने वाला धड़ा जानता है कि दो तीन राज्यों को छोड़ बाकी राज्यों में पिछड़ों की राजनीति महंगी पड़ सकती है।

इन राज्यों में महंगा पड़ सकता है आरक्षण और जाति का मुद्दा

हिमाचल, उत्तरखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा,दिल्ली,गुजरात ऐसे कई राज्य हैं जहां पर आरक्षण और जाति का मुद्दा कांग्रेस को महंगा पड़ सकता है। उतर प्रदेश जैसे जाति की राजनीति वाले राज्य में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर बीजेपी ताकतवर हुई है।जाति की खिलाफत वाले धड़े के नेताओं का मानना है जाति की राजनीति से रीजनल पार्टी तो फायदे में रहती है,लेकिन कांग्रेस को नुकसान होना तय है।क्योंकि अगड़ी जातियों के वोट के बिना कांग्रेस कभी भी अपने पैरों में खड़ा नहीं हो पाएगी।

सीधा असर राज्यों की राजनीति पर पड़ेगा

दूसरी अहम वजह है कि जाति की राजनीति का सीधा असर राज्यों की राजनीति पर पड़ेगा।एक तो कांग्रेस शासित राज्यों पर दबाव बढ़ेगा कि वह अपने यहां आरक्षण की सीमा बढ़ाएं,दूसरा तीन माह बाद होने वाले राज्यों के चुनाव में दलित और पिछड़े की राजनीति में कांग्रेस को हरियाणा,महाराष्ट्र जैसे राज्य में नुकसान भी हो सकता है।हरियाणा में आज के दिन में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के पास ऐसे चेहरे हैं जो पार्टी को सत्ता में वापस ला सकते हैं।ऐसे में अगर दलित या ओबीसी में से किसी को चेहरा बनाने की मांग उठती है तो कांग्रेस फंस जायेगी।

सांसद कुमारी शैलजा के समर्थक…उम्मीद

सांसद कुमारी शैलजा के समर्थक तो पूरी उम्मीद लगाए हुए हैं कि उनकी नेता ही हरियाणा की अगली मुख्यमंत्री होंगी।हरियाणा ऐसा राज्य जहां पर कांग्रेस ने पिछड़ों की राजनीति की तो जाट वोट छिटक जायेगा।महाराष्ट्र में भी राहुल की पिछड़ों की राजनीति के चलते अगड़ी जाति कांग्रेस से मुंह मोड़ सकती है।इससे दूसरे दलों को फायदा हो जायेगा।
सबसे अहम भारतीय जनता पार्टी हिंदू वोटों को एक जुट रखने के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के कार्ड को फिर फ्रंट में लाएगी।

भाजपा के पास बहुत सारे मामले

भाजपा के पास बहुत सारे ऐसे मामले हैं जो हिंदुओं को एक जुट कर सकता।ये कहना अयोध्या,मथुरा और काशी का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है।समान नागरिक कानून और पीओके ऐसे मुद्दे हैं जो कभी भी गरमाए जा सकते हैं।ये सही है कि हरियाणा,महाराष्ट्र और झारखंड में अभी विपक्ष मजबूत दिख रहा है।विपक्ष के मजबूत दिखने की वजह बीजेपी खुद ही है।हरियाणा में दस साल की एंटी इंकनवेंसी,महाराष्ट्र में तोड़फोड़ की राजनीति और झारखंड में विपक्ष का एक जुट रहना।तीनों जगह जाति की राजनीति अभी मुद्दा नहीं है लेकिन जाति की राजनीति ने जोर पकड़ा तो फिर कांग्रेस फंस सकती है।