Congress Organization, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी ने पार्टी संगठन को चुस्त दुरस्त करने के लिए जल्द कड़े कदम नहीं उठवाए तो पार्टी में एक बार फिर असंतुष्ट नेताओं की सरगर्मी बढ़ सकती है। सूत्रों की माने तो कर्नाटक के बेलगावी में 26 दिसंबर को होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ नेता संगठन को लेकर सवाल उठा सकते हैं। अभी संगठन में हालत यह है कि कई नेता दो दो पदों पर विराजमान हैं। दो पद वालों ने ही 2022 में अध्यक्ष के चुनाव के समय एक व्यक्ति एक पद की बात की थी। असफल हो रहे नेताओं को लेकर पार्टी के भीतर कई तरह के सवाल उठने भी लगे हैं।
हालांकि पार्टी ने बेलगावी में यह कार्यसमिति महात्मा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के 100 साल पूरे होने पर होने वाले समारोह को लेकर बुलाई है, लेकिन कई तरह की चर्चाएं गर्म हैं। इसके अगले दिन पार्टी वहीं बड़ी रैली भी आयोजित करेगी। हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में पार्टी की जिस तरह करारी हार हुई इसका एक बड़ा कारण मजबूत संगठन का न होना ही बताया जा रहा। नेताओं के अपने-अपने संगठन थे जिसके चलते पार्टी की हार हुई। दोनों राज्यों की जो रिपोर्ट आ रही हैं वह तो और भी हैरान करने वाली हैं। दोनों राज्यों में पार्टी संगठन में कोई तालमेल ही नहीं था।
सूत्र बताते हैं महाराष्ट्र में तो राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपनी पीसी रद्द करने की जानकारी दूसरे नेताओं से पता चली। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी इस बार कड़े फैसले कर सकते हैं। कमजोर कांग्रेस संगठन और समय पर फैसले नहीं किए जाने के मुद्दे को लेकर ही 2021 में असंतुष्ट नेताओं का ग्रुप बना था। उस दौरान भी पार्टी राज्यों में लगातार हार रही थी। राहुल गांधी पूरी तरह से अपनी मर्जी चला रहे थे, किसी नेता से कोई चर्चा नहीं करते थे। 2022 में माहौल ज्यादा गर्म होने पर नेताओं की नाराजगी को दबाने के लिए राजस्थान के उदयपुर में नव संकल्प शिविर आयोजित किया गया।
तमाम संकल्प लिए गए जिन्हें आज तक लागू नहीं किया गया। तय हुआ था जिन पदाधिकारियों को तीन साल से ज्यादा हो जायेगा उन्हें पद छोड़ना पड़ेगा।लेकिन हुआ इसके उल्ट। जिन्हें हटाने से संदेश जाता उन्हें हटाया नहीं गया बल्कि उन्हें और ताकत दे दी गई। ये नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से भी ताकतवर हो गए। ये गिनती के ताकतवर नेता ही राहुल गांधी और अब उनकी बहन प्रियंका गांधी को अपने हिसाब से चलाते हैं। ये नेता अपनी कुर्सी बचाने के चलते गांधी परिवार की हां में हां मिलाते हैं। इन्हीं गिनती के दो तीन नेताओं के चलते जीता जा सकने वाला राजस्थान पहले हारे फिर हरियाणा और महाराष्ट्र में भी जीती हुई बाजी हार में बदल दी। इन नेताओं को लेकर पार्टी के अंदर नाराजगी तो है ही ये भी कयास बाजी लगती है कहीं ये नेता सब कुछ जानबूझकर तो नहीं कराते।
पार्टी का बड़ा धड़ा मानता है कि आज के दिन उदयपुर संकल्प को लागू करने की सख्त जरूरत है। जिससे एक नई कांग्रेस तैयार की जा सके।उदयपुर संकल्प लागू होने का मतलब कांग्रेस मुख्यालय में सालों से जमे हुए मठाधीशों की छुट्टी तय।उदयपुर संकल्प शिविर में तीन नए विभाग खोलने की घोषणा की गई थी। इनमें सबसे अहम था पब्लिक इनसाइड डिपार्मेंट इसके माध्यम से जनता और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कर रिपोर्ट सीधे पार्टी अध्यक्ष को दी जाती।इस विभाग का मुखिया संगठन महासचिव से ताकतवर होता। दूसरा था राष्ट्रीय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट इसके माध्यम से पार्टी की विचारधार और सरकार की गलत नीतियों का प्रचार करने के लिए टीम तैयार करनी थी।तीसरा विभाग इलेक्शन मैनेजमेंट विभाग इसके तहत जिसका हर चुनाव का प्रबंधन शुरुआत से ही करना होता।
राहुल के करीबी ताकतवर नेताओं ने न विभाग बनने दिए और ना ही एक भी फैसला लागू होने दिया। मतलब उदयपुर संकल्प पूरी तरह से कागजों में दबा दिया गया।युवाओं को पार्टी में जगह देने के नाम पर भी फर्जीवाड़ा हो गया।इन नेताओं ने ही अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए पहले इंडिया गठबंधन की वकालत की फिर नियम कानून अपने लागू कर दिया।2024 में सत्ता की उम्मीद पाले हुए इन नेताओं ने पार्टी को दूसरे दलों का पिछलग्गू बना कर रख दिया।
दो राज्यों की करारी हार के बाद शीतकालीन सत्र में तालमेल का अभाव देखा गया। कोई ढंग की रणनीति नहीं थी।हार,संगठन में बिखराव,राज्यों की हालत चिंताजनक इन सब कारणों को लेकर नेताओं में अंदर ही अंदर नाराजगी पनप रही है।पार्टी के सामने चुनाव जीतने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।इन हालात में कभी भी कोई आवाज उठा सकता है।वैसे भी राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी और बहनोई राबर्ट वाड्रा जय भीम वाली राजनीति कर अपनी अलग पिछड़ों की राजनीति की अगुवाई करते दिखना चाहते हैं।
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