Quarantine has given us a lot too! क्वारंटाइन ने हमें बहुत कुछ दिया भी है!

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ग़ाज़ियाबाद के वसुंधरा स्थित जनसत्ता अपार्टमेंट में मेराफ़्लैट तीसरी मंज़िल पर है। मुझे अपने घर पर जाने-आने केलिए 40 सीढ़ियाँ चढ़नी-उतरनी पड़ती हैं। चूँकि मेरे ब्लॉकमें लिफ़्ट नहीं है, इसलिए सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने के अलावाऔर कोई चारा नहीं। आज से दो हफ़्ते पहले मैं आख़िरीसीढ़ी पहुँचते-पहुँचते हाँफने लगता था, और कई दफे साइडकी रेलिंग थाम कर चढ़ता था। हो भी क्यों ना! जब मैं 65 पूरे कर चुका हूँ। अब मज़ा देखिए, कि आजकल मैं बिनारेलिंग पकड़े सारी सीढ़ियाँ चढ़ जाता हूँ, और कोई हँफनीनहीं छूटती। कोई एक-दो दफे नहीं, बल्कि दिन में पाँच बारमैं ऊपर-नीचे चढ़ता-उतरता हूँ, लेकिन अब मैं बड़े मज़े सेयह काम पूरा कर लेता हूँ।

इसी तरह जब मैं वॉक करता हूँ, तब सुबह की हवा मुझेविषैली नहीं लगती। न शाम को गोधूलि के समय धूल भरीआंधी से बेचैनी होती है। अप्रैल का पहला हफ़्ता बीत चुकाहै। किंतु पंखे का रेगुलेटर एक पर ही है। एसी की ज़रूरतनहीं पड़ती। जो ख़बरें आ रही हैं, उनके मुताबिक़ कभीजलंधर से तो कभी चंडीगढ़ से हिमालय की चोटियाँ दीखरही हैं। नदियाँ अचानक से साफ़ और उनका पानी नीलादिखने लगा है। दोपहर ढलते ही जब सूर्य का ताप कम होताहै, तब आसमान भी नीला दिखता है। रात को तारे भी एकदो नहीं, सैकड़ों दिखने लगते हैं। ये सब अनोखे दृश्य हमभूल चुके थे। और इसकी वजह भी हम ही थे। हमने हीप्रकृति की इस ताज़गी को उससे छीन लिया था। औरदेखिए, प्रकृति ने हमें सबक़ सिखा दिया। यह कोरोना काएक पॉजिटिव संकेत है। अर्थात् कोरोना के डर से हम घरों मेंक़ैद हुए, जिसका नतीजा यह हुआ, कि रेल, मेट्रो, बस औरकारों के पहिए भी थमे। बड़े शहरों में फैली आबादी काबेतरतीब आवागमन रुका। जिसका नतीजा हुआ, रोज़ बढ़तेप्रदूषण से मुक्ति। इसीलिए मैं अब सीढ़ियाँ चढ़ने में नहींहाँफता।

जहां तक क्वारंटाइन की बात है, तो हमारे बचपन में भीचेचक, मलेरिया और प्लेग के दिनों में हम क्वारंटाइन होजाते थे। क्योंकि तब हम प्रकृति के क़रीब थे।इस संदर्भ मेंप्रसिद्ध पत्रकार और न्यूज़ चैनल आज तक में कार्यकारीसंपादक श्री विकास मिश्र ने अपना एक संस्मरण सुनाया, “मेरी उम्र तब करीब 11 साल रही होगी, जब मुझे चेचकहुई थी। चेचक वो भी बड़ी माता। गरमी के दिन थे, मेरे लिएअलग कमरा कर दिया गया था। ज्यादा करीब कोई नहींआता था, बस दिद्दा और कभी मां नीम की ढेर सारी पत्तियोंकी झाड़ को मेरे ऊपर फिराती रहती थीं। वो कमरा मेरे लिएजेल जैसा था। सबसे ज्यादा खीझ तो तब मचती थी, जबगांव की महिलाएं चौखट के पास आकर मुझे माताजीसंबोधित करती थीं। माताजी रक्षा करो। सादा खाना मिलताथा, एक रोज पानी छाना गया, फिर माना गया कि माताजीआशीर्वाद देकर जा रही हैं। कचूर और हल्दी का बुकवा(उबटन) लगना शुरू हुआ। करीब 10 दिन बाद एक तरह की कैद से आजादी मिली थी। वो कैद और उस आजादी काअहसास आज भी जेहन में ताजा है। वो मेरे लिए होमक्वारंटीन का ट्रेलर था।

उसके बाद अब कोरोना वायरस ने घऱ में कैद कर दिया है।वर्क फ्रॉम होम है, तो करीब 9 घंटे कामकाज में बीत जातेहैं। मेरा फोन एक तरह का कॉल सेंटर भी बन गया है। गांवमें पड़ोसी तुलई हरियाणा के यमुनानगर में फंसा है। मेहनत-मजदूरी करता है, फिलहाल राधास्वामी आश्रम में उसकोऔर उसके साथियों को रखा गया है। उसकी पत्नी का फोनआया-भइया कबले जेले में रहिहैं। मैंने कहा कि चैन से रहोऔर उसे भी रहने दो, कोई दिक्कत नहीं होने पाएगी। एकरिश्तेदार मुरादाबाद में फंसे हैं, वो भी गांव पहुंचने कीतरकीब तलाश रहे हैं। मेरे पास जितने फोन ये पूछने के लिएनहीं आ रहे हैं कि लॉकडाउन कब खुलेगा..? उससे ज्यादाफोन इस बात के लिए आ रहे हैं कि दारू कहां और कैसेमिलेगी..? कई लोगों को भ्रम होता है कि मीडिया वाले हरसमस्या का हल जानते हैं।

जब लॉकडाउन हुआ था तो मैं गांव में था। बाबूजी कीवार्षिकी में गया था, लेकिन फंस गया। एक रोज गाड़ीलेकर पत्नी और भतीजे के साथ निकल पड़ा। बलरामपुर, बहराइच, सीतापुर, बरेली और मुरादाबाद के रास्ते। पूरेरास्ते हमें बेचारगी, दीवानगी, हिम्मत और हौसले की तस्वीरेंमिल रही थीं। लोग बसों और ट्रकों में भर भरकर दिल्ली सेआ रहे थे. बसें भीतर ठसाठस थीं तो ऊपर छत पर भी लोगबैठे थे। दिल्ली से तमाम ऑटो वाले पूरे परिवार को ऑटो मेंभरकर निकल पड़े थे। इनमें से तमाम की मंजिल बिहार थी।जाने ये कैसे पहुंचे होंगे, कितने दिनों में पहुंचे होंगे। कुछलोग पैदल ही चले आ रहे थे, कुछ खड़े थे सड़क के किनारेइस आस में कि क्या पता कोई ट्रक वाला, बस वाला उन्हेंउनकी मंजिल की तरफ पहुंचा दे। रास्ते में ढाबे, रेस्टोरेंट बंदथे, लेकिन सलाम है सिख समुदाय के लोगों को। सीतापुरसे बरेली और उसके आगे तक, रास्ते में कई सरदारों नेसड़क के दोनों तरफ मुफ्त में भोजन करवाने का इंतजामकर रखा था। हमारी गाड़ी को भी कई जगह हाथ देकररोकना चाहा। हमने उनके इस पुनीत काम को प्रणाम किया, धन्यवाद देकर आगे बढ़े।

कुदरत के इस कोप ने सारा सिस्टम बिगाड़ दिया है। कोरोनाने शादी-ब्याह, जनेऊ की तारीखें बदल दीं। चर्चा है कि येवायरस जानवरों से फैलता है, लेकिन क्या करिश्मा है, इंसान के भेष में जानवर भी शायद इस वायरस से डर गए।बलात्कारी, हत्यारे, लुटेरे, अपहरणकर्ता, चोर सब जैसे संतहो गए हैं।