Qualities for becoming the best and influential administrative officers: प्रशासनिक अधिकारियों के सर्वोत्तम तथा प्रभावशाली बनने के गुण

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भारत जैसे लोकतंत्रात्मक देश में जहां राजसत्ता जनता में निहित है वहां लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि तथा प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी जनता के स्वामी न होकर सेवक होने चाहिए। संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय देने का प्रावधान किया गया है। यह तभी सम्भव होगा जब हमारे राजनेता तथा नौकरशाह वास्तव में प्रतिबद्ध, कार्यकुशल, प्रभावशाली, श्रेष्ठ, जवाबदेह, ईमानदार, सहयोगी, नम्र, निष्पक्ष, दूरदर्शी तथा उत्तरदायी हों। इसके साथ-साथ कुछ और गुण भी होने चाहिए।
प्रशासन में लगे अधिकारियों व कर्मचारियों के कंधों पर अधिक कार्य भार होता है और उन्हें सरकारी नीतियों को कार्यान्वित, प्रबोधन व मूल्यांकन करना होता है। निर्धारित किए लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उन्हें मेहनत व लगन से काम करने होते हैं। ऐसा करते समय उनकी भूमिका एक परिवर्तन के एजेंट की होनी चाहिए। अगर हमारे नौकरशाह अधिक से अधिक गुणयुक्त हों तो बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, पर ऐसा नहीं हो पाया है। समय के साथ-साथ चलने और उत्तम एवं प्रभावशाली बनने के लिए कई गुण पैदा करने होंगे ताकि देश के सर्वांगीय विकास को सुनिश्चित किया जा सके। प्रत्येक कर्मचारी को स्वभाव में हठी नहीं होना चाहिए, अभिमानी नहीं होना चाहिए तथा निर्बल नहीं होना चाहिए।
दूसरे शब्दों में वे अड़ियल, सड़ियल तथा मरियल न हों क्योंकि ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को लोग भी अच्छा नहीं समझते। उन्हें थकना न होगा, झुकना न होगा और रुकना न होगा। अगर वे थकने वाले होंगे तो ज्यादा योगदान देने में असमर्थ होंगे। झुकने वाले हमेशा अपने स्थान पर निर्णय लेने में पीछे रहते हैं और रुकने वाले बदलते समय के अनुरूप नहीं चल पाते। संबंधित योजनाओं, कार्यक्रमों तथा स्कीमों के अलावा, कानूनों, नियमों, विनियमों, परिनियमों की पूर्ण जानकारी होनी अनिवार्य है नहीं तो असफलता का मुंह देखना पड़ेगा। समय, स्थान, व्यक्ति तथा मुद्दे को हमेशा ध्यान में रखते हुए कदम उठाने चाहिए, नहीं तो अपमानित होना पड़ेगा। इसलिए हमेशा समझदारी से काम लेना होगा। अफसरशाही को छोड़कर हमेशा एक सेवक बनकर कार्य करने चाहिए। जनता को अपनेपन का आभास होना चाहिए। लोगों या सेवाओं को प्राप्त करने वालों से दूरियों को कम करते हुए कार्यों को निपटाना चाहिए। आत्मविश्वास लक्ष्य प्राप्ति में हमेशा लाभदायक होता है। जिनमें इसकी कमी होती है उनका आत्मसम्मान भी बहुत कम होता है। आत्मविश्वास से बड़े से बड़े कार्यों को पूरा करने में सफलता मिलती है। नकारात्मक विचारों को भारी नहीं पड़ने देना चाहिए।
प्राप्त की गई सफलताओं को हमेशा याद रखें और योग्यता को आगे बढ़ाते जाए। कुछ नया करने की कोशिश करते रहें, यदि रास्ते में बाधाएं हों तो दृढ़ता से उनका सामना करें, पक्का सफल होंगे। लोगों के कल्याण के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को समयबद्ध तरीके से करने के लिए सभी साथियों का सहयोग प्राप्त कीजिए। दायित्वों के प्रति सजग रहते हुए पूर्ण समर्थन की भावना पैदा कीजिए और अपने दायित्वों को पारदर्शी, जवाबदेह व भ्रष्टाचार मुक्त तरीकों से पूरा कीजिए। किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने पर सफलता का श्रेय स्वयं लेने के स्थान पर अपने समूह यानि टीम को दें, इससे आप में टीमवर्क की भावना पैदा होगी और आपके विभाग/संस्था/अभिकरण का नाम ऊंचा होगा। हमेशी निजी स्वार्थ को त्यागने की भावना पैदा करें। चाहे आप किसी भी पद पर आसीन हों अहंकारी बनने से गुरेज कीजिए और यह मत भूलें कि यहां सब कुछ अस्थाई होता है और अच्छे कर्म करने वालों व अपने आप को निम्न समझने वालों की हमेशा जीत होती हैं और किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। गुरबाणी में लिखा है कि नानक नीवां जो चले लागी न ताती वाउ। इसका अर्थ है कि जो अपने आप को ऊंचा नहीं मानते उनका कभी नुकसान नहीं होता। गीता के सार पर अमल करने वाले कभी भी किसी का नुकसान नहीं करते और न ही बुरा करने की सोचते हैं।
जब सब कुछ यहां का यहीं रह जाना है तो हमें अपने कार्यों को ईमानदारी और लालच के बगैर करते रहना चाहिए। श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी बाणी में पराए (गैर) हक के फल के बारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंग 141 पर उच्चारण किया, हक पराइआ नानका उस सुअर उस गाय ।। गुरु पीर हामा ता भरे आ मुरदार न खाई।। इसलिए, हमें नेक कमाई करनी चाहिए। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को जुगाड़ी (उपाय कुशल) होना चाहिए। उन्हें समय के अनुसार अपने आप को चलाना जनहित में होता है। किसी भी कार्य को समय पर और इसके महत्व को देखते हुए सीमित संसाधनों के उपयोग को सुनिश्चित करते हुए उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए उद्देश्य को प्राप्त करना चाहिए। उचित विकल्पों का पता लगाकर प्रयोग में लाए जा सकते हैं। मुक्त द्वार प्रशासन प्रत्येक राज्य में अपनाना चाहिए क्योंकि एक तो समय पर शिकायतों को समय पर निपटारा हो जाता है तथा धन एवं ऊर्जा की बचत होती है। इससे लोगों में प्रशासन के प्रति एक तो विश्वास बढ़ता है और दूसरी ओर प्रशासनिक कार्यकुशलता बढ़ती है। कार्मिकों को अपने ज्ञान व सूचना में निरंतर बढ़ोतरी करनी चाहिए। जब अवसर प्राप्त हों तो उनका पूरा लाभ उठाना चाहिए। नवीनता या नवपरिवर्तन की ओर सद्य जिज्ञासु/उत्सुक रहना चाहिए ताकि सुशासन स्थापित हो। विचार-विमर्श करते समय सभ्य भाषा को प्रयोग करें और कभी भी कड़वे शब्दों का प्रयोग न करें। कठोर या कड़वे शब्द हर समय नफरत पैदा करते हैं इसीलिए, सभ्य व मिठास वाली शब्दावली का प्रयोग ही करें। आचार संहिता की दृष्टि से बनाए आवश्यक नियमों का पालन करें। आचार-नियम लोक सेवकों से मांग करते हैं कि वे कर्तव्यपालन निष्ठा और ईमानदारी से करें।

डॉ. मोहिंद्र सिंह