Priyanka Gandhi | अजीत मेंदोला | नई दिल्ली । महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के साथ वायनाड लोकसभा सीट के लिए उप चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस में गतिविधियां बढ़ गई हैं। हरियाणा में हुई हार के बाद कांग्रेस के लिए अब महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव बहुत अहम हो गए हैं, लेकिन इन चुनाव के साथ कांग्रेस के लिए वायनाड का चुनाव भी खासा महत्वपूर्ण हो गया है।
इसका कारण यह है कि गांधी परिवार के एक और सदस्य प्रियंका गांधी की चुनावी राजनीति में एंट्री होने जा रही है। चुनाव की घोषणा की खबर मिलते ही प्रियंका मंगलवार को इंग्लैंड से स्वदेश लौट आई हैं। प्रियंका के नाम की घोषणा उनके भाई राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट से इस्तीफे के साथ ही कर दी थी। प्रियंका लंबे समय से संसद में आने के लिए प्रयास कर रही थी, लेकिन परिवार में सहमति नहीं बनने के चलते देरी हो गई है।
दरअसल, प्रियंका गांधी की वायनाड से जीत तय है, क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर मुस्लिम लीग का अच्छा खासा प्रभाव है। मुस्लिम लीग कांग्रेस की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है। प्रियंका के लोकसभा में चुनकर आने से कांग्रेस की राजनीति पर भी असर पड़ेगा। वह पार्टी के अंदर और बाहर काफी लोकप्रिय हैं।
अभी तक वह अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए पर्दे के पीछे से सलाहकार की भूमिका में काम करती रही हैं। इससे पूर्व वह अपने पिता राजीव गांधी के साथ भी सक्रिय थी। राहुल गांधी के 2004 में चुनाव लड़ने की घोषणा से पूर्व तक माना जा रहा था कि प्रियंका पहले चुनाव लड़ राजनीति में प्रवेश करेंगी, लेकिन पार्टी ने तब चुनाव की घोषणा होते ही राहुल के राजनीति में सक्रिय होने की घोषणा कर सभी को चौंकाया था। राहुल उससे पूर्व कभी भी राजनीति में दिलचस्पी लेते नहीं दिखे थे। प्रियंका ही अपनी मां के साथ सक्रिय दिखती थी।
भाई राहुल गांधी के 2004 में सांसद बनने के बाद प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी की जिम्मेदारी संभालनी शुरू कर दी। इन दोनों सीट पर प्रियंका मां और भाई के राजनीतिक काम देख रही थी। इसके बाद 2014 में राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद वह राजनीति में काफी सक्रिय हो गई थी।
कई राजनीतिक फैसलों में उनका सीधा दखल था। उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी प्रशांत किशोर को देकर समाजवादी पार्टी गठबंधन और फिर खुद उत्तर प्रदेश की कमान संभाल नए चेहरों को आगे बढ़ाना, महिलाओं को चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट देना जैसे कई बड़े फैसले किए।
हालांकि इसके बावजूद उनके हाथ असफलता ही लगी। पंजाब की राजनीति में उनके सीधे दखल से पार्टी को नुकसान ही हुआ। बीच—बीच में उनके और राहुल के बीच तनातनी की खबरें भी बाहर आती रही, लेकिन भाई—बहन ने हमेशा इस तरह की खबरों को नजरअंदाज किया। उन्होंने एकजुटता दिखा पार्टी को आगे बढ़ाया।
प्रियंका हमेशा कंधे से कंधा मिला भाई के साथ खड़ी दिखाई दी। प्रियंका पार्टी में अभी बिना प्रभार के महासचिव की जिम्मेदारी निभा रही हैं। वे चुनाव वाले राज्यों में स्टार प्रचारक बन प्रचार में जाती हैं। हिमाचल और तेलंगाना की जीत में उनकी अहम भूमिका थी। लोकसभा में चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया।
सबसे अहम रायबरेली और अमेठी में प्रियंका लगातार दो सप्ताह तक वोटिंग के दिन तक जमी रही। इन दोनों सीटों पर मिली जीत में एक तरह से उन्होंने अहम रोल निभाया। वह अपने भाषणों में लोकल जन को शामिल करने की कोशिश कर प्रभाव छोड़ती हैं।
अब जबकि वह वायनाड से लोकसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गई है। जल्द ही नामांकन की तारीख भी सामने आ जाएगी। पार्टी में उनको लेकर उत्साह और बड़ी उम्मीदें है। जानकार मानते हैं कि प्रियंका के लोकसभा में चुनकर आने से पार्टी को नई ताकत मिलेगी।प्रियंका के आने से इंडिया गठबंधन भी प्रभावशाली होगा, लेकिन यह देखना होगा कि पार्टी उन्हें क्या जिम्मेदारी देती है।
दूसरा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम क्या रहते हैं, क्योंकि इन दोनों राज्यों इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ मिल कांग्रेस चुनाव लड़ने जा रही है। झारखंड में तो कांग्रेस पूरी तरह से झारखंड मुक्तिमोर्चा पर निर्भर है। जबकि महाराष्ट्र में वह नेतृत्व करने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस वहां पर शरद पंवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिव सेना के साथ मिल चुनाव लड़ेगी, लेकिन सीटों को लेकर तीनों दलों में खींचतान जारी है। हरियाणा की हार के बाद सहयोगी दल कांग्रेस पर हमलावर बने हुए हैं। हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है कि जल्द ही सब कुछ तय हो जाएगा।
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