नई दिल्ली, एजेंसी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में छह सितंबर को होने जा रहे छात्र संघ चुनाव से पहले बुधवार देर रात को प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई। इस बहुचर्चित कार्यक्रम में उम्मीदवारों ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाए जाने और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर जान लेने ,एनआरसी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही अमेजन के जंगलों में आग जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी ध्यान खींचा। जेएनयू के अंदर ही चल रहे मुद्दों को भी उठाया गया लेकिन भाषणों का अधिकतर हिस्सा सरकार की उपलब्धियां या आलोचनाओं पर केंद्रित रहा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद : एबीवीपी: उम्मीदवार के मामले में सरकार की उपलब्धियां गिनाईं गईं जबकि विपक्षी पार्टी के उम्मीदवारों ने सरकारी नीतियों की आलोचना की। छात्रों ने डिबेट शुरू होने से पहले ही प्रसिद्ध गंगा ढाबे के पास वाले इलाके में जमा होना शुरू कर दिया था जबकि डिबेट में शामिल हो रहे उम्मीदवारों के समर्थकों ने नारेबाजी करते हुए “ढपली” बजा कर उनका जोश बढ़ाया।
कुछ रुकावटें भी आईं जब तकनीकी खामी की वजह से 45 मिनट तक डिबेट को रोकना पड़ा। बाद में एबीवीपी और वाम समर्थकों के बीच छोटी-मोटी झड़प के चलते 15-20 मिनट तक डिबेट प्रभावित रही। छात्र राजद की प्रियंका भारती और बापसा उम्मीदवार जितेंद्र सुना को विद्यार्थियों की सबसे ज्यादा वाह वाही मिली और यहां तक कि आरएसएस-भाजपा पर निशाना साधने वाले मुद्दों पर उनके प्रतिद्वंद्वियों ने भी उनके लिए तालियां बजाईं। आरएसएस से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार मनीष जांगिड़ ने ‘भारत माता की जय और ‘वंदे मातरम के नारों के साथ डिबेट शुरू की। उन्होंने कहा, ”टुकड़े-टुकड़े गिरोह नौ फरवरी को विश्वविद्यालय पर धब्बा लगाने के लिए जिम्मेदार है। जब जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया गया तो हम इस कदम का जश्न मना रहे थे लेकिन वामपंथी सेना को गालियां दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि निर्वाचित होने पर एबीवीपी ”कैम्पस केंद्रित राजनीति का मॉडल पेश करेगी और वंचित वर्ग की महिलाओं का प्रवेश (डेप्रिवेशन प्वाइंट) सुनिश्चित करेगी। जांगिड़ ने छात्रावास की स्थितियों और कक्षाओं में सुविधाओं के अभाव का मुद्दा भी उठाया। बहस के दौरान वाम समर्थकों और एनएसयूआई सदस्यों की लगातार नारेबाजी के बीच उन्होंने छात्रों से कहा, आप जिस प्लेट में खाते हैं उसी में कुत्ते और चूहे भी खाते हैं। कांग्रेस से संबद्ध नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के उम्मीदवार प्रशांत कुमार ने देशद्रोह विवाद का जिक्र करने के लिए जांगिड़ की आलोचना की और कहा कि यह मामला ”न्यायालय के विचाराधीन है। इस पर उन्हें कई वाम और बापसा (बीएपीएसए) समर्थकों से तालियां मिलीं।
उन्होंने कहा, ”हमसे दो करोड़ नौकरियों का वादा किया गया था लेकिन नौकरियां कहां हैं? नजीब के साथ जो हुआ मैं उसकी निंदा करता हूं। जेएनयू छात्र नजीब कैम्पस से लापता हो गया था और आज तक उसका कोई पता नहीं चल पाया है। वाम एकता के अध्यक्ष पद की उम्मीदवार आईशी घोष ने पत्रकार गौरी लंकेश और विद्वान कलबुर्गी के विचारों से समर्थन जताया। उन्होंने कहा कि वे अखलाक, जुनैद और पहलू खान को नहीं भूलेंगे जिनकी अलग-अलग घटनाओं में भीड़ ने कथित तौर पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।
उन्होंने कहा, ‘पूंजीवादी बल पूरे विश्व में दक्षिणपंथियों के उद्भव को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हम धन बल के आधार पर लड़े गए और जीते गए चुनावों को लोकतांत्रिक ढंग से हुए चुनाव नहीं मानते हैं।’ उन्होंने आरटीआई कानून और ट्रांसजेंडर अधिकार विधेयक को कमजोर करने का सरकार पर आरोप लगाया और कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का भी आरोप लगाया। एबीवीपी और वाम समर्थकों के बीच झड़प के कारण घोष का भाषण थोड़ी देर के लिए बाधित हुआ।
बिरसा आंबेडकर फूले छात्र संगठन (बापसा) उम्मीदवार जितेंद्र सुना ने ‘जीतेगा जितेंद्र के नारों के बीच मंच संभाला। उन्होंने ‘अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे’ कश्मीरियों को सलाम करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की और साथ ही असमियों को भी सलाम किया ‘जो अपनी नागरिकता के लिए लड़ रहे हैं। सुना ने कहा कि वह मजदूर थे और उनकी प्रेसिडेंशियल डिबेट में ”उनकी जिंदगी का संघर्ष दिखता है। उन्होंने दक्षिणपंथियों और वामपंथियों पर निशाना साधा।