मुझे एक सच्ची धटना याद आती है जो मैंने कभी बचपन में सुनी थी। एक कैदी को कत्ल के इल्जाम में मौत की सजा सुनाई गई। उसकी फांसी के एक दिन पहले डाक्टरों की एक टीम उसके पास गई, और उन्होंने उससे कहा कि जब तुम्हें कल फांसी दी जाएगी तो तुम्हारे गले की तीन हड्डियाँ टूटेंगी, और डेढ़ मिनट तक तुम दर्द से छटपटाते रहोगे ङ्घऔर फिर तुम्हारी मौत हो जाएगी। कैदी ने पूछा कि आप कहना क्या चाहतें हैं? डाक्टरों ने कहा कि हम तुम्हारे साथ एक रीसर्च करना चाहतें हैं, तुम्हें फांसी न देकर हम तुम्हें एक कोबरा सांप से डंसवा देंगे, इसमें तुम्हें बस एक सुई चुभने के बराबर दर्द होगा, और तुम 5 से 15 सेकेंड में मर जाओगे। तुम्हें डेढ़ मिनट तक छटपटाना नहीं पड़ेगा। लेकिन सब कुछ तुम्हारे हाथ में है, अगर तुम अनुमति दोगे तभी हम ऐसा करेंगे, वर्ना डेढ़ मिनट तक दर्द में फांसी से ही मरना होगा। कैदी को भी यह तरीका ठीक लगा, उसने डेढ़ मिनट तक दर्द झेलने के बजाय 15 सेकेंड में मरना उचित समझा। और बोला ठीक है, अगर मरना ही है तो यही तरीका सही।
अब शुरू होता है दिमाग का खेल। अगले दिन उसे एक स्टूल पर बैठाया गया, उसके सामने एक काले रंग का भयानक-सा किंग कोबरा सांप लाकर रख दिया गया, और उससे कहा गया कि देखो, यह दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक है यह तुम्हें डंसेगा और तुम्हारी मौत हो जाएगी। आप कैदी की मनस्थिति समझ सकते हैं। उसके पसीने छूटने लगे। उसके दिमाग में अब यह चलने लगा कि सांप आएगा, डंसेगा और मैं मर जाउंगा। मौत को सामने देखकर उसका चेहरा सूखकर छोटा हो गया। उसके करीब सांप को लाकर रख दिया गया और उसका चेहरा और गर्दन
उस काले कपड़े से ढक दियह गयह, जो फांसी के वक़्त पहनाया जाता है। इसके बाद डाक्टरों ने उससे कहा कि अब सांप तुम्हारे पैरों की तरफ बढ़ रहा है, यह तुम्हें डंसेगा और तुम मर जाओगे। यह कहकर उसके पैर में सांप से न डंसवा कर सिर्फ एक सुई चुभा दी गयी। आश्चर्य होगा जानकर कि वो कैदी उसी समय मर गया। इससे ज्यादा आश्चर्य की बात तब हुई जब उसका पोस्टमोर्टम किया गया। पोस्टमोर्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि उसकी मौत किसी जहरीले जख़्म के कारण हुई है जो अक्सर सांप काटने से होता है। यह सब दिमाग का खेल था, एक दिन पहले से ही उसके दिमाग में यह बात चलायी जा रही थी कि उसे सांप से डंसवाकर मारा जाएगा। दिमाग उसी दिशा में सोचने लगा और दिमाग ने एक सुई के चुभन को भी सांप का डंसना समझकर खुद को खत्म कर लिया।
यह है विचारों की शक्ति। जैसे आप दिमाग में विचार लाते हैं, आपको वैसा ही रिजल्ट मिलता है। इसलिए हमेशा सजगता से पॉजिÞटिव बातों को ही दिमाग तक आने दें, और सिर्फ़ पॉजिÞटिव ही सोचें। वर्ना एक बार दिमाग में नैगेटिविटी प्रवेश कर गयी तो दिमाग उसी दिशा में सोच-सोच कर आप के अंदर निराशा भर देगा। हमारी भावनाएं हमारे दिमाग को प्रभावित करती हैं, हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं, और हमारी सफलता या असफलता का कारण बनती हैं।
यदि दिल में होगा कि मैं फलां काम नहीं कर सकता, यह तो मेरी काबलियत से बड़ा है, या मेरी औकात से बड़ा है, तो सच मानिए, मैं सही कह रहा हूं क्योंकि सारी कोशिशों के बावजूद भी मैं उसे पूरा नहीं कर पाउंगा, और अगर मैंने सोच लिया कि मैं कर सकता हूं, तो मैं यह भी सच ही कह रहा हूं क्योंकि मैं पूरा दिल लगाकर कोशिश करूंगा, जहां अड़चन आयेगी वहां रास्ता ढूढूंगा, किसी से सलाह लूंगा, किसी से सहायता लूंगा, पर काम पूरा कर के दिखाउंगा। यह भी विचारों की शक्ति है। हमारा दिमाग हमारे विचारों से, हमारी भावनाओं से चलता है। इसीलिए यह समझना आवश्यक है कि भावनाओं को बदले बिना या उन पर नियंत्रण पाये बिना आप सफलता की चाबी हासिल नहीं कर सकते। सफलता की दूसरी चाबी है, हर किसी की सहायता करना, बिना किसी लालच के, बिना किसी स्वार्थ के। उसकी भी जो जीवन भर कभी भी आपके किसी काम नहीं आ सकता। इससे लोगों के साथ आपके रिश्ते मजबूत हो जाएंगे।
हमेशा से मेरा यही नियम रहा है। मेरे संपर्क में जो भी आया, अगर मैं उसके लिए कुछ कर सकता था तो किया। बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी लालच के। यह नहीं देखा कि सामने वाला आदमी मेरे काम का है या नहीं, यह नहीं देखा कि सामने वाला आदमी मुझे कोई बिजनेस दे सिकता है या नहीं। किसी का काम करते हुए मैंने कभी छोटा-बड़ा नहीं देखा। मेरा कोई दोस्त हो, ग्राहक हो, एंप्लाई हो, या एक्स-एंप्लाई हो, अगर मैं भला कर सकता हूं तो किया।
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
अब शुरू होता है दिमाग का खेल। अगले दिन उसे एक स्टूल पर बैठाया गया, उसके सामने एक काले रंग का भयानक-सा किंग कोबरा सांप लाकर रख दिया गया, और उससे कहा गया कि देखो, यह दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक है यह तुम्हें डंसेगा और तुम्हारी मौत हो जाएगी। आप कैदी की मनस्थिति समझ सकते हैं। उसके पसीने छूटने लगे। उसके दिमाग में अब यह चलने लगा कि सांप आएगा, डंसेगा और मैं मर जाउंगा। मौत को सामने देखकर उसका चेहरा सूखकर छोटा हो गया। उसके करीब सांप को लाकर रख दिया गया और उसका चेहरा और गर्दन
उस काले कपड़े से ढक दियह गयह, जो फांसी के वक़्त पहनाया जाता है। इसके बाद डाक्टरों ने उससे कहा कि अब सांप तुम्हारे पैरों की तरफ बढ़ रहा है, यह तुम्हें डंसेगा और तुम मर जाओगे। यह कहकर उसके पैर में सांप से न डंसवा कर सिर्फ एक सुई चुभा दी गयी। आश्चर्य होगा जानकर कि वो कैदी उसी समय मर गया। इससे ज्यादा आश्चर्य की बात तब हुई जब उसका पोस्टमोर्टम किया गया। पोस्टमोर्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि उसकी मौत किसी जहरीले जख़्म के कारण हुई है जो अक्सर सांप काटने से होता है। यह सब दिमाग का खेल था, एक दिन पहले से ही उसके दिमाग में यह बात चलायी जा रही थी कि उसे सांप से डंसवाकर मारा जाएगा। दिमाग उसी दिशा में सोचने लगा और दिमाग ने एक सुई के चुभन को भी सांप का डंसना समझकर खुद को खत्म कर लिया।
यह है विचारों की शक्ति। जैसे आप दिमाग में विचार लाते हैं, आपको वैसा ही रिजल्ट मिलता है। इसलिए हमेशा सजगता से पॉजिÞटिव बातों को ही दिमाग तक आने दें, और सिर्फ़ पॉजिÞटिव ही सोचें। वर्ना एक बार दिमाग में नैगेटिविटी प्रवेश कर गयी तो दिमाग उसी दिशा में सोच-सोच कर आप के अंदर निराशा भर देगा। हमारी भावनाएं हमारे दिमाग को प्रभावित करती हैं, हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं, और हमारी सफलता या असफलता का कारण बनती हैं।
यदि दिल में होगा कि मैं फलां काम नहीं कर सकता, यह तो मेरी काबलियत से बड़ा है, या मेरी औकात से बड़ा है, तो सच मानिए, मैं सही कह रहा हूं क्योंकि सारी कोशिशों के बावजूद भी मैं उसे पूरा नहीं कर पाउंगा, और अगर मैंने सोच लिया कि मैं कर सकता हूं, तो मैं यह भी सच ही कह रहा हूं क्योंकि मैं पूरा दिल लगाकर कोशिश करूंगा, जहां अड़चन आयेगी वहां रास्ता ढूढूंगा, किसी से सलाह लूंगा, किसी से सहायता लूंगा, पर काम पूरा कर के दिखाउंगा। यह भी विचारों की शक्ति है। हमारा दिमाग हमारे विचारों से, हमारी भावनाओं से चलता है। इसीलिए यह समझना आवश्यक है कि भावनाओं को बदले बिना या उन पर नियंत्रण पाये बिना आप सफलता की चाबी हासिल नहीं कर सकते। सफलता की दूसरी चाबी है, हर किसी की सहायता करना, बिना किसी लालच के, बिना किसी स्वार्थ के। उसकी भी जो जीवन भर कभी भी आपके किसी काम नहीं आ सकता। इससे लोगों के साथ आपके रिश्ते मजबूत हो जाएंगे।
हमेशा से मेरा यही नियम रहा है। मेरे संपर्क में जो भी आया, अगर मैं उसके लिए कुछ कर सकता था तो किया। बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी लालच के। यह नहीं देखा कि सामने वाला आदमी मेरे काम का है या नहीं, यह नहीं देखा कि सामने वाला आदमी मुझे कोई बिजनेस दे सिकता है या नहीं। किसी का काम करते हुए मैंने कभी छोटा-बड़ा नहीं देखा। मेरा कोई दोस्त हो, ग्राहक हो, एंप्लाई हो, या एक्स-एंप्लाई हो, अगर मैं भला कर सकता हूं तो किया।
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)