Poster war started in Lucknow, SP-BJP came face to face: लखनऊ में शुरू हुआ पोस्टर वॉर, आमने सामने आये सपा-भाजपा 

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लखनऊ : नागरिकता संशोधन कानून को लेकर यूपी की राजधानी लखनऊ में हुई हिंसा को लेकर यूपी सरकार ने आरोपियों के पोस्टर शहर भर में लगवाए। जिसने बाद में विवाद का रूप ले लिया और मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। हिंसा में हुए नुकसान की वसूली को लेकर लगवाए गए पोस्टर को लेकर लखनऊ में भाजपा और समाजवादी पार्टी आमने-सामने आ गए हैं।
राजधानी लखनऊ में सपा नेता आईपी सिंह ने दुष्कर्म मामले में आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद और दुष्कर्म के ही आरोप में सजा काट रहे भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर का बैनर लोहिया पार्क चौराहे पर लगवा दिया है। यह बैनर ठीक उसी जगह लगा है जहां उपद्रव के आरोपियों का विवादित पोस्टर लगा हुआ है। सपा ने जो पोस्टर लगाया है उस पर दोनों आरोपियों सेंगर और चिन्मयानंद की तस्वीर भी लगी है। इस सबसे ऊपर लिखा है, ‘ये हैं प्रदेश की बेटियों के आरोपी, इनसे रहें सावधान’। इसके बाद इस पोस्टर पर सबसे नीचे लिखा है, ‘बेटियां रहें सावधान, सुरक्षित रहे हिंदुस्तान’।
इससे पहले योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा मामले में आरोपियों पर कार्रवाई की थी। उनके खिलाफ लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर 100 वसूली पोस्टर लगाए गए थे। इन पोस्टरों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक से इनकार कर दिया था।गौरतलब है कि  गत 19 दिसम्बर को राजधानी लखनऊ में संशोधित नागरिकता कानून  यानी सीएए के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन के मामले में पुलिस ने बड़ी संख्या में लोगों को दंगाई करार देते हुए उन्हें गिरफ्तार किया था और उनमें से 57 के खिलाफ वसूली नोटिस जारी किये थे। बीते हफ्ते जिला प्रशासन ने नगर के हजरतगंज समेत चार थाना क्षेत्रों में 100 प्रमुख चौराहों तथा स्थानों पर होर्डिंग लगवायी थीं, जिसमें इन आरोपियों की बड़ी तस्वीरें, पता और वल्दियत जैसी निजी जानकारियां भी छपवायी गयी थीं। इनमें से अनेक के मामले अभी अदालत में लम्बित हैं।
मामले का स्वत संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लखनऊ जिला प्रशासन को आगामी 16 मार्च तक ये सभी होर्डिंग तथा पोस्टर हटाने के आदेश दिये। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की पीठ ने जिला प्रशासन के इस कदम को निहायत नाइंसाफी भरा करार देते हुए इसे व्यक्तिगत आजादी का खुला अतिक्रमण माना था। हाईकोर्ट ने  सुनवाई के दौरान कहा था कि कथित सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की सरकार की कार्रवाई बेहद अन्यायपूर्ण है। यह संबंधित लोगों की आजादी का हनन है।ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी अपमान की बात है और नागरिक के लिए भी। किस कानून के तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर लगाए गए? सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की इजाजत के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से अंतिम फैसला आना बाकी है
-अजय त्रिवेदी