अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन से आध्यात्मिक चेतना का संचार हुआ है। पांच शताब्दियों के बाद ऐसा वातावरण परिलक्षित हुआ। लेकिन यह भी अनुभव किया जा सकता है कि पिछली दो दीपावली को लाखों दीपों के प्रज्वलन से यहां की उदासी दूर होने लगी थी। एक प्रकार के सकारात्मक वातावरण बनने लगा था। प्रभु राम के वनगमन के बाद अयोध्या में चौदह वर्षों तक उदासी का माहौल था। प्रभु राम के वापस लौटने पर यहां के लोगों ने दीपोत्सव मनाया था। इसी के साथ उत्साह रूपी प्रकाश का संचार हुआ था,उदासी का अंधकार तिरोहित हो गया था। भारतीय दर्शन में इसकी कामना भी की गई-
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
इस स्थान पर बहुत बाद में कभी श्री राम जानकी का मंदिर बना होगा। पूजा अर्चना की गूंज से आध्यात्मिक चेतना का वातावरण रहा होगा। लेकिन विदेशी आक्रांता बाबर ने इस मंदिर का विध्वंस कराया। एक तरफ जन्मभूमि को मुक्त कराने के आंदोलन समय समय पर चलते रहे,दूसरी तरफ जनमानस में मंदिर विध्वंश के कारण उदासी का भाव भी रहा होगा। कुछ वर्ष पहले तक अयोध्या में इसका अनुभव भी किया जाता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इस ओर ध्यान दिया। ऐसा नहीं कि यहां पहले दीपावली नहीं होती था,लेकिन उसका स्वरूप त्रेता योग जैसा नहीं था। योगी ने अयोध्या के विकास व त्रेता युग जैसे दीपोत्सव आयोजित करने के निर्णय लिए। यह भव्य दीपोत्सव के विश्व रिकार्ड कायम हुए। पूरी दुनिया के लिए यह आकर्षण के केंद्र बन गया। यह अध्ययन व शोध का विषय हो सकता है,दो बार के दीपोत्सव से अयोध्या में उत्साह का संचार होने लगा था। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी मेहमान भी सम्मिलित हुए थे। दो हजार अठारह में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति की पत्नी मुख्य अथिति के रूप में यहां आई थी। कोरिया के लोग अयोध्या की राजकुमारी के ही वंशज है। इसके अगले वर्ष फिजी की मंत्री वीणा भटनागर दीपोत्सव में सहभागी हुई थी। एक साथ सर्वाधिक दीपक प्रज्ज्वलित होने के रिकार्ड कायम हुए। उत्साह के माहौल में स्थान स्थान पर सजावट की गई,रामलीला के मंचन चल रहे थे। प्रभु राम,सीता जी,लक्ष्मण जी पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे। इसी के प्रतीक रूप में हेलीकॉप्टर का प्रयोग किया गया। प्रयास किया गया कि अयोध्या में प्रतीकात्मक रूप में त्रेता युग का प्रसंग जीवंत हो।
रामचरित मानस में गोस्वामी जी लिखते है-
आवत देखि लोग सब । कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ। उतरेउ भूमि बिमान॥
इस दृश्य की कल्पना करना ही अपने आप में सुखद लगता है। अयोध्या में ऐसा ही दृश्य प्रतीकात्मक रूप में दर्शनीय है।
प्रभु राम के वियोग में अयोध्या के लोग व्याकुल थे। अंतत: वह घड़ी आ ही गई जब प्रभु राम अयोध्या पधारे। उनके वियोग में लोग कमजोर हो गए थे। उनको सामने देखा तो प्रफुल्लित हुए –
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा॥
बामदेव बसिष्ट मुनिनायक।।देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।
चौदह वर्षों बाद प्रभु को सामने देखा तो लोग हर्षित हुए-
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।।
इस मनोहारी दृश्य को भी अयोध्या में जीवंत किया गया। अयोध्या में दीपोत्सव जैसा दृश्य था। प्रभु राम सीता की आरती के लिए जो दीप प्रज्वलित किये गए थे, उनसे अयोध्या जगमगा उठी थी। उनके स्वागत में प्रत्येक द्वार पर मंगल रंगोली बनाई गई थी। सर्वत्र मंगल गान हो रहे थे-
करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे॥
प्रभु राम अंतयार्मी है, सब जानते है। वह लीला कर रहे थे। वह तो अवतार थे। इस रूप में वह जनसामान्य हर्ष में सम्मिलित थे-
जीव लोचन स्रवत जल। तन ललित पुलकावलि बनी।
अति प्रेम हृदयँ लगाइ। अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी॥
प्रभु मिलत अनुजहि सोह। मो पहिं जाति नहिं उपमा कही।
जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि। मिले बर सुषमा लही।।
फिजी गणराज्य की उप सभापति एवं सांसद वीना भटनागर अयोध्या दीपोत्सव में श्रद्धाभाव के साथ सम्मिलित हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे केवल धार्मिक परम्परा या उत्सव तक सीमित नहीं रखा है। बल्कि उन्होंने इसे तीर्थ नगरी के विकास से भी जोड़ दिया था। यह परंपरा बन गई। अयोध्या दीपोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में विदेशी मेहमान की भागीदारी उत्साहजनक थी। यह भावना फिजी की मंत्री वीणा और यहां उपस्थित जनसमुदाय दोनों पर समान रूप से लागू हुई। यहां दूर दूर से आये रामभक्तों के लिए श्री राम शोभा यात्रा और राम चरित मानस की चौपाइयां कोई नई नहीं थी। इनको देखते सुनते ही लोग बड़े हुए है। लेकिन सुखद आश्चर्य तब हुआ जब फिजी की निवासी वीणा भटनागर श्री राम शोभायात्रा में न केवल सम्मिलित हुई, बल्कि वह परमरागत रूप से कलश उठा कर पैदल भी चली। उस समय वह एक सामान्य रामभक्त के रूप में ही थी। यह सब उनके लिए भी भावनात्मक रूप से सुंदर पल था। करीब दो शताब्दी पहले उनके पूर्वक यहीं कहीं से फिजी गए थे। उनके पास सम्पत्ति के रूप में केवल राम चरित मानस ही थी। फिजी गए तो वहीं के होकर रह गए। बहुत कुछ उनके जीवन मे बदला होगा। लेकिन जो एक बात नहीं बदली, वह थी रामभक्ति। उनकी अगली पीढ़ियों ने भी इस धरोहर को संभाल कर रखा। आज तक इस धरोहर को धूमिल नही होने दिया। ये सभी लोग आज भी मानस का पाठ करते है।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)