देश की राजनीति में सबसे मजबूत आधार और स्थान रखने वाले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में कैलेंडर के हिसाब से भले ही एक साल से ज्यादा का वक्त बचा हो, लेकिन कड़ाके की ठंड में ही चुनावी गर्मी की आहट महसूस होने लगी है। यूपी में चार बार सत्ता संभाल चुकी बसपा प्रमुख मायावती फिलहाल बयानों के सहारे ही माहौल आंक रही हैं, बाकी सभी प्रमुख सियासी पार्टियों ने होमवर्क के साथ ही सूबे की जमीन नापना शुरू कर दिया है।
आम तौर पर तीन और चार कोण मुकाबले की आदी रही यूपी की चुनावी राजनीति में इस बात अरविन्द केजरिवाल की आम आदमी पार्टी भी पांचवां कोण बनाने की कोशिश में जुट गई है। यूपी के चुनाव नतीजों का भारत की राजनीति पर कितना असर असर पड़ेगा बात सभी दलों को बखूबी पता है इसीलिए कोई भी दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता है। आमतौर पर दूसरे दलों के मुकाबले चुनावी तैयारियों में सबसे आगे रहने वाली भाजपा इस बार भी इस मामले में फ्रंट रनर है। कई स्तर पर संगठनात्मक समीक्षाओं के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश का दौरा किया है।
पिछले हफ्ते भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जब दो दिन के लखनऊ प्रवास पर आए तो उन्होंने मिशन- 2022 और पंचायत चुनाव की तैयारियों का पूरा खाका पार्टी संगठन, विधायकों, सांसदों के साथ ही योगी सरकार के बीच रख दिया। नड्डा सबको उनकी भूमिकाओं का अहसास कराते हुए अधिक से अधिक समय जनता और कार्यकतार्ओं के बीच देने का संदेश दे गए। मंत्रियों, विधायकों, सासंदों को कर्तव्यनिष्ठा की पाठ भी पढ़ाया। संगठन के नेताओं को साफ निर्देश दिया गया है की वे गांवों में बूथ समितियों तक पहुंचे, रात्रि विश्राम भी करें। नड्डा ने साफ कर दिया कि मिशन 2022 की तैयारियों में भाजपा आईटी व सोशल मीडिया सेल की बड़ी भूमिका होगी। केंद्र व प्रदेश सरकार की उलब्धियों और योजनाओं को विभिन्न माध्यमों से जनता के बीच पहुंचाने की बड़ी जिम्मेदारी इस सेल को दी गई है।
आई ती सेल भाजपा की बड़ी ताकत रही है और बीते 6 सालों की उसकी चुनावी सफलता के पीछे इसका बड़ा हाथ रहा है। बीजेपी की योजना पीएम मोदी और सीएम योगी के चेहरे को आगे करके एक बार यूपी के सत्ता पर काबिज होने की है। इसमे शक नहीं कि इन दो बड़े चेहरों के साथ ही पार्टी राम मंदिर निर्माण को अपना सबसे कारगर हथियार मान कर चल रही है। इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में राजपथ पर हुई परेड में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जो झांकी निकाली गई उसकी मुख्य थीम अयोध्या में निमार्णाधीन राम मंदिर का मॉडल था। राम मंदिर निर्माण के लिए धन संग्रह कार्य मे भाजपा ने संगठन के लोगों को जोर शोर से लगा रखा है। मतलब साफ है कि केंद्र में मोदी और राज्य में योगी सरकार के कामों के साथ धार्मिक ध्रुवीकरण का समीकरण एक बार फिर हिट मानकर चल रहा है पार्टी नेतृत्व।
दूसरी ओर विपक्ष , जो फिलहाल बिखरा नजर आ रहा है, भी चुनाव से पहले अपना खोया हुआ जनाधार पाने की कोशिश कर रहा है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव बीजेपी से लड़ने के लिए अपने कार्यकतार्ओं ट्रेनिंग पर जोर दे रहे हैं तो वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अपनी पार्टी को यूपी में फिर से खड़ा करने के लिए प्रयास कर रही है।
जनता के मन में जगह बनाने के लिए प्रियंका ने कैलेंडर का सहारा लिया है। कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के लगभग 10 लाख कैलेंडर राज्य के प्रत्येक गांव और शहर में वितरित करने की तैयारी कर रही है। 12 पन्नों के टेबल टॉप कैलेंडर में हर पन्ने पर प्रियंका गांधी वाड्रा की तस्वीर है।
कैलेंडर में अमेठी, रायबरेली, हरियाणा, झारखंड सहित यूपी में प्रियंका गांधी द्वारा किये गए जन संपर्कों की तस्वीरें बहुत करीने से छापी गई हैं। यह सक्रिय राजनीति में डूब जाने के बाद से उसकी यात्रा को बाधित करता है और उसके विभिन्न मूड और एक राजनेता के दयालु पक्ष को भी दशार्ता है।
तस्वीरों में, प्रियंका सोनभद्र में आदिवासी महिलाओं के साथ बातचीत करती हुई दिखाई दे रही हैं। अमेठी में महिलाओं से मिल रही हैं। उज्जैन में महाकाल मंदिर में प्रार्थना कर रही हैं। लखनऊ में गांधी जयंती समारोह में भाग ले रही हैं। कांग्रेसी मानते हैं कि कैलेंडर को उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाएगा और 2022 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव से पहले प्रियंका के नेतृत्व में पार्टी को बढ़ावा देने के लिए कवायद की गई है।
नव वर्ष के कैलेंडर को हर गांव और शहरों के हर वार्ड तक वितरित करने का निर्देश पदाधिकारियों को दिया गया है। हर जिले और शहर कमेटी के लिए उसके आबादी के लिहाज से कैलेंडर दिए जा रहे हैं। वैसे तो मार्च-अप्रैल में पंचायत चुनाव के बहाने लगभग सभी पार्टियों ने जमीन पर गतिविधियां तेज कर दी हैं। लेकिन राजधानी के सियासी गलियारों में सत्ताधारी पार्टी के भीतर मचे घमासान से साथ यह चर्चा भी जोरों पर है कि इस बार बीजेपी का मुख्य मुकाबला किस दल से होगा इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यूपी में सिंहासन के लिए सीधी और दोतरफा लड़ाई के आसार नहीं हैं। यानी यहां सत्ता की दौड़ बहुकोणीय मुकाबले से होकर गुजरेगी।
बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने की दौड़ में सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ छोटे दलों का एक गठबंधन भी अपनी तैयारियों में जुटा है। इसमें दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी भी कोई कोण बनाने की कोशिश में है।
इन सबके बीच एक चर्चा जरूर जोरों पर है कि सत्ता के लिए बीजेपी से सबसे कड़ा मुकाबला सपा की ओर से ही मिलेगा। बाकी दलों के मुकाबले समाजवादी पार्टी अधिक तैयारी के साथ बीजेपी को टक्कर देने की तैयारी में जुटी है। देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की सबसे मजबूत रणनीति भी सपा ने ही बनाई थी।
बरसों की सियासी शत्रुता को समाप्त कर अखिलेश ने मायावती की की पार्टी बसपा के साथ मिलकर बीजेपी को मात देने की व्यूह रचना की। यह बात और है कि उसकी रणनीति जमीन पर काम नहीं कर पाई और नतीजा सिफर ही रहा। लेकिन कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी अपनी गलतियों से सबक लेकर एक बार फिर बीजेपी को जोरदार टक्कर देने की तैयारी में जुटी है। लोकसभा चुनाव के बाद बसपा से गठबंधन टूटने के बाद से ही सपा ने अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया।
उसने सामाजिक ताकत के आधार पर दलों को साथ लेने के बजाय अलग अलग समाजों में अपनी ताकत बढ़ाने की पहल तेज की है। गठबंधन टूटने के कुछ ही महीने के भीतर सपा ने अलग-अलग जातीय और जमीनी आधार वाले नेताओं को अपनी पार्टी में जगह देना शुरू किया। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने संगठन पर काम करना शुरू किया। कोरोना का असर कम होते ही अखिलेश यादव ने बड़ी खामोशी से अलग अलग जिलों का दौरा शुरू किया।
पार्टी का दावा है कि अभी तक 58 जिलों में संगठन के ढीले तार को कसकर सपा सुप्रीमो ने चुनाव में बीजेपी से मुकाबले के लिए तैयार कर लिया है। सपा को मालूम है कि बूथ स्तर पर तैयार बीजेपी का मुकाबला आसान नहीं रहने वाला है। समाजवादी पार्टी संगठन के साथ बीजेपी से मुकाबले के लिए ऐसे मुद्दे पर भी काम कर रही है, जिससे उसे जमीन पर ताकत मिले। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के प्रति समर्थन दिखाने के लिए पार्टी ने यूपी में ट्रैक्टर रैली का ऐलान कर अपनी इसी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है।
इस वक्त यह कहना तो कठिन है कि चुनावी लड़ाई में कौन कितना आगे रह पाएगा। लेकिन सपा की तैयारियों से साफ है कि उसकी नजर मुख्य मुकाबले में सामने रहने वाली पार्टी पर है। यों तो उत्तर प्रदेश में पिछले 35 सालों से पिछली सरकार के रिपीट होने का रिकार्ड नहीं है लेकिन बीजेपी अपने संगठन की ताकत के बूते नया इतिहास बनाने का प्रयत्न करेगी। देखना दिलचस्प होगा कि 2022 का बहुकोणीय चुनाव में किसकी लॉटरी लगती है।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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