पुलिस और राजनीति ने विकास को खूब संरक्षण दिया। कानपुर घटना के दिन यह भी आरोप लगा है कि चौबेपुर एसओ ने खुद बिजली कटवाई थीं। जिससे कि विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस टीम आसानी से विकास और उसके गुर्गों के शिकार बन सके। कानुपुर आईजी ने मीडिया को जो बयान दिया है उसमें कहा है कि घटना स्थल से तकरीबन कई सौ कारतूस बरामद किए गए हैं। रास्ते में विकास ने जेसीबी खड़ी करवा दिया था जिससे पुलिस आसानी से उस तक न पहुँच सके। बीबीसी के एक आंकड़े पर गौर करें तो यह स्थिति और अधिक साफ हो जाती है। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में 402 विधायकों में से 143 ने अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों का विवरण दिया था। सत्ताधारी भाजपा में 37 फीसद विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। भाजपा के 312 विधायकों में से 83 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। समाजवादी पार्टी के 47 विधायकों में से 14 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं जबकि बीएसपी के 19 में से पांच विधायकों पर इस तरह के अपराध दर्ज हैं। कांग्रेस भी इससे अछूती नहीँ है। उसके सात विधायकों में से एक का आपराधिक रिकार्ड है। सबसे दिलचस्प बात है है कि राज्य विधानसभा में तीन निर्दलीय विधायक भी चुनाव जीत कर पहुँचे हैं। जिनके दामन पर भी गुनाह के दाग हैं। यह जानकारी विधायकों ने अपने चुनावी हलफनामों में दिया है। राजनीति क्या अपराधी कारण से मुक्त होगी यह बड़ा सवाल है। कानपुर की घटना के बाद योगी सरकार पूरी तरह घिर गई है। विपक्ष दल सरकार को घेर रहे हैं। लेकिन इसके लिए जितनी जितनी जिम्मेदार योगी सरकार है उससे कहीं अधिक पूर्व की सपा- बसपा की सरकारें रहीं हैं। अपराध जगत में तीन दशक से अधिक उसका जलवा कायम रखने वाले विकास दुबे का है, सरकारें और पुलिस बाल भी बाँका नहीँ कर पाई।
कहा यह भी गया है कि अपने किलेनुमा मकान में हथियारों के बंकर बना रखा था। जिसे पुलिस ने जमींदोज कर दिया। उसके साथी पुलिस के हथियार भी लुट ले गए। फिलहाल पुलिस ने विकास दुबे के अब तक तीन गुर्गों को ढेर कर दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि 30 साल के आपराधिक इतिहास में विकास अब तक बचता क्यों रहा ? पुलिस ने यह शक्ति पहले क्यों नहीँ दिखाई। पुलिस ने राज्यमंत्री संतोष शुक्ला के मामले में उसका एनकाउंटर क्यों नहीँ किया गया। दुर्दांत अपराधी होने के बाद भी उसका नाम कानपुर जिले की टॉप टेन अपराधियों की सूची में क्यों नहीँ सुमार हुआ। इतनी बड़ी घटाना के बाद अब पुलिस ने उसका नाम यूपी के टॉपटेन अपराधियों में तीसरे नंबर पर रखा है। इस घटाना ने यूपी पुलिस की छवि को भारी नुकासान पहुँचाया है। अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए पहचान बनाने वाली योगी सरकार भी विपक्ष के निशाने पर है। इन सब बातों से साफ होता है कि विकास को सभी सरकारों में राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा, जिसकी वजह से उसका अपराध फलता- फूलता रहा। लेकिन अब वक्त आ गया है जब राजनीति को अपराध से मुक्त किया जाय। पुलिस को अपनी छबि सुधारनी होगी। कुछ गुरे हुए पुलिस वालों की वजह से जहाँ कानून- व्यवस्था पर सवाल उठा है वहीं यूपी पुलिस की साख भी प्रभावित हुई है। लाखों अच्छे पुलिस वाले भी कुछ गंदे लोगों से बदनाम हुए हैं। पुलिस के संकल्प पर यह घटना काला धब्बा है। उसे इस तरह के घेरे से बहार निकलना होगा। विभाग में ऐसे दागदारों को निकाल बाहर करना होगा और अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने पडेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं)