Poetry Seminar : साहित्य सभा ने आयोजित की जून माह की काव्य एवं लघुकथा-पाठ गोष्ठी

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काव्य गोष्ठी में भाग लेते हुए साहित्य सभा के पदाधिकारीगण। 
काव्य गोष्ठी में भाग लेते हुए साहित्य सभा के पदाधिकारीगण। 
  • दिये गर्दिशों में पलते हैं, वे ही तारीकियाँ निगलते हैं ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़
    Aaj Samaj (आज समाज), Poetry Seminar, मनोज वर्मा,कैथल:
    साहित्य सभा कैथल द्वारा आर के एस डी कालेज के अध्यापक-कक्ष में सभा के प्रधान प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान की अध्यक्षता में जून माह की काव्य एवं लघुकथा-पाठ गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन डॉ प्रद्युम्न भल्ला ने किया। गोष्ठी के आरंभ में डॉ प्रद्युम्न भल्ला ने गुरु की महता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अगर सतगुर की रहमत हो, तो जीवन में अमन होगा।

बहारें खुद चली आयें, महकता ये चमन होगा। दीये के संघर्ष को प्रतिपादित करते हुए दिनेश बंसल दानिश ने कहा कि जो दिये गर्दिशों में पलते हैं, वे ही तारीकियाँ निगलते हैं। एक दबे-कुचले व्यक्ति के सब्र के बाँध के टूटने की सम्भावना को दिलबाग अकेला ने इन पंक्तियों में व्यक्त किया कि सदियों से पी रहा है, सब्र का घूँट, शोषित, वंचित, दबा-कुचला आदमी। बन गया है बाँध सब्र का, ये सब्र का बाँध टूटेगा ज़रूर। बालासोर ट्रेन हादसे से द्रवित रजनीश शर्मा ने कहा : ट्रेन नहीं चलती लेकर, केवल सामान। ये तो लेकर चलती हैं, किसी का घर, किसी का जहान। सतीश शर्मा ने इन पंक्तियों में सभी को उपयोगी सीख दी : मुसीबतों में भी मुस्कुराना सीख। पीर पराई को अपना बनाना सीख।

कल शब्द का विभिन्न अर्थों में प्रयोग करते हुए डॉ तेजिंद्र ने कहा कि –

कल शब्द का विभिन्न अर्थों में प्रयोग करते हुए डॉ तेजिंद्र ने कहा कि कल-कल करती नदिया सबको अच्छी लगती है। कल-कल घर में हो तो किसको अच्छी लगती है। कल आया था, कल आयेगा, कल किसने जाना, बीते कल की बात पुरानी अच्छी लगती है। बुत परस्त और बुत शिकन को लेकर ईश्वर चंद गर्ग ने कहा कि मेरे घर के सामने पड़ते हैं बुतखाने कईं, बुत परस्त, बुत शिकन, लड़ते हैं दीवाने कईं। ज़िंदगी को अखाड़ा बताते हुए रामफल गौड़ ने कहा कि या ज़िंदगी सै एक अखाड़ा, पहलवान सब नर नारी। जनम लेण तै मरते दम तक, हर दम कुश्ती रहै जारी। गोष्ठी के दौरान प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान ने लघुकथा चंवर – सेवा का पाठ किया। जिसको सभी की सराहना मिली।

लघुकथा में घर पर सेवा से वंचित बुजुर्गों के प्रति संवेदना व्यक्त की गई और माँ-बाप को छोडक़र कर पूजा-स्थलों पर जाकर सेवा करने वालों पर कटाक्ष किया। गोष्ठी में कमलेश शर्मा, श्याम सुंदर शर्मा गौड़, सुरजीत भान शांडिल्य,डॉ0 हरीश चंद्र झंडई, डॉ0 चतरभुज बंसल सौथा, भोला राम,डॉ0 विकास आनन्द, अनिल कौशिक,रिसाल जांगड़ा, अनिल गर्ग, और राज बेमिसाल ने भी अपनी रचनाओं और टिप्पणियों से सभी को लाभान्वित किया।

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