Aaj Samaj (आज समाज), PM Modi Interview, नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान बदलकर हिंदू राष्ट्र बनाने की कथित रिपोर्टों को खारिज कर दिया है। एक साक्षात्कार में उन्होंने संविधान में संशोधन किए जाने की किसी भी बात को निरर्थक बताया और कहा कि उनकी सरकार ने सबसे परिवर्तनकारी कदमों को ऐसा कुछ किए बिना और जन भागीदारी के जरिए साकार किया है।
- संविधान में संशोधन की रिपोर्टों निरर्थक
मैं अब चाहता हूं उड़ान में तेजी लाई जाए
आम आदमी के जीवन में लाए गए बदलाव का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत व शौचालय निर्माण अभियान से लेकर करीब एक अरब लोगों को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने तक के सफर की जानकारी दी। उन्होंने दावा किया कि देश उड़ान भरने के लिए तैयार है और मैं अगले साल होने वाले आम चुनावों में जीत को लेकर बहुत आश्वस्त हूं। पीएम ने कहा, मैं अब चाहता हूं कि इस उड़ान में तेजी लाई जाए। उड़ान में तेजी लाने के लिए वही पार्टी सबसे अच्छी है, जो देश की जनता को यहां तक लेकर आई है।
लोगों की आकांक्षाएं 10 साल पहले से अलग
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों की आकांक्षाएं 10 साल पहले की आकांक्षाओं से अब अलग हैं। बता दें, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में लौटने और मध्य प्रदेश में अगले साल गर्मियों में होने वाले राष्ट्रीय चुनावों से पहले पार्टी को बरकरार रखने के कुछ दिन बाद पीएम की ये टिप्पणियां सामने आई हैं, जिससे साफ है कि लोकसभा-चुनाव 2024 में उन्हें एक बार फिर सत्ता पर आने का पूरा भरोसा है।
मोदी विरोधियों को सता रही चिंता
रिपोर्ट के मुताबिक मोदी के विरोधियों को चिंता सता रही है कि अगर वह तीसरी बार जीतते हैं तो इसका इस्तेमाल वह भारत को स्पष्ट रूप से हिंदू गणराज्य बनाने के लिए संविधान में संशोधन करके करेंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि अगर मोदी की तीसरी बार भी जीत होती है, तो समर्थक इस बात की पुष्टि कर देंगे कि जो वे कहते हैं कि उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था और वैश्विक सम्मान का निर्माण किया है। इसके अलावा लाखों लोगों के जीवन में सुधार व बहुसंख्यक हिंदू धर्म को सार्वजनिक जीवन के केंद्र में रखने की बात पीएम करते हैं।
आलोचकों को अपनी राय रखने का अधिकार
पीएम मोदी ने कहा कि बीजेपी के आलोचकों को अपनी राय रखने का अधिकार है। हालांकि इस तरह के आरोपों के साथ एक बुनियादी मुद्दा है, जो अक्सर आलोचना के रूप में दिखाई देता है। ये दावे न केवल भारतीय लोगों की बुद्धिमत्ता का अपमान करते हैं, बल्कि विविधता और लोकतंत्र जैसे मूल्यों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को भी कम आंकते हैं।
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