चंडीगढ़। पीजीआई को भी कोविड 19 ड्रग के ह्यूमन ट्रायल के रिसर्च की मिली मंजूरी है। इसके लिए भारत के तीन बड़े इंस्टीट्यूट एम्स नई दिल्ली, एम्स भोपाल और पीजीआई चंडीगढ़ को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जहां पर कोविड-19 से पीड़ित ऐसे मरीज जो कि गंभीर रूप से बीमार होने के साथ वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं, उनमें से कुछ चुनिंदा पेशेंट्स की पहचान तीनों इंस्टीट्यूट्स में की जाएगी और माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू ड्रग उनके इलाज में इस्तेमाल किया जाएगी। इस ट्रायल को पूरा होने में 5 से 6 महीने लगने की संभावना है। जिसके बाद इसके परिणाम सामने आएंगे।
पल्मोनरी डिपार्टमेंट के साथ अन्य डिपार्टमेंट भी मिल कर करेंगे काम
पीजीआई से ह्यूमन ट्रायल करने वाले पल्मोनरी डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो. आशुतोष नाथ अग्रवाल ने कहीं। ह्यूमन ट्रायल में पल्मोनरी डिपार्टमेंट से उनके साथ अन्य डिपार्टमेंट भी अपना योगदान देंगे। सूत्रों के मुताबिक माइकोबैक्टीरियम ड्रग को डेवलप करने का श्रेय अहमदाबाद की कैडिला फार्मास्यूटिकल को जाता है, उन्होंने सीएसआईआर के न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव प्रोग्राम के तहत इस ड्रग को तैयार किया था। यह पाया गया था कि यह ड्रग ह्यूमन बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है, जिससे इंफेक्टिड व्यक्ति बीमारी से रिकवर हो जाता है।
डेटा कलेक्ट करने के बाद पीजीआई में शोध और कोर्डिनेशन को दिया जाएगा अंजाम
पल्मोनरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर ने बताया कि मेडिसिन के ह्यूमन ट्रायल में पीजीआई का अहम रोल रहेगा। क्योंकि एम्स भोपाल और दिल्ली से डेटा कलेक्ट करने के बाद पीजीआई में शोध और कोर्डिनेशन किया जाएगा। लिहाजा इस दवा का ट्रायल और मरीजों पर इसके रिजल्ट संपूर्ण डेटा पीजीआई चंडीगढ़ में ही तैयार होगा। उन्होंने कहा कि इस ट्रायल में सभी गंभीर रूप से बीमार मरीजों को चुना जाएगा। वह किसी अन्य घातक बीमारी से पीड़ित हैं या नहीं इससे ट्रायल पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि ट्रायल केवल यह देखने के लिए माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू के इस्तेमाल से कोविड-19 पेशेंट में मृत्यु दर में कमी होती है या नहीं। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि इस ट्रायल को अलग रखते हुए इस ड्रग को प्रिवेंटिव स्ट्रेटजी के तौर पर हेल्थ केयर वर्करों पर भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस ड्रग का इस्तेमाल 2007 से सेटसिस जो कि एक गंभीर किस्म का इंफेक्शन होता है उसके इलाज के लिए किया जा रहा है और इस्तेमाल के कोई खास साइड इफेक्ट नहीं सामने आये हैं।