वर्कफ्रॉम होम लोगों को मोबाइल मेनिया का शिकार बना रहा है। घर से काम कर रहे लोगों को लगातार हाथ में फोन पकड़े रहने की लत पड़ गई है। बार-बार व्हाटसएप और ईमेल चेक करना आदत में शुमार हो गया है। मनोचिकित्सकों के अनुसार, हर पांचवें दिन इस तरह की परेशानी लेकर एक मरीज आ रहा है। जो बताता है कि जब उसके हाथ में मोबाइल फोन नहीं रहता है तो वह असहज महसूस करता है। बेचैनी सी लगती है। हाथ कांपने लगते हैं। हाथ में झनझनाहट रहती है। भोजन करते वक्त भी हाथ में मोबाइल रहने पर ही अच्छा लगता है। धड़कन भी तेज होने लगती है। चिकित्सकों के अनुसार वर्कफ्रॉम होम में निर्देशों पर प्रतिक्रिया की तत्परता से यह परेशानी बढ़ी है। इसमें कोई समय सीमित नहीं था और उसका नतीजा था कि कार्यालय में होने वाले कार्यों की अपेक्षा मोबाइल पर ही संवाद का दौर अधिक चला।
इन लक्षणों को समझें
जब हाथ में बिना मोबाइल के ही मोबाइल होने का आभास हो। किसी के फोन के रिंग होने पर आप चौंके। व्हाटसएप ग्रूप खोलने से पहले धड़कन तेज हो जाए। मोबाइल नहीं रहने पर हाथों में झनझनाहट हो और मन में डर समाया रहे तो मनोचिकित्सक या फिर काउंसलर से अवश्य संपर्क करें।
दूसरी लहर में उत्पन्न हुई यह समस्या
डॉक्टर बताते हैं कि कोरोना की पहली लहर के बाद इस तरह के मामले नहीं आ रहे थे, लेकिन दूसरी लहर में इस तरह की कठिनाइयां बढ़ी है। कोरोना संक्रमण के बाद जब शहर अनलॉक हुआ है उसके बाद से ही इस तरह के मरीज आने लगे हैं। उनमें अधिकांश नौकरी पेशा वैसे लोग हैं जिन्होंने लैपटॉप और स्मार्ट फोन से वर्कफ्रॉम होम में काम किया।