अदालतो में लंबित मामले देश की न्यायिक व्यवस्था के लिये नासूर बन चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीष हों या फिर हाई कोर्ट के न्यायाधीष कई मर्तबा इस नासूर पर अपनी फिक्र ज़ाहिर कर चुके हैं. चंद दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद सहित दस हाईकोर्ट में 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित 14,484 आपराधिक अपील पर चिंता जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह दोषियों के साथ सार्वजनिक हित में है कि इन अपीलों का जल्द निपटारा किया जाए।
उच्चतम न्यायालय नें तो यहां तक कहा है कि आपराधिक अपील मिथ्या ही बन जाएगी अगर समय पर इनकी सुनवाई न हो। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही 30 वर्ष से अधिक समय से लंबित अपीलों की संख्या 14207 है। जस्टिस एल नागेश्वर रॉ और जस्टिस एस रविंदर भट्ट की पीठ ने कहा है कि इन तथ्यों ने न्यायिक प्रणाली के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पीठ नें फिक्र ज़ाहिर करते हुये कहा है कि अपील पर सुनवाई न होने के कारण वर्षों से लोग जेल में बंद रहते है, उन्हें जमानत नहीं मिल पाती है। आईये जानते है देश के विभिन्न हाईकोर्टस में लम्बित मामलों का हाल…
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इस नासूर का इलाज क्या है. इस मामले यूपी ला कमिशन के चेयरमैन जस्टिस एएन मित्तल से जब इस मुद्दे पर बात की तो उनका कहना था कि जब तक सरकार, न्यायधीषगण और वकील इस नासूर को खत्म करनें के लिये एकजूट नही होंगे तब तक इस नासूर की निदान नही हो पायेगा.
यहां ये भी जानना बेहद ज़रुरी है कि आखिर हमारी अदालते किन दिक्कतों से जूझ रही है. आपको बताते चलें कि हाईकोर्ट इलाहाबाद में स्वीकृत पदों की संख्या 160 है लेकिन मौजूदा वक्त में यहां 101 ही न्यायाधीष नियुक्त हैं यानी 59 न्यायाधीषों की कमी हैं. तो वहीं निचली अदालतों की बात की जाये तो समस्या वहां भी कुछ इसी प्रकार की है.
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Sl. स्वीकृत पद रिक्त पद
टोटल 3416 1405
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शायद यही कारण है कि न्यायालय में ऐसे भी मौके आये हैं जब सजा की अवधि पूरी होने के वक्त अपील सुनवाई के लिए आती है और आरोपी सज़ा का बड़ा हिस्सा जेल में बिता चुका होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की अवध बार एसोसियेशन का भी मानना है कि इससे त्वरित न्याय नही मिल पाता है.
देरी से मिला न्याय न्याय नही होता है. तो वहां जल्दबाज़ी में मिला न्याय भी न्याय नही होता है. तो क्या ऐसा नही होना चाहिये कि उन अपीलों पर ही जल्द सुनवाई का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए जिन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया है बल्कि उन दोषियों की अपील पर सुनवाई भी होनी चाहिए जो लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं। उच्चतम न्यायालय नें देश की दस हाईकोर्टस से जानना चाहा है कि उनकी इस मामलें में रणनीति क्या है.
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