करनाल

Pediatrician Dr Nidhi: देरी से किया गया विवाह तथा खानपान में बदलाव से बढ़ सकती है आपकी परेशानी

Aaj Samaj (आज समाज),Pediatrician Dr Nidhi,करनाल, 21 मई, इशिका ठाकुर:

लोगों की जीवन शैली में लगातार बदलाव आ रहा है।जिंदगी की भाग दौड़ और कैरियर बनाने की होड़ में अक्सर युवक-युवतियां देरी से शादी कर रहे हैं। अनिमियत आहार तथा जीवन शैली में लगातार आ रहे इस बदलाव के कारण पैदा होने वाले बच्चों में कुछ ऐसे अनुवांशिक रोग सामने आ रहे हैं जो कि बहुत कम बच्चों में देखने को मिलते हैं, इन में से एक अनुवांशिक बीमारी का नाम है, डाउन सिंड्रोम।

डाउन सिंड्रोम के बढ़ रहे मामलों की यह स्थिति है बेहद डरावनी

इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की संख्या करनाल जिले में भी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2021- 22 में जिले में जहां 7 केस सामने आए थे तो वही वर्ष 2023 के शुरुआत में ही केवल मई तक ही डाउन सिंड्रोम के 14 केस करनाल के नागरिक अस्पताल रिकॉर्ड में दर्ज किए गए हैं। अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार केवल 2 महीने में ही 7 नए केस देखने को मिले हैं यानी इनमें 3 से 4 केस प्रतिमाह की दर से बढ़ोतरी हो रही है। लगातार डाउन सिंड्रोम के बढ़ रहे मामलों की यह स्थिति बेहद डरावनी है। विशेषज्ञों के मुताबिक डाउन सिंड्रोम विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है जो कि मां-बाप के शुक्राणुओं में गड़बड़ी की वजह से होती है. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है। लगभग 35 वर्ष की आयु के बाद जो महिलाएं गर्भवती होती हैं तो उनसे पैदा होने वाले बच्चों के डाउन सिंड्रोम से ग्रसित होने की अधिक संभावनाएं बनी रहती हैं।

इन सब के बीच एक सुखद पहलू यह है कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम यानी आरबीएस के अंतर्गत इलाज के लिए कुल 30 बीमारियां चिन्हित की गई है । जिनमें डाउन सिंड्रोम भी मुख्य रूप से शामिल की गई है। इनके प्रति लोगों को जागरूक करने तथा बीमारी से ग्रसित बच्चों को चिन्हित करने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश पर प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक जिले मे 11 टीम बनाई गई है। इन में 2 डॉक्टर एक फार्मासिस्ट और एक एएनएम गांव गांव जाकर आंगनवाड़ी तथा सरकारी स्कूल में स्क्रीनिंग करते हैं तथा इन बीमारियों से ग्रसित बच्चों को चिन्हित कर बच्चों के माता-पिता को जागरूक करते हुए अस्पताल तक लेकर आया जाता है जहां उनकी काउंसलर द्वारा काउंसलिंग करवाते हुए इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

लगभग 700 बच्चों के पीछे एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित पाया जाता है

डाउन सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारी पर जानकारी देते हुए करनाल नागरिक अस्पताल की बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर निधि ने जानकारी देते हुए बताया कि डाउन सिंड्रोम बीमारी से ग्रसित बच्चा मंगोलियन फीचर वाला होता है, जिसकी जीभ लंबी होती है जिसके कारण इनमें बोलने की क्षमता काफी कम होती है। ऐसे बच्चे की नाक लंबी तथा हथेलियों की लकीरों की संख्या बहुत कम होती है। डाउन सिंड्रोम की वजह से बच्चे की पलकें और होंठ फटे हुए होते है और कान विकृत होते है। ऐसे बच्चों के मंदबुद्धि होने की संभावना बनी रहती है तथा ऐसे बच्चों की 1 साल तक यदि चलने की समस्या आ रही है तो उनकी थेरेपी भी की जाती है।

सामान्यत: महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है। लगभग 700 बच्चों के पीछे एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित पाया जाता है।

उन्होंने बताया कि यदि किसी के परिवार में कोई भी पहले ऐसी किसी बच्चे को बीमारी होती है या किसी रिश्तेदार आदि के परिवार में यह बीमारी होती है तो एक बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के ऐसी किसी भी अनुवांशिक बीमारी से ग्रसित होने की संभावना होती है।

इसीलिए किसी भी अनुवांशिक बीमारी आने अगले आने वाले बच्चे में होने की संभावना रहती है। जो महिलाएं 35 वर्ष के बाद गर्भ धारण करती हैं तो इन महिलाओं के कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट होते हैं। ऐसी महिला के गर्भधारण करने के दो-तीन महीने के दौरान यह टेस्ट करवाया जाता है और साथ ही कुछ ब्लड टेस्ट अल्ट्रासाउंड में कुछ अगर सिम्टम्स दिखाई देते हैं या अगर किसी भी महिला में वह टेस्ट पॉजिटिव आते हैं तो उसके बाद कुछ स्पेशल टेस्ट किए जाते हैं यह टेस्ट सभी महिलाओं को करवाने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके संबंध में जेनेटिक काउंसलिंग जेनेटिक टेस्ट होना जरूरी है ताकि भविष्य में होने वाले बच्चों में यह बीमारी होगी या नहीं इसको लेकर पूरी तरह जांच हो सके।
किसी भी जेनेटिक बीमारी से ग्रसित बच्चा पैदा होने के बाद दूसरे बच्चे की प्लानिंग करते समय डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी होता है।

डॉक्टर का कहना है कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है यदि माता-पिता की हिस्ट्री में कोई इस तरह की बीमारी हो तो बच्चे में होना स्वभाविक है। दूसरा क्रोमोसोम की वजह से भी यह बीमारी बच्चे में आ सकती है और अगर ऐसा बच्चा पैदा होता है तो दूसरे बच्चे की भी 25% तक चांस इसी प्रकार की स्थिति में पैदा होने की होते हैं।

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Shalu Rajput

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