Paryushan Festival Udaipur : मानसिक तनावों से सहज मुक्ति दिलाता है पर्युषण महापर्व : प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Paryushan Festival Udaipur, उदयपुर 14 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में गुरुवार को पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के तहत धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि में श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है।

पर्युषण पर्व के तहत आयड़ तीर्थ पर हुए विविध धार्मिक अनुष्ठान

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के पर्युषण महापर्व के तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि पर्युषण महापर्व की आराधना दूसरे दिन प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा की निश्रा में पर्वाधिराज महापव्र पर्युषण की आराधना-साधना, उपासक का उपक्रम बहुत ही उल्लासमय वातावरण के साथ चल रहा है।

आज तीसरे दिन के प्रवचन में पौषध व्रत के विषय में क्या कि आजम को पूर्व जिनेक के साथ चलना, बैठना, सोना, खाना, पीना बोलना हमे पाप कर्म बन्धनों से मुक्त करता है यानि कि मनुष्य का आचरण एवं व्यवहार आदि विवेक जागरण से युक्त है तो पापको का बन्ध नहीं होता है। निवेक का जीवन में समावेश ही सच्चा जागरण है, सच्ची जागृति है। विवेक ही जीवन में जागृति का शंखनाद फूंक देता हो पर्युषण महापर्व विवेक जागरण करता है, जिससे सारा जीवन सुराइयों से रहित होकर प्रतिदिन, प्रतिपल आध्यात्मिक आनन्द का उत्सव बने। जनजर के मन में विवेक जागृति की ज्योति जगे।

व्रत पौषध यानि पुष्टि जो व्रत धर्म को परिपुष्ट करता है उसे पौबन व्रत करते है। पर्व तिथियों में पाँपच सुत आवश्यक रूप से करना चाहिए ऐसा शास्त्रीय निर्देश है। यह दोषध इत तो नित्य करणीय है, किन्तु यदि किन्ही कारणों से प्रतिदिन करना संभव न हो तो माह की चतुदर्शी, पर्व की तिथियां और पर्युषण महापर्व में अनिवार्यत: करना चाहिए। परिपूर्ण पौष यानि कि उपवास करके अष्ट प्रहर तक आत्म- निरीक्षण, मात्म-मनन, आत्म चिंतन धर्मध्यान करना परिपूर्ण पौषघडत कहलाता है।

इस पौषध व्रत में चार प्रकार का त्याग अनिवार्य है शरीर-श्रृंगार, ब्रहमचर्य का पालन, आहार तथा सांसारिक व्यापार। पांच परित्याग करके पौषध रहना है। जिससे कुत्सित की निर्जरा होती है, जीवन सार्थक हो जाता है। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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