Paryushan Festival : कर्म के मर्म को भेद करने वाला यह महापर्व पर्युषण है : प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • पर्युषण पर्व के तहत आयड़ तीर्थ पर हुए विविध धार्मिक अनुष्ठान
  • साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Paryushan Festival, उदयपुर 13 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में बुधवार को पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के तहत धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि में श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के पर्युषण महापर्व के तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।

जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि पर्युषण महापर्व की आराधना दूसरे दिन प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने बताया कि पर्युषणा महापर्व सर्वत्र अपनी सौरभ बिखेर रहा है। सब जगह धर्म की सुगंध महक रही है। जन-जन के जीवन में धर्म- जागृति का संचार करने वाला यह पर्वाधिराज हमारी अन्त:चेतना की वीणा पर आत्म- जागरण गीत की मधुरिम धुन छेड़ रहा है। पर्युषण लोकोत्तर पर्व है, आध्यात्मिक पर्व है. इसीलिए इसे हम श्रद्धा-भक्ति एवं पूर्ण निष्ठा से पर्वाधिराज कहते है।

जिनेश्वर देव के आगम शास्त्र में अनेक पर्व प्रतिपादित किये गए है, किन्तु कर्म के मर्म को भेदित करने वाले भी पर्युषण महापर्व ही हैं। प्राणी मात्र का कल्याणकारक महापर्व पर्युषण है। यह पर्वाधिराज अष्टास्तिका पर्व के रूप में आता है। इस पर्वाधिराज के पावन प्रसंग पर साधक को सुकृत्य करने चाहिए। यह महापर्व प्रतिवर्ष प्रस्त प्रसन्नता से आवश्यक चौक ग्यारह कत्र्तव्यों के संदर्भ में भी प्रेरित करता है, जिनके करने ने जीवन में धर्म-जागृति आती है, भावात्मक पवित्रता आती है, जीवन जीवन्त बनता है। जैन का जैनत्व विकसित होना है।

भाग्यवानों! पर्युषण की अनुपम फलदायिनी की इस मंगल वेला में करणीय सुकृत्यों से आत्मा को उजास से भर दो। सत् कार्यों से अपनी आत्मा निर्मल होगी, शुद्ध होगी, मानव जीवन सार्थक होगा। वे प्रतिवर्ष आराधनीय ग्यारह के सत्कृत्य इस प्रकार से है- (1) संघपूजा (2) साधर्मिक वात्सल्य (3) यात्रात्रिक (4) स्नान महोत्सव (5) देव प्रन्य वृद्धि (6) महापूजा (7) धर्म- जागरिका (8) जुन ज्ञान भक्ति (9) उद्यापन (10) तीर्थ प्रभावना (११) शुद्धि। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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