Congress Deputy Speaker Post, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: कांग्रेस ने बजट सत्र की समाप्ति से पूर्व एक बार फिर डिप्टी स्पीकर पद पाने की कोशिश की है। लेकिन सरकार और सहयोगी दलों के रुख को देख लगता नहीं है कि कांग्रेस डिप्टी स्पीकर का पद ले पाएगी। संसद के बजट सत्र के अंतिम दौर में विपक्ष ने एकता दिखाने की कोशिश जरूर की है,लेकिन यह औपचारिकता भर दिखी। ऐसे में डिप्टी स्पीकर पद (Deputy Speaker Post) को लेकर ही घमासान के पूरे आसार हैं। पूरे सत्र में इंडिया गठबंधन में कोई एका नहीं दिखा। संयुक्त रणनीति के लिए विपक्षी नेताओं की बैठक की कोई चर्चा ही नहीं हुई। एक तरह से इंडिया गठबन्धन बिखरा हुआ ही था।

हरियाणा, महाराष्ट्र व दिल्ली हारने के बाद सहयोगी खफा

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली की करारी हार के बाद से सहयोगी दल कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। यही वजह रही है कि शीतकालीन सत्र रहा हो या अब बजट सत्र राजग को हराने के लिए बना इंडिया गठबंधन के नेता एक साथ बैठे है ही नहीं।कांग्रेस अकेले ही अपने हिसाब से राजनीति करती दिख रही है।बजट सत्र के अंतिम दौर में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को न बोलने देने के मामले में विपक्ष ने जरूर एक हो स्पीकर से शिकायत की।इस मामले में टीएमसी ने भी कांग्रेस का साथ दिया।

संसद के इतिहास में पहली बार हुआ यह काम

पिछले साल आम चुनाव के बाद 18वीं लोकसभा के गठन के समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में तमाम विपक्षी दलों ने राजग सरकार पर हमला बोल सदन में कामकाज ही नहीं होने दिया था। विपक्ष के तेवर कुछ इस तरह थे कि राजग सरकार को तुरंत गिराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे निशाने पर लिया हुआ था। संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि जब नए सांसदों के शपथ ग्रहण में भी जमकर हंगामा किया गया। प्रधानमंत्री मोदी को खुद खड़े हो विपक्ष के व्यवहार की निंदा करनी पड़ी।

खासतौर पर कांग्रेस का व्यवहार हैरान करने वाला

विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस का व्यवहार हैरान करने वाला था।लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस आक्रमण बनी हुई थी।कांग्रेस शायद यह मान बैठी थी कि गठजोड़ की राजग सरकार तीन राज्यों के चुनाव के बाद गिर जाएगी।इसलिए कांग्रेस ने दबाव के लिए ऐसी राजनीति की कि लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाना पड़ा।लेकिन स्पीकर के चुनाव में कांग्रेस की मुहिम को पहला झटका टीएमसी ने दिया।

टीएमसी के दबाव से ध्वनि मत से हुआ चुनाव

टीएमसी के दबाव के चलते स्पीकर का चुनाव ध्वनि मत से हुआ। इसके बाद कांग्रेस ने डिप्टी स्पीकर पद के लिए दावेदारी टोक अपने सबसे वरिष्ठ सांसद के सुरेश का नाम घोषित कर दिया। यहां पर भी टीएमसी ने रोड़ा डाल दिया। टीएमसी ने डिप्टी स्पीकर के पद के लिए कांग्रेस को समर्थन देने से इनकार कर दिया।समाजवादी पार्टी की तरफ से भी डिप्टी स्पीकर पद की मांग की जाने लगी।कांग्रेस यहीं पर फंस गई।क्योंकि यह सरकार के हाथ में है कि वह डिप्टी स्पीकर का पद किसे दे।

कांग्रेस के रणनीतिकार भी समझे, आसान नहीं डगर

कांग्रेस के रणनीतिकारों की समझ में आ गया कि पद मिलना आसान नहीं है। 2019 से लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली है।सरकार ने यह पद पिछले कार्यकाल में खाली ही रखा था।17 वीं लोकसभा में विपक्ष इस स्थिति में था ही नहीं कि पद की मांग कर पाता।लेकिन 18 वीं लोकसभा में कांग्रेस ने दावा तो ठोका लेकिन सहयोगियों के तेवर देख चुप रहना ही ठीक समझा। शीतकालीन सत्र से पहले कांग्रेस को हरियाणा चुनाव में बड़ा झटका लगा।बीजेपी ने हरियाणा में तीसरी बार शानदार जीत हासिल कर कांग्रेस और विपक्ष के तेवर ढीले कर दिए।इंडिया गठबंधन में फूट पड़ गई।आम आदमी पार्टी ने अलग राह पकड़ ली।महाराष्ट्र चुनाव में भी इंडिया गठबंधन में तनातनी रही।कांग्रेस की दूसरी बड़ी हार हो गई।

दिल्ली चुनाव ने विपक्ष को कमजोर किया

दिल्ली चुनाव में तो एक तरफ कांग्रेस अकेले थी तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के तमाम दल आम आदमी पार्टी को जिताने में लगे हुए थे।इसमें उद्धव ठाकरे की शिवसेना,शरद पंवार की एनसीपी,टीएमसी और समाजवादी पार्टी जैसे दल शामिल थे।कांग्रेस को छोड़ बाकी विपक्ष इस उम्मीद में था कि आप की जीत होगी और अरविंद केजरीवाल को इंडिया गठबंधन का नेता बना देंगे।लेकिन तिकोने मुकाबले में बीजेपी ने दिल्ली में 27 साल बाद चुनाव जीत विपक्ष के सारे मनसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस ने भी आप के हारने पर राहत की सांस ली। दिल्ली के चुनाव ने विपक्ष को और कमजोर कर दिया। कांग्रेस और विपक्ष की समझ में आ गया कि संसद में गतिरोध डालने से कुछ नहीं होगा।

‘इंडिया’ के सहयोगियों को छोड़ खुद रणनीति बनानी शुरू की

कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को छोड़ खुद ही अकेले रणनीति बनानी शुरू कर दी। लोकसभा चुनाव के 10 महीने बाद ही विपक्ष के तेवर ढीले पड़ गए।प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के व्यवहार ने भी विपक्ष को हैरान किया।कई मुद्दों पर बोलने से बचे।संसद सत्र के दौरान वियतनाम दौरे पर चले गए जिसे बीजेपी ने जमकर भुनाया।राहुल गांधी को सदन में बोलने का मौका नहीं दिए जाने के सवाल पर खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को बोलना पड़ा कांग्रेस को 40 प्रतिशत से ज्यादा समय बोलने के लिए दिया गया था।ये कांग्रेस को तय करना था कि किसे कब और कितना बोलना है।राहुल संसद को लेकर कितने गंभीर है उनके वियतनाम दौरे ने साबित कर दिया।

पत्र लिख की है डिप्टी स्पीकर का चुनाव कराने की मांग

सरकार के रुख से साफ है कि कांग्रेस के लिए कुछ भी आसान नहीं है। कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को पत्र लिख डिप्टी स्पीकर का चुनाव कराने की मांग की है। साथ ही कहा है कि डिप्टी स्पीकर का न होना संवैधानिक रूप से सही नहीं है। कांग्रेस ने मांग तो कर दी लेकिन जरूरी नहीं है कि सरकार मांग मानेगी। दूसरा डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर भी विपक्ष में फूट पड़ना तय है।टीएमसी शुरू में कांग्रेस का विरोध कर चुकी है।सरकार को तय करना है कि डिप्टी स्पीकर का पद किसे दिया जाए।जैसे की चर्चा है सरकार डिप्टी स्पीकर का पद सपा को दे बड़ा राजनीतिक दांव खेल सकती है।

दिल्ली चुनाव में अलग थलग पड़ी कांग्रेस

दिल्ली चुनाव में अलग थलग पड़ी कांग्रेस डिप्टी स्पीकर पद के चुनाव के समय भी अकेले पड़ सकती है। इसलिए कांग्रेस डिप्टी स्पीकर पद के लिए उस तरह का दबाव नहीं बना रही है कि जैसे बनाना चाहिए।बजट सत्र में कांग्रेस यूं भी अलग थलग रही।आगे भी हालात बहुत अच्छे नहीं है।तीन राज्यों में हुई हार के बाद से विपक्ष कांग्रेस पर भरोसा करने को तैयार नहीं है।बिहार में पुराना गठबंधन होने के चलते राजद के साथ गठबंधन बरकरार रखा गया है।लेकिन अगले साल बंगाल में टीएमसी से सीधे लड़ाई होगी।केरल में वामदलों से भिडना है। लगातार चुनाव ही चुनाव हैं। कांग्रेस केरल को छोड़ कहीं मुकाबले में अभी नहीं दिख रही है।

ये भी पढ़ें : Congress: राहुल अब नाराजगी छोड़ पार्टी हित देखें, वेणुगोपाल को राजनीतिक सचिव बना दे सकते हैं संदेश