आज समाज डिजिटल, पानीपत :
पानीपत। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि दिन शुक्रवार को विष्णुपद में न्यू शांति नगर, मॉडल टाउन स्थित चिंतपूर्णी माता मंदिर में ईश्वर देवी माता की अध्यक्षता में तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम से मनाया गया। फूलों से मंडप की सजावट हुई, फिर विवाह की रस्में शुरू की गई। मंडप में सबसे पहले शालिग्राम को विराजमान किया गया। पंडित देव नारायण उपाध्याय ज्योतिषाचार्य ने तुलसी विवाह के लिए विधिवत पूजा अर्चना की। शालीकराम जी और तुलसा जी के पाणिग्रहण कराया। तुलसी विवाह करवाने वाले मुख्य यजमान तुषार बंसल के साथ उनकी धर्मपत्नी प्राची बंसल रही।
सबसे पहले श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी का पौधा लाया गया
विवाह समारोह में ज्वाला जी मंदिर से आए मुख्य पुजारी पार्वती प्रसाद एवम उनकी धर्मपत्नी सुलोचना विशेष रूप से उपस्थित रहे। तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी का पौधा लाया गया। लाल कच्चा सूत धागा से शालिग्राम व तुलसी का गठबंधन किया गया। पंडित देव नारायण उपाध्याय ने विधिवत तरीके से विवाह की रस्में पूरी हुई। इस बीच विष्णुपद के आसपास रहने वाली महिलाओं ने एक से बढ़कर एक विवाह के गीत गाए। तुलसी विवाह के मौके पर भक्त जमकर नाचे।
राक्षस से सभी देवता बहुत परेशान थे
तुलसी विवाह की कथा कहते हुए पंडित देव नारायण उपाध्याय ज्योतिषाचार्य ने बताया कि तुलसी का पुराना नाम वृंदा था जोकि एक राक्षस की पुत्री थी। जिसका विवाह जलंधर नाम के पराक्रमी असुर से हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। उसकी अपने पति के प्रति की गई प्रार्थना से वह जलंधन नामक राक्षस अजेय हो गया था। इस राक्षस से सभी देवता बहुत परेशान थे और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप लेकर वृंदा के पतिव्रत धर्म का नष्ट कर दिया। जिससे वह राक्षस कमजोर हो गया और भगवान शिव ने उसका नाश कर दिया। लेकिन वृंदा को जब सच्चाई पता लगी तो वृंदा ने विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया और खुद को समुद्र में डूबा दिया। इसके बाद विष्णु और अन्य देवताओं ने अपनी आत्मा को इस पौधे में रखा, जिसे आज तुलसी के नाम से जाना जाता है।
विवाह संपन्न होने के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया
कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन एक काला पत्थर बनकर इस सृष्टि में जन्मे और तुलसी से विवाह रचाया, जिसे आज शालीग्राम कहा जाता है। अंत में पंडित देव नारायण उपाध्याय ज्योतिषाचार्य ने विवाह की रस्मों को पूरा कराया। विवाह संपन्न होने के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया। इस मौके पर हरिचंद बिक्का, अशोक सुभद्रा बिक्का, मुनीश वर्मा, गीता पांडे, ब्रिज लुंबा, सुमन नरवाल, नीरू चोपड़ा, गीता, कृष्णा, रानी, किरण, सुमन, काजल, अंबाला से आए नरेश वोहरा, किरण नरवाल आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे।