अध्यात्म का रास्ता हमें दुनिया से मुंह मोड़ने को नहीं कहता : संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

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The path of spirituality does not ask us to turn our backs on the world: Sant Rajinder Singh Ji Maharaj
The path of spirituality does not ask us to turn our backs on the world: Sant Rajinder Singh Ji Maharaj
आज समाज डिजिटल, Panipat News :
पानीपत। हममें से कुछ लोगों का मानना है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलना या खुदा की इबादत करना अपने फर्जों से भागना है, लेकिन अध्यात्म का अर्थ नकारात्मक जीवन जीना नहीं है। अध्यात्म का रास्ता हमें दुनिया से मुंह मोड़ने को नहीं कहता। इसलिए सभी संत-महात्माओं ने इस रास्ते को  ‘सकारात्मक अध्यात्म’ का मार्ग कहा है। जिसमें हम जिस समाज में पैदा हुए हैं, उसी में रहते हुए रूहानियत के रास्ते पर चल सकते हैं। हम अपने परिवार, अपनी नौकरी-पेशे, अपने पड़ोस और समाज के प्रति सभी दायित्वों को पहले की तरह निभाते हुए रोज़ाना ध्यान-अभ्यास में भी समय दे सकते हैं ताकि हम प्रभु की आनंदमयी वाटिका में दाखिल हो सकें।

प्यार का अनुभव कैसे कर सकते हैं?

ध्यान-अभ्यास के वक्त अगर हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है तो हम उस मिलन की खुशबू को इस दुनिया में हमेशा अपने साथ लिए फिरते हैं। जो कोई भी हमारे दायरे में आता है, वह हमारे अंतर में उठती हुई प्रभु के प्यार की खुशबू से मस्त हो जाता है। लोग हमसे पूछते हैं कि वह भी इस प्यार का अनुभव कैसे कर सकते हैं? एक-एक करके हम सुख और प्रेम के बीज दूर-दूर तक बिखेरने लगते हैं और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक हर दिल में प्रभु का प्यार जागृत न हो जाए। इस आंतरिक बगीचे की कुंजी सबके पास उपलब्ध है। चाहे वो किसी भी राष्ट्र, रंग या धर्म से संबंधित हो।

सृष्टि की हर रूह को यह खुशी प्राप्त हो

ध्यान-अभ्यास के ज़रिए हर व्यक्ति उस बगीचे का लुत्फ उठा सकता है। संत-महात्मा जैसी हस्तियां रूहानी बगीचे में दाखिल होने पर अपनी खुशी और परम सुख को सिर्फ अपने तक ही सीमित नहीं रखतीं बल्कि वे चाहती हैं कि समस्त मानवता उस अनंत खुशी को प्राप्त करे। वे सभी को प्रभु के गुप्त बगीचे में पहुँचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं और यही उनका लक्ष्य होता है कि सृष्टि की हर रूह को यह खुशी प्राप्त हो। यदि हम प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास में समय देते हैं तो हम प्रभु के रूहानी बगीचे में दाखिल हो सकते हैं।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सभी कामों से निपटकर हम प्रभु की याद में ध्यान-अभ्यास में बैठें

तब हमें अनुभव होगा कि प्रभु वहाँ हमारा इंतजार कर रहे हैं और फिर हमारी आत्मा उनके दिव्य-प्रेम की धारा में सराबोर होते हुए प्रभु में लीन हो जाएगी। तब हमें अहसास होगा कि प्रभु हल पल हमारे साथ हैं और फिर हमारे रोम-रोम से प्रभु-प्रेम खुशबू आने लगेगी। हमारे दिल में प्रभु से मिलने की जितनी तड़प है, उससे कहीं ज्यादा तड़प प्रभु के दिल में हमारी आत्मा से मिलने की है। इसलिए यह हमारा फर्ज है कि हम उनकी याद को हर पल अपने दिल में तरो-ताज़ा बनाए रखें। रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सभी कामों से निपटकर हम प्रभु की याद में ध्यान-अभ्यास में बैठें। हमारे प्रभु-प्रीतम अंतर में हर समय हमारा इंतजार कर रहे हैं। हम उनकी तरफ तेज़ी से बढ़ें ताकि वे हमें अपने गले से लगा लें।

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