अर्ली स्टेज में नजर नहीं आते पैंक्रियाज कैंसर के लक्षण, डॉक्टर ने बताए इलाज व बचाव के उपाय

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Panipat News/Symptoms of pancreas cancer are not visible in the early stage the doctor told the treatment and prevention measures.
Panipat News/Symptoms of pancreas cancer are not visible in the early stage the doctor told the treatment and prevention measures.
आज समाज डिजिटल, पानीपत :
पानीपत। पैनक्रिएटिक कैंसर के केस एक बड़ी मुसीबत बन गए हैं। इसके लक्षण भी जल्दी नजर नहीं आते हैं। ऐसे में इस बीमारी की गंभीरता को समझना बेहद आवश्यक है। गुरुग्राम के सीके बिड़ला हॉस्पिटल में द ऑन्कोलॉजी सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर विनय गायकवाड़ ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी। पैंक्रियाज एक ग्रंथि है जो पेट में ऊपरी हिस्से में होती है. ये पाचन एंजाइम और हार्मोन (इंसुलिन) को स्रावित करती है। शराब का सेवन, धूम्रपान और गॉल ब्लैडर में पथरी की वजह से पैंक्रियाज से जुड़ी बीमारियां होती हैं। एक्यूट पैंक्रियाज, क्रोनिक पैनक्रिएटाइटिस और पैनक्रिएटिक कैंसर पैंक्रियाज से जुड़ी सबसे कॉमन बीमारियां हैं।

शुरुआती लक्षण अक्सर पता नहीं चल पाते

गुडगाँव स्थित सीके बिरला हॉस्पिटल के ऑन्कोलॉजी सेंटर के डायरेक्टर डॉ विनय गायकवाड़ ने बताया, आमतौर पर पैनक्रिएटिक कैंसर के केस ज्यादा देखे जाते हैं। इसके शुरुआती लक्षण अक्सर पता नहीं चल पाते हैं। पैंक्रियाज के कैंसर वाले रोगियों में आमतौर पर देर से लक्षण सामने आते हैं, क्योंकि जब तक बीमारी बढ़ नहीं जाती है तबतक तक लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। जबकि पेट में दर्द और पीलिया इसके सबसे आम लक्षण हैं। अगर इसे बिना इलाज के छोड़ दिया जाता है, तो बीमारी बढ़ जाती है और मौत का कारण भी बन जाती है।

कीमोथेरेपी के जरिए ही ट्यूमर को फैलने से रोकने की कोशिश की जाती है

ग्लोबाकैन इंडिया 2020 रिपोर्ट के मुताबिक, उस एक ही साल में पैनिक्रिएक कैंसर के 12642 केस आए और 12153 मौतें हुईं। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट कैंसर के कुल केस में पैनक्रिएटिक कैंसर के करीब 18 फीसदी हैं और इसका नंबर पांचवां है। इसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन है और वो भी तब जब समय रहते बीमारी का पता लग जाए। इस तरह के कैंसर केस में सर्जरी के साथ कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी भी जरूरत पड़ने पर दी जाती है। कैंसर से बचने के लिए ट्यूमर को पूरी तरह निकालना जरूरी होता है ताकि वो फिर से न पनप सके। अगर बीमारी का पता देरी से लगता है तो फिर कीमोथेरेपी के जरिए ही ट्यूमर को फैलने से रोकने की कोशिश की जाती है।

सर्जरी में करीब 20 फीसदी पैंक्रियाज निकालना पड़ता है

ट्यूमर को आसपास के टिश्यू और लिम्फ नोड्स के साथ पूरी तरह से हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। यह एक सुपर-मेजर सर्जरी है। अगर ट्यूमर दाहिनी ओर हो तो व्हिपल पैनक्रिएटोडुओडेनेक्टॉमी सबसे अधिक किया जाने वाला ऑपरेशन होता है। इस सर्जरी में करीब 20 फीसदी पैंक्रियाज निकालना पड़ता है जिसमें ड्यूडेनम, गॉल ब्लैडर, बाइल डक्ट और लिम्फ नोड्स भी शामिल होती हैं।

डिस्टल पैनक्रिएटेक्टॉमी सबसे अच्छा विकल्प

फिलहाल व्हिपल प्रक्रिया ही एक ऐसा इलाज है जो पैंक्रियाज कैंसर को बढ़ने से रोक सकता है। आजकल स्पेशलिस्ट सर्जन हैं, सर्जरी की तकनीक में भी प्रगति हुई है, जिसकी मदद से व्हिपल सर्जरी के दौरान मृत्यु दर 1-5% के बीच हो गई है। कुछ रोगियों में, यह सर्जरी लेप्रोस्कोपिक रूप से की जा सकती है। अगर किसी को बाईं तरफ ट्यूमर हो तो उसके लिए डिस्टल पैनक्रिएटेक्टॉमी सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। कभी कभी पूरा पैंक्रियाज निकालना पड़ सकता है।

सर्जरी का विस्तार करने के लिए नई रणनीतियों को अपनाया जा रहा है

पैंक्रियाज कैंसर के ऑपरेशन व्हिपल प्रक्रिया से बहुत ही सुरक्षित तरीके से किए जाते हैं और अब इसे लेकर कोई संदेह नहीं है। अब सर्जरी का विस्तार करने के लिए नई रणनीतियों को अपनाया जा रहा है। इनमें ‘बॉर्डरलाइन रिसेक्टेबल पैंक्रियास कैंसर’ की अवधारणा और रोग को कम करने के लिए नियोएडजुवेंट थेरेपी की शुरुआत शामिल है। कीमोथेरेपी में इंजेक्शन या टैबलेट शामिल होते हैं जो ट्यूमर कोशिकाओं पर हमला करते हैं और उन्हें बढ़ने से रोकते हैं। कीमोथेरेपी के प्रकार और खुराक के आधार पर विभिन्न विषाक्तताएं हो सकती हैं।

मरीज को 5-9 दिनों में छुट्टी दे दी जाती है

पैनक्रिएटिक सर्जरी दूसरे अन्य तरीकों से भी की जा रही हैं। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी तकनीक विकसित हो गई है, जिसमें रोबोट की मदद से सर्जरी की जाती हैं। व्हिपल प्रक्रिया में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है और ये बेहद सुरक्षित सर्जरी है। ऑपरेशन के बाद किसी तरह की दिक्कत नहीं होती है और पेनक्रिएटिक जूस का लीकेज भी नहीं होता है, पाचन में दिक्कत नहीं होती, न ही ब्लीडिंग होती है. इस तरह की समस्या होती भी है तो बहुत ही कम केस में पैंक्रियाज की सर्जरी से पहले किस तरह की सावधानी बरती जाए, इसे लेकर कोई स्पेसिफिक सुझाव तो नहीं है, लेकिन मरीजों को स्मोकिंग रोकने के लिए जरूर बोला जाता है। आमतौर पर, पोस्ट-ऑपरेटिव कोर्स सुचारू होता है और मरीज को 5-9 दिनों में छुट्टी दे दी जाती है, जो कि रिकवरी की गति पर निर्भर करता है। इस दौरान रोगी को धीरे-धीरे दर्द निवारक दवाओं से छुटकारा मिल जाता है और एंटीबायोटिक्स बंद हो जाते हैं। एक बार जब मरीज मुंह से खाना शुरू कर देता है तो बाकी सब चीजें हटा दी जाती हैं।
मरीज को करीब एक हफ्ता सॉफ्ट डाइट पर ही रखा जाता है
डिस्चार्ज के बाद मरीज को करीब एक हफ्ता सॉफ्ट डाइट पर ही रखा जाता है। सर्जरी के 14 दिन के बाद टांके काटने के लिए बुलाया जाता है। इस वक्त मरीज की बायोप्सी रिपोर्ट भी देखी जाती है ताकि भविष्य के लिए चीजें तय की जा सकें। डिस्चार्ज के बाद घाव को आमतौर पर किसी ड्रेसिंग की आवश्यकता नहीं होती है जब तक कि घाव से कुछ निकले सर्जरी के बाद 3 महीने तक एब्डोमिनल बाइंडर पहनने की सलाह दी जाती है। छुट्टी के बाद चलने और हल्की गतिविधियों की सलाह दी जाती है। अगर डिस्चार्ज के वक्त मरीज को सारी बातें पूरी तरह से न भी समझाई जाए तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर को संपर्क करें ताकि वो आपको अच्छे से सुझाव दे सकें।