पानीपत: अनेक व्यक्तियों की प्रवृति होती है कि वे आधा भरे गिलास को आधा खाली के रूप में देखते हैं, आधा भरा नहीं। किसी परिस्थिति को जब हम देखते हैं तो आम प्रवृति उसके अच्छे पक्ष को देखने की बजाय, उसके बुरे पक्ष को देखने की होती है। कोई भी परिस्थिति इतनी खराब नहीं होती कि उसमें इंसान को प्रभु का कृतज्ञ होने का कोई भी कारण न मिले। हर किसी परिस्थिति में एक आशा की किरण थी। यह मनोवृति सही है और इससे बहुत सा समय चिंता, उदासी, निराशा या तनाव में बीतने से बचता है। इसकी बजाय, अपने आध्यात्मिक लक्ष्य पर टिके रहकर, यह समय हम प्रभु को पाने में लगा सकते हैं।
शिकायत करते हैं तो हम अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते हैं
जब भी हम अपनी परिस्थिति पर खीजते हैं या उसकी शिकायत करते हैं तो हम अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते हैं। दो व्यक्ति एक ही पार्टी में जाते हैं। एक अपना समय वहाँ उपस्थित सभी व्यक्तियों में गलतियां ढूंढने में लगा देता है, भोजन की शिकायत में लगा देता है और वह असंतुष्ट रहता है क्योंकि उसकी उम्मीद पूरी नहीं होती है। वहीं, दूसरा व्यक्ति वहाँ उपस्थित लोगों से मिलकर खुश होता है और वहां परोसे गए व्यंजनों में से अपनी पसंद की चीज़ों का आनंद उठाता है। दोनों एक ही वातावरण में हैं। एक देख रहा है कि क्या-क्या कमियाँ हैं और दूसरा देख रहा है कि वहाँ क्या-क्या अच्छा और आनंदमयी है। जब वे दोनों पार्टी से जाएँगे तो एक कहेगा कि उसे बहुत खराब लगा जबकि दूसरा कहेगा कि उसे बहुत मज़ा आया। पार्टी के अंत में कौन अधिक प्रफुल्लित और खुशहाल महसूस करेगा?
अच्छाईयों पर अपना ध्यान दें और उनसे खुशी और आनंद पाएं
ऐसे ही, प्रतिदिन हम अनेक परिस्थितियों का सामना करते हैं। हम चुनाव कर सकते हैं कि हम बुराईयों को देखें और अपना बाकी बचा समय शिकायतों में और निराशा में गुजार दें या फिर हम अच्छाईयों पर अपना ध्यान दें और उनसे खुशी और आनंद पाएं। सकारात्मक और आध्यात्मिक बनने पर ध्यान देकर और आध्यात्मिक विचारों में समय लगाकर हम रूहानी तौर से विकसित हो सकते हैं। अगर हम अपना ध्यान उन नकारात्मक विचारों पर टिकाएँगे जो हमारे दिमाग में घूमते रहते हैं, तो हम अपना बहुमूल्य समय गँवा देंगे जो कि हम प्रभु की याद में गुजार सकते थे। हर चीज़ में अच्छाई देखो। जब हम कठिनाईयों का सामना करें, तब भी हम बेहतर पक्ष को देख सकते हैं और अपने बहुमूल्य इंसानी जीवन का सर्वोत्तम लाभ उठा सकते हैं।