Panipat News सांग में पंडित विष्णु दत्त ने सुनाया पूरणमल का किस्सा

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 खरखौदा। शहर के छपडेश्वर धाम मंदिर में चल रहे सांग में पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने पूरणमल का रागिनियो के माध्यम से किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि पंजाब राज्य के सियालकोट शहर में राजा सुलेमान राज किया करते थे। उनकी पत्नी इंछरादेह से कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने उनकी बहन नूनादेह से विवाह कर लिया। दूसरे विवाह से भी राजा को जब कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ गुरु गोरखनाथ के पास पहुंचे। गुरु गोरखनाथ ने राजा को आशीर्वाद दिया कि उनकी पहली पत्नी से एक पुत्र का जन्म होगा जिसका नाम उन्होंने पूरणमल रखना है। उसके साथी गुरु गोरखनाथ में राजा को चेतावनी दी कि पूरणमल को भौंरे में अदृश्य रखना। क्योंकि पूरणमल  इतना तेजस्वी और सुंदर होगा जिसे देखकर स्वर्ग कीअप्सराए उसे उठा कर ले जा सकती है। इस तरह पूरणमल के पैदा होने से लेकर 12 वर्ष तक शिक्षा व लालन पालन की व्यवस्था भौंरे में ही की गई। 12 वर्ष   के बाद पूरणमल को जब भौंरे से बाहर निकाला गया। कुछ वर्षों के पश्चात पूरणमल के रिश्ते आने शुरू हो गए लेकिन पूरणमल ने विवाह करने से इंकार कर दिया। एक दिन राजा ने पूरणमल को उसकी छोटी मां (मौसी) के पास आशीर्वाद लेने के लिए भेजा तो पूरणमल को देखकर उसकी मौसी उसे पर आसक्त हो गई। जब पूरणमल अपनी मौसी को कहता है कि वह उसका पुत्र है लेकिन उसकी मौसी नहीं मानती और राजा को पूरणमल द्वारा बेहदबी का इल्जाम लगा देती है। राजा भरी सभा में पूरणमल को अपनी मौसी से बेअदबी करने की मौत की सजा सुना देते हैं। जल्लादों को हम दिया जाता है कि जंगल में ले जाकर पूरणमल को मार दें और सबूत के तौर पर उसकी दोनों आंखें व खून से भरा कटोरा लेकर आए। जंगल में जल्लादों ने पूरणमल की दोनों आंखें निकाल ली और उसे कुएं में धकेल दिया। कुछ देर के बाद गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ उसे कुएं के पास से गुजर रहे थे। वह पानी पीने के लिए वहां पर रुक गए। उन्होंने कुएं से  आवाज सुनी तो पूरणमल को कुएं से बाहर निकाल लिया गया। गुरु गोरखनाथ ने पूरणमल की आंखों को अपने तप बल से ठीक कर दिया और अपना शिष्य बनाकर चौरंगी नाथ का नाम दिया। इस तरह भक्त पूरणमल ने अपना संपूर्ण जीवन बाबा चौरंगी नाथ सन्यासी के रूप में व्यतीत किया। सांग को सुनने के लिए क्षेत्र के हजारों लोगों ने आनंद उठाया। इस मौके पर बाबा मोहन दास द्वारा श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया गया।