Panipat News यदि श्रावण के महीने में वर्षा नहीं होती है तो धरती सूख जाती है; फिर न पानी मिलता है न भोजन। इसलिए बहुत आवश्यक है कि श्रावण-भाद्रपद में बारिश हो। अगर देखा जाए तो साल भर की बारिश श्रावण-भाद्रपद में हो जाती है। बारिश से प्रकृति खिल उठती है। जैसे प्रकृति खिल उठती है वैसे ही भगवान शंकर की आराधना करके हम भी खिल उठते हैं और प्रसन्न हो जाते हैं।
हमारे पुराणों में कहा गया है “अलंकार प्रियो विष्णु अभिषेक प्रियः शिवः” । आप देखेंगे कि मंदिरों में भगवान विष्णु हमेशा सजे-धजे रहते हैं, भगवान विष्णु को सजाने में आनन्द आता है। मगर शंकर जी अभिषेक से प्रसन्न होते हैं। इसीलिए लोग शंकर जी पर ही जल चढ़ाते हैं, लोग विष्णु भगवान के मंदिर में जल नहीं चढ़ाते । शंकर जी सारी प्रकृति में निहित हैं । कहते हैं, “ब्रह्माण्ड व्याप्त देहाय” माने उनका शरीर इस सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। इसलिए उनके ऊपर जल की वर्षा भी ब्रह्माण्ड ही करता है ।
सावन के महीने में इस सारी पृथ्वी का अभिषेक होता है। सब-कुछ धुल जाता है और पृथ्वी खिल उठती है। ये भूमि भगवान के पैर हैं और आकाश, नक्षत्र, तारे सब शंकर जी के गले के हार हैं। शंकर जी स्वयं ही अपना अभिषेक कर रहें हैं। सावन के महीने में सारी प्रकृति ईश्वर के रस में डूब जाती है। जब प्रकृति परमात्मा के रस में डूबती है तब मनुष्य को भी उसमें डूबना आवश्यक है। इसीलिए सावन के महीने में शंकर जी की आराधना की जाती है ।
ऐसी कथा प्रचलित है कि एक बार पार्वती जी भगवान शंकर से पूछती हैं कि “हम परब्रह्म की गति कैसे प्राप्त करें?” तब भगवान शंकर एक बहुत सुन्दर बात कहते हैं कि अपने दिल में एक सुर चल रहा है। आपके भीतर एक अनहद नाद हो रहा है, मौन में बैठकर उस नाद को सुनें । मान लीजिये यदि आपमें उसकी क्षमता नहीं है और आप वह नहीं सुन पा रहे हैं तो ज़रा चुप रह कर देखें आप पाएंगे कि अपने भीतर ही एक नाद, एक अभग्न-अटूट शब्द चल रहा है । उस आवाज़ को सुनते-सुनते आप ध्यानस्थ हो सकते हैं ।
आज के युग में तो एयर कंडीशन या पंखा चलता है, उसकी आवाज़ सुनते-सुनते भी आप ध्यान में जा सकते हैं । कभी किसी भी झरने के पास बैठ कर आँखें बंद करके उस झरने की आवाज़ सुनें । आज कल तो आप ये घर पर भी कर सकते हैं। घर में ही एक छोटा सा पानी का झरना लगा लीजिये और उसको सुनते-सुनते थोड़ी देर ध्यान में बैठ जाइए । कहते हैं जो इस शब्द में स्नान कर लेता है वह परमब्रह्म की ओर चल पड़ता है। जो इस अभग्न नाद को सुनने में निपुण हो जाते हैं, उनके अन्दर की बाकी सारी आवाजें शांत हो जाती हैं और वे आनंदमयी परब्रह्म की अपनी चेतना में लौट जाता है।
पुराणों में कहते हैं कि प्रकृति श्रावण मास में होने वाली रिमझिम वर्षा से शंकर जी का अभिषेक करती है। शंकर माने जो सबको शुभ करने वाले हैं, जो सबका मंगल करने वाले हैं। इसलिए सबका मंगल हो ऐसी कामना से श्रावण मास में रुद्रपूजा करते हैं।
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