- 75वें निरंकारी संत समागम में सद्गुरू माता ने कहा कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत विवेकपूर्ण जीवन जीकर ही संत वंदनीय कहलाते हैं
आज समाज डिजिटल, पानीपत :
पानीपत। हमें परमात्मा को प्रतिपल स्मरण करते हुए मानवीय गुणों से युक्त जीवन जीना चाहिए। उक्त उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में सतसंग के मुख्य सत्र में लाखों की संगत को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। सतगुरु माता ने कहा कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त जब संत विवेकपूर्ण जीवन जीते हैं तभी वास्तविक रूप में वह वंदनीय कहलाते हैं। फिर वह पूरे संसार के लिए उपयोगी सिद्ध हो जाते हैं। ऐसे संत महात्मा ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति का स्वरूप बन जाते हैं और अपने प्रकाशमय जीवन से समाज में व्याप्त भ्रम-भ्रांतियों के अंधकार से मुक्ति प्रदान करते हैं।
हृदय में किसी के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न नहीं होता
ज्ञान के दिव्य चक्षु से संत महात्माओं को संसार का हर एक प्राणी उत्तम एवं श्रेष्ठ दिखाई देता है और समदृष्टि के भाव को अपनाते हुए हृदय में किसी के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न नहीं होता। जीवन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए सद्गुरू माता ने कहा कि जीवन का हर एक क्षण अमूल्य है जिसे व्यर्थ में न गंवाकर उसका सदुपयोग करते हुए सकारात्मक भावों से युक्त जीवन जिएं। अपने परिवार एवं समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए एक कदम आगे बढक़र स्वयं का आत्मविश्लेषण करे और अपने आपको और बेहतर बनाएं।
हम एक आध्यात्मिकता से युक्त जीवन जीने के लिए मनुष्य तन में आए हैं
वास्तव में हम एक आध्यात्मिकता से युक्त जीवन जीने के लिए मनुष्य तन में आए हैं, इस बात को प्रमाणित करते हुए ‘रूहानियत और इन्सानियत संग संग’ वाला सार्थक जीवन जियें। सच्चाई का यह दिव्य संदेश युगों युगों से संतों द्वारा दिया जा रहा है जिसका वर्तमान स्वरूप यह मिशन है। संत निरंकारी मिशन केवल एक रातोरात का सफर नहीं अपितु गुरुओं और संत महात्माओं के बरसों बरस के तप-त्याग का ही परिणाम है कि आज इसका इतना विस्तृत स्वरूप दृष्टिगोचर हो रहा है। जिस प्रकार सूर्यमुखी का पुष्प सूर्य की ओर ही उन्मुख रहता है उसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी संत ज्ञान की दिव्य ज्योति में स्वयं को प्रकाशित रखते हैं और दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।