पानीपत। परेशानियों से भागना आसान होता है,हर मुश्किल ज़िन्दगी में एक इम्तिहान होता है, हिम्मत हारने वाले को कुछ नहीं मिलता ज़िंदगी में, मुश्किलों से लड़ने वाले के क़दमों में ही तो जहां होता है।। रूढ़िवादी मान्यताओं और पुरुष प्रधान विचार को महिलाएं अब चुनौती दे रही हैं और हर क्षेत्र में अपने हुनर को आजमा रही हैं। महिलाएं सफलता की नई नई मिसालें गढ़ रही हैं। ऐसी ही एक अनूठी और प्रेरणादाई मिसाल पेश की है जीटी रोड स्थित मॉडल संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल की अध्यापिका मधु शास्त्री ने। अध्यापिका मधु शास्त्री ने एक शून्य स्तर से अपने करियर की शुरुआत की थी। इनका संघर्ष जिंदगी की हर कसौटी पर इन्हें आजमाता रहा और ये अपने हिम्मत और जुनून से हर कसौटी पर खरी उतरती रही।
जब गड़बड़ा गई घर की आर्थिक स्थिति
मधु शास्त्री बताती हैं कि श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ (विश्वविद्यालय), नई दिल्ली से इन्होंने एमए संस्कृत और बीएड की। खरखोदा के गांव बड़ा थाना में इनकी शादी हुई, मधु के पिता का खुद का प्रकाशन का व्यवसाय था और वैदिक पुस्तकें प्रकाशित करते साथ ही एक पत्रिका भी चलाते थे, उन्ही की प्रेरणा से मधु के पति राजेंद्र सिंह शास्त्री ने भी प्रकाशन कार्य और स्टेशनरी का कार्य शुरू किया। वर्ष 1994 में पानीपत के नूरवाला स्थित गवर्नमेंट मॉडल स्कूल में मधु शास्त्री की जॉब लगी। इसी बीच पति को व्यवसाय में भी भारी घाटा हुआ, जिसके चलते घर की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई। पति और दोनों बच्चों के साथ मधु शास्त्री ने दिल्ली से नूरवाला (पानीपत) ही शिफ्ट होने का निर्णय किया और नौकरी के साथ घर परिवार को संभालते, हुए उन्होंने पंजाबी बोलने वाले बच्चों को हिंदी के स्वर व्यंजन सीखकर ही संस्कृत भाषा में रुचि उत्पन्न की। 25 जुलाई 2005 में इनका स्थानांतरण पानीपत के ही जीटी रोड स्थित मॉडल संस्कृति स्कूल में हो गया।
खस्ता हाल किराए के कमरे से की शुरुआत
एक छोटे से किराए के खस्ता हाल कमरे में परिवार सहित रहना शुरू किया, जहां आसपास का वातावरण अच्छा नहीं था, इस विपरित परिस्थिति में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने घर के पास ही एक फैक्ट्री के शेड को किराए पर लिया और कुछ बैंच और कुर्सियां, मेज़ खरीदकर ट्राई बेस पर एक छोटे से निजी स्कूल की शुरुआत की, जिसकी फीस भी बहुत कम रखी गई। शुरू में बहुत दिक्कतें आई। परिस्थितियां चाहे जो भी रही हों उन्होंने ना ही हिम्मत हारी और ना ही पीछे मुड के देखा। काफी मेहनत और मशक्कत के बाद पहली कमाई तीस रुपए हुई, जिसके बाद हौसला और बढ़ा। फिर 1997 में विभिन्न संघर्षों के बीच अपनी 220 जगह खरीदी और वहां स्कूल की नई शुरुवात की। अत्यधिक आर्थिक तंगी के बावजूद भी उन्होंने उसी स्कूल में बच्चों को निशुल्क ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। उनकी मेहनत और लगन का परिणाम रहा कि अभिभावक उनसे प्रभावित हुए और धीरे धीरे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़नी शुरू हुई। अपनी नौकरी भी, बच्चों को भी संभालती और पति राजेंद्र सिंह शास्त्री के साथ निजी स्कूल को चलाने में भी जी तोड़ मेहनत की।
शादी के बाद बहुओं को भी आगे पढ़ाया
मधु ने बताया कि वो अपने दोनों बेटों भास्कर प्रकाश (इलेक्टिकल इंजीनियर) और निशांत (एमए योग) को नौकरी में नहीं भेजना चाहती थी। उनकी इच्छा थी उनके दोनों बच्चे स्व रोजगार करें और औरों को रोजगार देने में समर्थ बनें। मधु बताती हैं कि अब नूरवाला में ही उनके दो स्कूल है एवी पब्लिक स्कूल और एमएवी पब्लिक स्कूल। उनके पति और दोनों बेटे बहुएं ये स्कूल चला रहे हैं। मधु बताती हैं कि उनकी बड़ी बहु अंजलि ने शादी के दौरान एमए की हुई थी। शादी के बाद उन्होंने अपनी बड़ी बहू को बीएड, नेट, जेआरएफ, सीटेट, यूपीटेट, एचटेट सभी में उत्तीर्ण करवाकर पीएचडी (संस्कृत भाषा) में सफल बनाया। वहीं, छोटी बहू ऋतु जो 12वीं पास थी, उसको बीएससी, एमएससी फिजिक्स और बीएड करवाई। मधु ने बताया कि विभिन्न संघर्षों के बीच अपना जो सपना वो पूरा नही कर पाई, वो अपनी बहुओं के जरिए साकार होते देख रही हैं। मधु बताती है कि एक किराए के कमरे से उन्होंने बच्चों व पति के साथ एक नई संघर्षशील जिंदगी जीने की शुरुआत की थी, आज खुद का घर है, खुद के 2 स्कूल हैं, बेटे – बहू सब वेल सैटल्ड हैं। अगर हालातों से समझौता करती तो ये सब संभव ना होता। तभी नारी शक्ति के लिए किसी ने सही कहा है कि
“वजूद अपना भुलाकर कई किरदार निभाती है,
एहसान मानों औरत का जो घर को स्वर्ग बनाती है।।”
समाज सेवा में भी सक्रिय
इसके साथ ही मधु शास्त्री प्रो अर्जुन कादियान द्वारा संचालित रथ फाउंडेशन से जुड़कर समाज सेवा के कार्यों में अहम योगदान दे रही हैं। साथ ही वो वैदिक विधि से हवन करवाने में भी निपुण हैं और बिना दक्षिणा के हवन करवाती हैं। वहीं बिना दक्षिणा के हवन कामयाब नहीं होता तो ऐसा सोचकर जो लोग दक्षिणा देते हैं, उस दक्षिणा को मधु गौशाला में गौमाता की सेवा में व्यय करती हैं। लोगों को ज्यादा से ज्यादा हवन के प्रति जागरूक करने के लिए वो सब सामग्री खुद से लेकर जाती हैं। उनका कहना है कि हवन करना उनका प्रोफेशन नहीं है, उनका उद्देश्य वातावरण में सिर्फ शुद्धता फैलाना है। वैदिक विचारधारा से ओतप्रोत मधु शास्त्री आर्य समाज के कार्यक्रमों में तन मन और धन से सहयोग करती हैं। कक्षा छह से 11वीं तक आर्य कन्या गुरुकुल दाधिया, अलवर राजस्थान में अध्ययन करते हुए प्रेरणा स्त्रोत व आदर्श आचार्या प्रेमलता शास्त्री रही। उन्हीं की सादगी, कठोरता व ईमानदारी मधु शास्त्री के जीवन पर प्रभावी है। मधु का कहना है कि मेरे प्राण रहते उन्हीं को स्मरण रखूंगी और उनके आदर्शों का पालन करूंगी।
योगभ्यास से बीमारियों को ठीक किया
मधु शास्त्री की खासियत है कि वो किसी भी काम को कभी बोझ नहीं समझती, रिटायरमेंट के नजदीक उम्र होने के बावजूद उनकी स्फूर्ति बेमिसाल है। इसका श्रेय वो योगभ्यास को देती हैं। मधु बताती हैं कि वर्ष 2014 में उनका एक्सीडेंट हुआ था, जिसके बाद वो भूलने लगी थी, नींद नही आती थी और कभी कभी दिखाई देना बन्द हो जाता था। तो उन्होंने अपने आपको ठीक करने के लिए योग को चुना और 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा होने के बाद से वो लगातार सुबह शाम योगभ्यास करती हैं। विशेषकर कपालभाती। ऐसे ही योग से उन्होंने अपने गर्भाशय में बनी गांठों को तीन माह में ठीक कर लिया, जिससे उनको सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ी। अब उन्होंने अपने घर में ही योग क्लासेस शुरू की हैं। मधु कहती हैं कि पति राजेंद्र सिंह शास्त्री का पूर्ण सहयोग और समर्पण ही उनका मार्ग प्रशस्त करता है।
संदेश
अपने जीवन की सीख और अनुभव से मधु शास्त्री ने एक संदेश समाज को दिया कि