- पाइट में चलो थियेटर उत्सव के तीसरे दिन एनएसडी की रेपर्टरी टीम का अद्भुत मंचन
(Panipat News) पानीपत। समालखा स्थित पानीपत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलोजी (पाइट) में चलो थियेटर उत्सव के तीसरे दिन लैला मजनूं नाटक का मंचन हुआ। मुहब्बत की शायरी को अभिनेताओं ने मंच पर जीवंत उतार दिया। अब तक की सुनी और देखी कहानियों से अलग बने इस लैला मजनूं नाटक ने कई सवालों पर रोशनी डाली। जैसे आत्मा का आत्मा से, शरीर का शरीर से या शरीर का आत्मा से प्यार। अंत में लैला ने जब देखा कि मजनूं तो दुनियावी मिलन से ऊपर खुदा की रोशनी से लीन हो गया है, तब वह उसे छोड़ गई। आखिर में एक चीख सुनाई दी। वह किस रूह की चीख थी, सब यह सोचते रह गए।
इस्माइल चुनारा द्वारा लिखित काव्यात्मक शैली में है यह नाटक। बहु स्तरीय अर्थ हैं इसमें। लैला मजनूं के जो किस्से हम नौटंकी या लोक कथा के माध्यम से जानते या सुनते थे यह उससे एकदम अलग है। नाटक में लैला एक जगह कहती है -‘काश, मैं सिर्फ एक कहानी होती।’ यह सिर्फ कहानी ही है या फिर जीवन का सत्य भी है? सत्य भी उस रूप में सत्य नहीं है जिस रूप में हम सत्य को जानते रहे हैं। इस नाटक का निर्देशन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया है।
रास कला मंच सफीदो के निदेशक रवि मोहन ने बताया कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा रंगमंडल की रेपर्टरी टीम ने मंचन किया। इस अवसर पर पाइट के चेयरमैन हरिओम तायल, वाइस चेयरमैन राकेश तायल, बोर्ड सदस्य राजीव तायल, बोर्ड सदस्य शुभम तायल, डीन डॉ.बीबी शर्मा व अलग-अलग सामाजिक संस्थानों के सदस्य मौजूद रहे।
नाटक के बारे में
यह मोहब्बत की एक ऐसी शायरी है जिसमें लैला मजनूं के अफसाने को रिवायती शायरी और ड्रामे के अंदाज में बयां किया जा रहा है। इस दास्तान की सरसरी बैकग्राउंड बताता है कि कैसे इन दो जवान दिलों में प्यार पनपा। लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कैस पर किसी बुरी रूह का साया है। नाटक में आगे हम लैला के वाल्देन को यह बात करते हुए पाते हैं कि कैस और लैला का मिलन नहीं हो सकता।
कैस उदासी के दलदल में डूबने लगता है। उसके वालिद उसे इस दर्द से निजात दिलाने और अल्लाह की दुआ पाने के लिए ज़ियारत पर मक्का ले जाते हैं। लेकिन वह काबा में फूट-फूट कर रोने लगता है। वह भले बुरे का भेद न जान बेतरतीब दूर वीरानों में भटकने लगता है। उसे लोग मजनूं कहने लगते हैं। लैला की शादी शहजादे इब्ने सालिम से हो जाती है। वक्त बीतता है। इब्ने सालिम की मौत हो जाती है।
लैला अब कैस को खोजने के लिए निकल पड़ती है। लेकिन जब वह उसे खोज लेती है तो उसे महसूस होता है कि जिससे वह मुहब्बत करती थी वह कैस कब का फना हो गया है। उसकी जगह एक नए कैस ने ले ली है। अब लैला के उसी अक्स से मुहब्बत करता है जो उसके दिल में मौजूद है। गमगीन लैला तब कैस को छोड़ देती है क्योंकि वह इस दुनियावी जिंदगी के परे मुहब्ब्त और रोशनी की जिंदगी में दाखिल हो गया है। लैला मर जाती है, कोरस उसे उसके अंज़ाम तक पहुंचाता है। दूर एक दर्दनाक चीख सुनाई देती है जो या-हबीबी पुकारने के लिए भी तरसती है। वह किसकी रूह है?