अनुरेखा लांबरा, पानीपत। आधुनिक नारियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, एक तो वह जो गृहिणी हैं, दूसरी नौकरीपेशा या बिजनेसमैन। यहां तीसरे वर्ग का जिक्र करना भी लाजमी है, ये वो महिला वर्ग है, जो एक नौकरीपेशा महिला होने के साथ एक कुशल गृहिणी की भूमिका में भी अव्वल हैं। अलबत्ता नौकरीपेशा और गृहिणी इस दोहरी भूमिका को बखूबी निभाना कितना कठिन है, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा पाता।
घर व स्कूल की जिम्मेदारियां भी सफलतापूर्वक निभा रही है
हौसला..जुनून.. हिम्मत और ना हारने का जज्बा…चाहे कितनी भी बाधाएं आ जाएं… लक्ष्य एक कि हम सब मिलकर आगे बढ़ें और जिले का नाम रोशन हो। इसी सोच के साथ हमेशा आगे बढ़ने वाली कृष्णपुरा स्थित सदानंद बाल विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रधानाचार्या सुधा आर्य आज महिलाओं के लिए मिसाल हैं जो शादी और बच्चों की जिम्मेदारी के बाद अमूमन नौकरी छोड़ देती हैं और उसके बाद चारदिवारी तक ही अपनी जिंदगी को समेट कर रख देती हैं। इसके विपरित सुधा आर्य के पास भी बाकी गृहिणियों की तरह काफी जिम्मेदारियां थीं, लेकिन उनकी मेहनत, लगन और सही सोच ने उन्हें आज इस मुकाम तक पहुंचाया है जहां वे अपने घर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ स्कूल की जिम्मेदारियां भी सफलतापूर्वक निभा रही है।
जीरो एक्सपीरियंस के बावजूद संभाली कमान
सुधा आर्य की शैक्षणिक योग्यता एमए बीएड है। सुधा आर्य की शादी वर्ष 2003, जून में राकेश सैनी के साथ हुई। सुधा के ससुर स्व. सूरज भान सैनी ने आज से तकरीबन 50 वर्ष पूर्व एक छोटे से पौधे के रूप में सदानंद स्कूल की कलम लगाई थी, जो आज एक बड़े वट वृक्ष के रूप में तब्दील हो चुका है। सुधा के पति राकेश सैनी (स्कूल मैनेजर) भी अपने पिता के साथ स्कूल की जिम्मेदारियों में उनके सहयोगी बने। वर्ष 2014, सितम्बर में सुधा के ससुर का देहावसान हो गया, तो उसके बाद सुधा जो एक आम गृहिणियों की तरह ही अपने घर, परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियां निभा रही थी, जिसको कोई स्कूल प्रबंधन संबंधी किसी प्रकार का कोई अनुभव नहीं था। ससुर के जाने के बाद उस जिम्मेदारी को भी अपने कंधों पर ले लिया और एक जीरो एक्सपीरियंस से स्कूल प्रधानाचार्या के तौर पर स्कूल ज्वाइन किया, लगन और मेहनत से जो आज एक बेहतरीन और अनुभवी प्रधानाचार्या साबित हो रही हैं।
सुलझी हुई सरल और सकारात्मक सोच की धनी
सुधा बताती हैं कि कठिनाइयां और संघर्ष तो हर स्त्री के भाग्य में लिखे होते हैं, चाहे वह गृहिणी हो या नौकरीपेशा। नौकरी करने वाली स्त्रियों को भी घर और ऑफिस दोनों को ही संभालना पड़ता है, बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है, अपने परिवार के साथ समय बिताने का भी समय नहीं होता उनके पास। इसलिए वह घर-बाहर दोनों जगह जूझती हैं। ऐसे ही एक गृहिणी से वर्किंग वुमन बनना सुधा के सामने भी बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन सुधा एक सुलझी हुई, सरल और सकारात्मक सोच की धनी महिला है। उन्होंने स्कूल और घर दोनों की ही जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने के लिए एक गजब का सामंजस्य स्थापित किया। सुधा बताती हैं कि पहले वह कभी कभार स्कूल की प्ले वे विंग में जाती थी, पर अचानक से इतनी बड़ी जिम्मेदारी, जिसका अनुभव भी नहीं। लेकिन सुधा ने हार नहीं मानी।
राज्य स्तर पर टॉप टेन में जगह बनाते है बच्चे
सुधा बताती है कि स्कूल में एकदम से बड़े बच्चों को संभालना चुनौती भरा कार्य था। सुधा और राकेश के दो बेटे हैं, उनके बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़े हैं, जिन्होंने सुधा को आगे बढ़ने और बहुत कुछ सीखने में मदद की हैं। बहुत से तकनीकी चीजें सुधा ने अपने बच्चों से सीखी। इस स्कूल में करीब 50 शिक्षकों का स्टाफ है और एक हजार बच्चे इस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने आते है। कक्षा 12वीं में आर्ट्स, कॉमर्स, मेडिकल व नॉन मेडिकल चारों ही विषयों में बच्चे अच्छी मेहनत कर मेरिट सूची में स्थान हासिल करते है। स्कूल का वार्षिक परिणाम बेहद शानदार रहता है। बोर्ड परीक्षाओं में भी परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहता है। कक्षा 10वीं का रिकॉर्ड है कि हर साल इस स्कूल के बच्चे राज्य स्तर पर टॉप टेन में अपनी जगह जरूर बनाते हैं।
प्रयास रहता है कि बच्चे ईजी और कंफर्टेबल रहें
सुधा बताती हैं कि बच्चों को स्कूल टाइम में ही बहुत अच्छी तरह सभी विषयों को स्पष्ट किया जाता हैं, उनके प्रश्न, शंकाओं को मौके पर ही दूर किया जाता है। बच्चों को एक्स्ट्रा क्लासेस नहीं दी जाती। उनका मानना है कि पढ़ाई के ज्यादा दबाव से बच्चे तनाव और अवसाद का शिकार हो जाते हैं, जिससे बच्चों के तन और मन दोनों पर नकारात्म प्रभाव पड़ता है। उनका प्रयास रहता है कि बच्चे ईजी और कंफर्टेबल रहें। माइंड फ्रेश रहे, जिससे जितना पढ़े वो अच्छे से उनके दिमाग में छप जाए। सुधा का कहना है कि उनके ससुर के लगाए इस पौधे से अच्छे फल निकलते रहे उसके लिए उनका यही प्रयास है कि टॉप टेन की रेस से कभी बाहर नहीं निकलना, बल्कि और अधिक परिश्रम से स्कूल और जिले का नाम रोशन करते रहेंगे।
स्नेह और सख्ती का संतुलन
सुधा बताती हैं कि उनका बड़ा बेटा इसी स्कूल से 12वीं पास आउट है, जो अभी निट की तैयारी कर रहा है, छोटा बेटा इसी स्कूल में कक्षा 11वीं में मेडिकल का छात्र है। आम बच्चों की तरह इनके बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ते थे। वैसे ही शरारतें करते, शिकायतें आती, लेकिन हमेशा दूसरे विद्यार्थियों की तरह ही स्नेह और सख्ती का संतुलन रखते हुए उनको आगे बढ़ाया। अभिभावक भी अगर कोई शिकायत या कोई सवाल लेकर आते हैं तो हमेशा संतुष्ट होकर जाते है। मिलनसार व्यवहार के कारण सुधा घर और स्कूल दोनों ही कमान संभाले हुए है। सुधा बताती हैं कि उनके परिवार और स्टाफ का बहुत सहयोग मिलता रहा है और मिल रहा है। वो अकेली कुछ नहीं कर पाती। इस सफलता में परिवार और स्टाफ का भरपूर योगदान है। सुधा घरेलू काम भी करती हैं, अपने बच्चों और परिवार के सभी सदस्यों की जरूरतों का ध्यान भी रखती हैं, उनके साथ पर्याप्त समय भी बिताती हैं, जिससे उनका माइंड हमेशा फ्रेश रहता है।
परफेक्शन इनकी खासियत
एक परफेक्ट बहु..परफेक्ट पत्नी..परफेक्ट मां और परफेक्ट प्रिंसिपल को हर कार्य भी परफेक्ट ही चाहिए। परफेक्शन सुधा आर्य की खासियत है। हर कार्य परफेक्ट हो, बिना किसी उलझन और दिक्कत के। इसके लिए सुधा पहले उस कार्य का पूरा चार्ट बनाती हैं। कार्य को कैसे क्रियान्वित करना है, कहां, कब किस वस्तु, व्यक्ति की जरूरत है। सब पर सोच विचार कर चार्ट के मुताबिक कार्य किया जाता है। गौरतलब है कि अभी हफ्ते पहले ही स्कूल से अपना 50 वां वार्षिकोत्सव (गोल्डन जुबली) धूमधाम से मनाई।