- मोटे अनाज के लिए गेहूं और चावल की तुलना में कम पानी की जरूरत
पानीपत। उपायुक्त सुशील सारवान ने जानकारी देते हुए बताया कि सरकार मोटे अनाज को लेकर गंभीर है और हर स्तर पर मोटे अनाज को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है। खाने की आदतों में मोटे अनाज की वापसी लाने के लिए किसान को गेहूं, चावल की खेती की अपेक्षा ज्वार, बाजरा जैसी फसलों को तरजीह देनी होगी। इससे पानी का संकट हल होगा और आय में वृद्धि होगी। किसान की स्थिति में सुधार के साथ देश की अर्थ व्यवस्था को बल मिलेगा।
देश की अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार भी होगा
उपायुक्त ने बताया कि मोटे अनाज को अपने खाने में शामिल करने से हमें न सिर्फ स्वास्थ्य लाभ होगा, बल्कि हमारे किसान आर्थिक रूप से सशक्त भी होंगे। देश की अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार भी होगा। हमें मोटे अनाज को दोबारा थाली का हिस्सा बनाना होगा। सुशील सारवान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के बीच संभवत: मोटे अनाज ही वो फसलें हैं जो भविष्य की हमारे पोषणयुक्त खाने की जरूरतों को पूरा करेंगी। दुनिया साल 2023 को मिलेट इयर के रूप में सेलिब्रेट कर रही है और ये सेलिब्रेशन देश की कोशिशों का नतीजा है।
अपनी थाली में मोटे अनाज को फिर से जगह देनी होगी
उपायुक्त ने बताया कि हमें अपनी थाली में मोटे अनाज को फिर से जगह देनी होगी। इसके लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। मोटे अनाज की फसलों को उगाने के लिए गेहूं और चावल की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इसके लिए किसानो को जागरूक होना होगा। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि मोटे अनाज को सिर्फ उत्सव के रूप में मना लेने से कार्य पूर्ण नहीं होता बल्कि हमें अपने पोषण, खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्थान का लक्ष्य निर्धारित कर इसे पूर्ण करने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। उपायुक्त ने बताया कि शुष्क भूमि वाली फसलों को सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले अनाज, गेहूं और चावल की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। जलवायु परिवर्तन के बीच शायद मोटे अनाज ही वो फसलें हैं जो भविष्य की हमारे पोषणयुक्त खाने की आवश्यकताओं को पूरा करेंगी।
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