छुआछूत से मुक्ति और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे डॉ. भीमराव आम्बेडकर

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Panipat News/Dr. Bhimrao Ambedkar jayanti
प्रोफेसर दलजीत कुमार, इतिहास विभाग देशबंधु गुप्ता राजकीय महाविद्यालय पानीपत।

आज समाज डिजिटल, पानीपत :

 

पानीपत : डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर के महू नामक स्थान पर 14 अप्रैल 1891में अछूत मानी जाने वाली महार जाति में हुआ। इसलिए उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में व्यतीत हुआ। बाबा साहेब अंबेडकर सहित सभी निम्न जाति के लोगों को सामाजिक बहिष्कार, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता था। इनके जन्म का नाम भिवा, भीम जो बाद में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम से विख्यात हुआ। जिस अछूत बालक को पढ़ने तक का अधिकार भी नही था उसने अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के दम पर 32 डिग्रियां प्राप्त की साथ ही वे 9 भाषाओं के जानकार थे, विश्व के सभी धर्मों के रूप में पढ़ाई की थी। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से बीए, कोलम्बिया विश्वविद्यालय से एमए, पीएचडी, एलएलडी,लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमएससी, डीएससी व बैरिस्टर-एट-लॉ आदि की पढ़ाई की।

 

मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी

कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने डॉ अम्बेडकर को कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की स्थापना 1754 से आज तक वहां पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों में प्रथम स्थान दिया है। डॉ. अम्बेडकर एक विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, लेखक पत्रकार, समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी और शिक्षाविद् थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। प्रथम विश्व युद्ध की वजह से उनको भारत वापस लौटना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में नौकरी प्रारंभ की।

 

यहां भी डॉ अम्बेडकर को जातिवादी छुआछूत का सामना करना पड़ा

बाद में उनको सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी, लेकिन यहां भी डॉ अम्बेडकर को जातिवादी छुआछूत का सामना करना पड़ा। प्रयत्नशील सामाजिक सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर ने इतनी असमानताओं का सामना करने के बाद सामाजिक सुधार का मोर्चा उठाया। अंबेडकर जी ने ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का संगठन किया। सामाजिक सुधार को लेकर वह बहुत प्रयत्नशील थे। ब्राह्मणों द्वारा छुआछूत की प्रथा को मानना, मंदिरों में प्रवेश ना करने देना, दलितों से भेदभाव, शिक्षकों द्वारा भेदभाव आदि सामाजिक सुधार करने का प्रयत्न किया। डॉ भीमराव अंबेडकर छुआछूत की पीड़ा को जन्म से ही झेलते आए थे। जाति प्रथा और ऊंच-नीच का भेदभाव का वह बचपन से ही सामना करते आए थे।

 

छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया

डॉ भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया और इसके जरिए वे निम्न जाति वालों को छुआछूत की प्रथा से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने 31 जनवरी 1920 को अपने अख़बार ‘मूकनायक’ के पहले संस्करण में लेख लिखा कि अगर कोई इंसान, हिंदुस्तान के क़ुदरती तत्वों और मानव समाज को एक दर्शक के नज़रिए से फ़िल्म की तरह देखता है, तो ये मुल्क नाइंसाफ़ी की पनाहगाह के सिवा कुछ नहीं दिखेगा। 1920 के दशक में मुंबई में डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने भाषण में यह साफ-साफ कहा था कि “जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा वहां पर मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा परंतु जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा वहां मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा। ” वे दलित वर्ग के लिए मसीहा के रूप में सामने आए जिन्होंने अपने अंतिम क्षण तक दलितों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया।

 

बाबा साहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बने

सन 1927 में अछूतों को सार्वजनिक तालाब से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया।डॉ आंबेडकर कहा करते थे ‘अधिकार माँगने से नहीं मिलते बल्कि अपने अधिकारों को छीनना पड़ता है। 2 मार्च 1936 को भीमराव आम्बेडकर द्वारा अछूतों के मन्दिर प्रवेश के लिए नासिक के कालाराम मन्दिर में यह सत्याग्रह हुआ था। इस समय भारत में हिन्दुओं में ऊंची जातियों को जहां जन्म से ही मन्दिर प्रवेश का अधिकार था लेकिन हिन्दू धर्म मे अछूत जातियों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था। डॉ अम्बेडकर जीवनपर्यन्त छुआछूत व जातिवादी भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करते रहे। डॉ.अम्बेडकर ने आल इंडिया शीडयूल कास्ट पार्टी का गठन किया। इस पार्टी के साथ वे 1946 में संविधान सभा के चुनाव में खड़े हुए, और हार गए। अम्बेडकर को रक्षा सलाहकार कमिटी में रखा गया व वाइसराय एग्जीक्यूटिव परिषद में उन्हें लेबर मंत्री बनाया गया। बाबा साहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बने।

 

शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार

संविधान में देश के सभी नागरिकों को बराबर का दर्जा और हक दिलाने के लिए अनुच्छेद 14 का प्रावधान है, जिसके अनुसार किसी भी नागरिक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।सभी महिलाओं व 21 वर्ष आयु के सभी पुरुषों को संविधान लागू होते ही वोट का अधिकार दिया गया। संविधान के अनुसार हिन्दू पुरुषों को अपनी पत्नी के जीवित रहते केवल एक विवाह को कानूनी मान्यता देकर डॉ भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं के प्रति न्याय किया है।डॉ आंबेडकर ने अपने जीवन में शिक्षा को सबसे अधिक महत्व दिया और उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य समृद्ध हो सकता है। डॉ आंबेडकर का विचार था कि शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और किसी को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। शिक्षा बारे डॉ अम्बेडकर कहा करते थे कि शिक्षा तर्क सीखती है वे आगे कहते थे ‘शिक्षा शेरनी का दूध है जो भी पियेगा दहाड़ेगा’ यथार्थ में नव चेतना का अभ्युदय कराता है।

 

मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया

डॉ भीमराव अंबेडकर सन 1948 से मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित थे और वह 1954 तक बहुत बीमार रहे थे। डॉ अम्बेडकर ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।03 दिसम्बर, 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और धम्म उनके को पूरा किया और 06दिसम्बर,1956 को अपने घर दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली थी। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज “महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित”की जा रही है वहीं डॉ अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय को भारत सरकार द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। 1990 में डॉ अम्बेडकर को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि यदि अन्याय से लड़ते हुये आपकी मौत हो जाती है तो आपकी आने वाली पीढ़िया उसका बदला अवश्य लेगी किन्तु अन्याय सहते सहते यदि मर जाओगे तो आने वाली पीढ़िया भी गुलाम बनी रहेगी।हिम्मत इतनी बडी रखो के किस्मत छोटी लगने लगे। यदि आप मन से स्वतंत्र हैं तभी आप वास्तव में स्वतंत्र है। आज की युवा पीढ़ी को डॉ भीम राव अम्बेडकर से प्रेरणा लेनी चाहिए और किसी भी परिस्थिति में संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए।

– प्रोफेसर दलजीत कुमार, इतिहास विभाग देशबंधु गुप्ता राजकीय महाविद्यालय पानीपत।

 

 

 

 

 

 

 

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