Aaj Samaj (आज समाज),Panipat Famous Social Worker Saroj Ahuja, अनुरेखा लांबरा, पानीपत :
क्षीण नहीं, अबला नहीं,
ना ही वह बेचारी है,
जोश भरा लिबास पहने,
गर्व से चलती, आज की नारी है।
जमाना बदला है…वो दौर भी बदला है जब नारी को अबला, कमजोर समझ घर की चारदीवारी के दायरे में रहने की पेशकश की जाती रही है। आज समाज सेवा के क्षेत्र में सबसे आगे महिला संगठन हैं। आज की नारी न केवल अपना घर बल्कि समाज के प्रति अपने सामाजिक कर्तव्यों को भी बखूबी निभा रही है। आज हम आपको शहर की एक ऐसी महिला शख्सियत से रूबरू करवाते है जो उन तमाम गृहणियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, जो समझती हैं कि घर की जिम्मेदारियों के साथ समाज सेवा का जिम्मा उठाना बेहद कठिन है या उसमें संतुलन बनाकर चलना नामुमकिन है। शहर की प्रसिद्ध समाज सेविका सरोज आहूजा आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने घर परिवार के नियम कायदों को मानते हुए अपना नाम और पहचान बनाकर एक मिसाल पेश की है।
- विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार
- ऑल राउंडर हैं सरोज आहूजा, यूट्यूब पर कुकिंग रेसिपी करती है शेयर तो वहीं लेखन कला में भी है माहिर
- “हिन्दी की गूंज” नामक जापान से प्रकाशित होने वाली एकमात्र अंतरराष्ट्रीय पत्रिका की वार्षिक सदस्यता ग्रहण की
संक्षिप्त परिचय
सरोज आहूजा का जन्म 18 जुलाई 1951 को अहमदाबाद में हुआ था। बचपन, पढ़ाई, सब वहीं हुआ। उनकी स्कूलिंग नूतन कन्या विद्यालय से हुई। कॉलेज के दो साल बीडी कॉलेज से किए ही थे कि शादी हो गई। यहां सोचा था कि पढ़ाई पूरी करुंगी पर माताजी (सासू मां) ने मना कर दिया और कहा कि हमने कौन सा नौकरी करवानी है। अरमान दिल में ही रह गए, पर सरोज आहूजा ने हार नहीं मानी और अपने सपने को 2010 में पूरा किया। एक दुर्घटना में उनकी बैकबोन में फ्रेक्चर हो गया था, तो आठ माह के लिए बिस्तर पकड़ लिया था। पर उन्हें चैन कहां था। उन्होंने इस मौके का फायदा उठाते हुए एक प्राइवेट कॉलेज से अपनी बीए की पढ़ाई पूरी की।
सास की हर आज्ञा सिर माथे
सरोज आहूजा बताती हैं कि शादी के बाद ऐसे कई अवसर मिले जब वो कुछ कर सकती थी। उन्हें स्कूल से नौकरी के लिए कई ऑफ़र आए, परन्तु माताजी ने साफ मना कर दिया। सरोज ने बताया कि उनकी यहां 5 बहनें यानी ननद थीं। सरोज कभी भी ननद शब्द का प्रयोग नहीं करती। यही कहती हैं कि हमारी बहनें हैं और अगर मायके कोई बात हो तो मेरी बहन। वे सभी अध्यापिकाएं थीं और विभिन्न विद्यालयों में नौकरी करतीं थीं। माताजी कहते थे कि नौकरी के साथ बच्चों की परवरिश सही नहीं हो पाती, बच्चे भटक जाते है और इसलिए सरोज कभी नौकरी नहीं कर पाई।
हमेशा से था कुछ करने का जज्बा
आजादी के सफर में, अब
तंग गलियों का रुख मोड़ रही है,
प्रतिबंध की दीवारों को,
हौसलों के हथौड़े से वह तोड़ रही है।
पर कुछ करने का जज़्बा हमेशा मन में रहा। तब सरोज की एक सहेली ने उन्हें 1988-89 में विश्व हिंदू परिषद् से जोड़ा। कुछ वर्ष के बाद वो शहर की जानी मानी हस्ती प्रसिद्ध समाज सेविका कंचन सागर से मिली। कंचन सागर ने सरोज को इनरव्हील क्लब पानीपत मिडटाऊन से1998 में और नारी कल्याण समिति से 2000 में जोड़ा। सरोज हर प्रोजेक्ट में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं। उनका जज़्बा देखकर उनको 2003 में समिति का प्रधान बनाया। तब सरोज ने हर तरह के प्रोजेक्ट्स पर खूब काम किया और समिति का नाम बढ़ाया। दोनों संस्थाओं से जुड़ने के बाद उनका जीवन ही बदल गया। वो सुबह उठ जाती और घर के सारे काम कर लेती। खाना बना लेती, ताकि उन्हें कहीं जाना हो तो बाद में पीछे से घर में कोई परेशानी न हो और समय से घर आकर बच्चों को खाना खिलाती और बाकी काम भी देख लेती। ऐसे उन्होंने अपनी दिनचर्या ही बदल ली थी।
समाज सेवा की बढ़ी लग्न
सरोज आहूजा तब आर्य समाज से भी जुड़ी और वहां भी रोज़ शाम को जाती थी। ऐसे ही समाज सेवा के काम में वो ऐसी मग्न हुई कि धीरे धीरे 2003 -04 में कई संस्थाओं से जुड़ गई थी। उन्होंने बहुत अच्छे अच्छे प्रोजेक्ट भी किए। जैसे ब्लड डोनेशन, अंध विद्यालय में बच्चों को (चलने के लिए) स्टिक्स देना वगैरह। उन्हें हर जगह से भरपूर सम्मान भी मिला। तत्कालीन आई.जी. सुमन मंजरी को भी महिला दिवस पर आमंत्रित कर उन्हें सम्मान दिया व लिया भी।
पति के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भावना
त्याग की सूरत, ममता की मूरत,
तो कभी देवी का प्रतिरूप कही,
जैसी जिसने मांग करी,
वह ढलती उसके स्वरूप रही।
ऐसा करना हर महिला के लिए आसान नहीं होता कि समय और परिस्थिति के अनुसार वह अपने आपको ढाल ले। उसके लिए त्याग और हिम्मत चाहिए होती है, जो सरोज ने दिखाई। वर्ष 2005 में उनके पति बहुत अधिक बीमार हो गए थे, तब उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और उनकी नर्स बन गई। दिन रात उनकी सेवा में लगी रहती, पर कुछ हाथ न लगा और 2007 में यह परमात्मा में विलीन गए और वो हार गई। उनके अनुसार है उनके जीवन का बहुत बुरा दौर था यह।
पर उनका मानना है कि “हौंसले भी किसी हक़ीम से कम नहीं होते हर तकलीफ में ताक़त की दवा देते हैं।” तनाव भरे माहौल से निकलने के लिए हौंसला रख आगे बढ़ी और फिर से कंचन सागर ने उन्हें नारी कल्याण समिति से जोड़ा। बाद में इन्नरव्हील क्लब, पानीपत से भी जुड़ गई। वहां उन्हें सचिव पद लिया फिर 2016 में प्रधान पद पर आसीन हुई।
कुछ प्रोजेक्ट जिन पर सरोज ने किया काम
“तू कोशिश तो कर फिर से उड़ान भरने की, अपने मरे हुए ख़्वाबों में जान भरने की, तू बस हौंसला रख और मेहनत कर और ठान ले सारी दुनिया में अपना नाम करने की।” इन विचारों के प्रभावित सरोज ने विभिन्न संगठनों में विभिन्न पदों पर रहते हुए कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया और विभिन्न क्षेत्रों में जिले, प्रदेश व देश का नाम रोशन करने वाली प्रतिभाओं को सम्मानित किया। जिसमें मुख्य रूप से जैवलिन थ्रो खिलाड़ी नीरज चोपड़ा को सम्मानित किया। अंध विद्यालय में चिकित्सा शिविर लगाए, इ-बैंकिंग, पौधारोपण, निर्धन कन्याओं के विवाह, विभिन्न स्थानों पर जर्सी वितरण, प्रौढ़ शिक्षा, हॉबी क्लासिस, खाद बनानी सिखाई, गुड टच-बैड टच, विभिन्न विद्यालयों में चिकित्सीय शिविर, कई बच्चियों के घर टूटने से बचाए। ऐसे ही अनगिनत लोगों की आंखों से आंसू पोंछ कर उन के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास किया है।
उपलब्धियां
नारी कल्याण समिति से हर वर्ष बेस्ट कार्यकर्ता का अवार्ड मिलता है। इन्नरव्हील कल्ब के वार्षिक अधिवेशन में बेस्ट प्रेसिडेंट, बेस्ट सचिव का एवार्ड मिला। नारी शक्ति अवार्ड, वॉयस ऑफ़ पानीपत की ओर से महिला रत्न अवार्ड, रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड, अलग-अलग आर्य समाज की शाखाओं से मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित किया गया। विभिन्न राजकीय विद्यालयों से भी शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त और भी सम्मान और अवार्ड हैं, जिनकी फेहरिस्त बहुत लंबी है।
कविताएं एवं कहानी लेखन में रुचि
कविता और कहानी लेखन सरोज आहूजा का शौक बन चुका है। कहानी संग्रह पुस्तिका प्रकाशित होने वाली है। लेख और कविताएं विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। आजकल यूट्यूब पर कुकिंग वीडियो साझा कर रही हैं। अंकन गोष्ठी मंच से जुडी हुई हैं, जिसके तहत आयोजित काव्य गोष्ठी आयोजनों में अपनी कविताएं प्रस्तुत करती रहती हैं।
साहित्य संसद मंच, फ़ेसबुक पर भी उनकी कविताएं और कहानियां छप रहीं हैं। “हिन्दी की गूंज” नामक जापान से प्रकाशित होने वाली एकमात्र अन्तराष्ट्रीय पत्रिका की वार्षिक सदस्यता ग्रहण की है।
संदेश
सरोज आहूजा का कहना है कि जीवन में इतना तो संघर्ष कर ही लेना चाहिए कि अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए दूसरों का उदाहरण न देना पड़े।