Vijayadashami News, (आज समाज): भारतवर्ष पावन पर्वों और उत्सवों की भूमि है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरा मनाया जाता है। दशहरा नवरात्रि के नौ दिवसीय उत्सव का चरमोत्कर्ष है। नवरात्रि अर्थात नौ दिनों तक चिंतन मनन के पश्चात आध्यात्मिक शक्ति, पुरुषार्थ और पराक्रम के संचय से दैवी गुणों का संग्रहण करना। इसी दिन आदिशक्ति दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था।
भगवान राम के जीवन से गहरा संबंध
हमारे देश में जितने भी त्यौहार या उत्सव मनाए जाते हैं उन सबके भीतर गहरा अध्यात्मिक संदेश निहित है। दशहरा पर्व का मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन से गहरा संबंध है। भगवान राम का जीवन सांस्कृतिक मूल्यों एवं दिव्य गुणों का प्रतीक है। दूसरी ओर रावण नकारात्मकता, आसुरी प्रवृत्तियों का प्रतीक है। शास्त्रों का ज्ञाता होने के बावजूद भी जब मनुष्य के मानस पटल पर आसुरी प्रवृत्तियां का साम्राज्य हो जाता है तब उसका पतन निश्चित है।
घमंड ने किया रावण का विनाश
रावण शास्त्रों का महा विद्वान था। परंतु उसके अत्यधिक घमंड ने उसका विनाश कर दिया। हमारे मनीषियों का कहना है कि दशहरा अर्थात दस दुगुर्णों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा, चोरी करना इन दुगुर्णों पर विजय प्राप्त करने का संदेश देता है। यह असत्य पर सत्य की विजय का स्मरण कराता है। निरंतर विपरीत परिस्थितियों, संघर्षों,दुखों के बावजूद भी विजय आध्यात्मिक मूल्यों एवं सत्य निष्ठ व्यक्तित्व की ही होती है। इस अवसर पर मयार्दा पुरुषोत्तम श्री राम का पावन चरित्र हमें यही शिक्षा देता है। दैवी शक्तियों के समक्ष आसुरी शक्तियों को परास्त होना पड़ता है।
दशहरा नारी के अपमानकर्ताओं के विनाश का प्रतीक
यह पर्व न्याय की एवं नारी जाति के अपमानकर्ताओं के विनाश का प्रतीक है। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार विजयदशमी का यह पर्व क्षात्र शक्ति के पराक्रम,शौर्य का अर्जन करने का अवसर है। किसी भी राष्ट्र, देश अथवा समाज की क्षत्रिय शक्ति ही उसकी सुरक्षा कवच होती है। प्राचीन काल में राजा वर्षा ऋतु में अपने अस्त्रों शस्त्रों को अपने दुर्गों में रखते थे ताकि वर्षा के कारण उन में जंग न लग जाए। वर्षा ऋतु की समाप्ति के पश्चात दशहरे के पर्व पर उन शस्त्रों की पूजा एवं नवीनीकरण किया जाता था।
विजयदशमी क्षत्रिय शक्ति की उपासना का पर्व
यह शक्ति, शौर्य, पराक्रम को संचित करके राष्ट्र के आध्यात्मिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने का स्पष्ट संदेश देता है। मराठा रत्न शिवाजी ने भी इसी विजयदशमी के दिन औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध के लिए प्रस्थान करके सनातन संस्कृति के कालजयी मूल्यों की रक्षा की थी।विजयदशमी क्षत्रिय शक्ति की उपासना का पर्व है। समाज राष्ट्र की विनाशक शक्तियों का प्रतिरोध करने के लिए शक्ति अर्जन अनिवार्य माना गया है इसलिए विजयदशमी का यह उत्सव पराक्रम, पुरुषार्थ, शक्ति का संचय करके राष्ट्र के आध्यात्मिक कालजयी मूल्यों को सुरक्षित करने के लिए संकल्पित होने की बेला है।
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