उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनावों का मामला उलझने से सियासी हलकों में चिंता की लकीरे साफ दिखाई देने लगी हैं। विधान सभा चुनावों में अब महज एक साल का वक्त बचा होने के कारण पंचायत चुनावों के नतीजों से हवा का रुख पता चलने की पूरी उम्मीद है। माना जा सकता है कि यह चुनाव 2022 के सूबाई महासंग्राम में यूपी के देहाती इलाकों की तस्वीर साफ करने वाले हैं।
दरअसल पंचायतों के आरक्षण को लेकर मचा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। यूपी की भाजपा सरकार ने जिस आधार पर पंचायत आरक्षण की सूची जारी की थी उसके खिलाफ हाई कोर्ट ने फैसला कर दिया और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्ड पीठ ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण और आवंटन को फाइनल करने पर 15 मार्च तक रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने आरक्षण और आवंटन कार्रवाई रोकने को कहा है।
गौरतलब है कि 17 मार्च को यूपी सरकार पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की अंतिम सूची जारी करने वाली थी। 17 मार्च तक फाइनल आरक्षण लिस्ट आने के बाद 25-26 मार्च तक पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी कर देने की संभावना जताई जा रही थी, पर अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद पंचायत चुनाव की तारीखें और लंबी खिंच सकती हैं। बता दें कि साल 2015 में 59 हजार 74 ग्राम पंचायतें थीं, वहीं इस बार इनकी संख्या घटकर 58 हजार 194 रह गई है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार समेत सभी पक्षकारों को निर्देश देते हुए कहा कि पंचायत चुनाव सम्बंधी वर्ष 1999 के नियम 4 के तहत सीटों पर दिए जाने वाले आरक्षण को 15 मार्च तक अन्तिम रूप नहीं दिया जाएगा।
अजय कुमार की जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने यह फैसला लिया है। याची ने पंचायत चुनाव में दिए जाने वाले आरक्षण सम्बंधी 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती देकर कहा कि वर्ष 1999 के नियमों के तहत आरक्षण दिया जाना है जिसका नियम 4 रोटेशनल आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान करता है और इसके तहत सीटों का आरक्षण 1995 को आधार वर्ष मानकर किया गया था।
इसके बाद 16 सितंबर 2015 को जारी शासनादेश में जिलों, क्षेत्र व ग्राम पंचायतों की भौगोलिक सीमाओं में बदलाव की बात कहते हुए 2015 को आधार वर्ष मानने की जरूरत बताई गई। ऐसे में सीटों के आरक्षण के लिए 1995 को आधार वर्ष मानने का कोई कारण नहीं है। याची के वकील का कहना था कि इसके बावजूद 2015 के शासनादेश की अनदेखी कर मौजूदा चुनाव में आधार वर्ष 1995 के तहत ही सीटें आरक्षित की जा रही हैं, जो कानून की मंशा के खिलाफ है।
इस फैसले के बाद ही हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपीम कोर्ट में याचिका दाखिल हो गई है। सुपीम कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के लिए अब तक कोई डेट नहीं दी है इसलिए मामला आधार में ही लटका हुआ है। कोर्ट के चक्कर में फंसे पंचायत चुनावों ने सूबे के सियासी दलों की साँसे अंटका दी है। विपक्ष को इस बार बड़ी उम्मीद थी कि पंचायत चुनावों में वो भाजपा को शिकस्त दे कर विधानसभा चुनावों के लिए एक पुख्ता जमीन तैयार कर लेगी। समाजवादी पार्टी ने भाजपा का गढ़ बनाते जा रहे पश्चिमी यूपी को किसान आंदोलन के जरिए फतह करने की रणनीति पर पूरा काम कर लिया है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव रालोद के जयंत चौधरी के साथ पश्चिमी यूपी में ताबड़तोड कार्यक्रम कर रहे हैं।
दूसरी तरफ सूबे में फिर से खड़ी होने की कोशिश में लगी काँग्रेस भी पंचायत चुनावों के जरिए अपनी संगठनात्मक ताकत को तौलने की कोशिश में है। उधर सत्ताधारी भाजपा पश्चिमी यूपी के हालात से बहुत चिंतित है। पार्टी के तमाम विधायकों और सांसदों को किसानों का कडा विरोध झेलना पड़ रहा है। पंचायतों की आरक्षण सूची का पुननिर्धारण भी इस असंतोष से निपटने का ही एक जरिया था लेकिन हाई कोर्ट के फैसले ने इस मंसूबे पर पानी फेर दिया। अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने है कोर्ट के फैसले को बनाए रखा तो निश्चित तौर पर भाजपा के लिए हालात मुश्किल होने वाले हैं।
नाम से ज्यादा काम के भरोसे योगी! देश भर में अपनी आक्रामक छवि, भाषण शैली और चमकदार नाम के चलते भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज्यादा मांग वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गृह प्रदेश में काम के नाम पर चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं। अपनी सरकार के चार साल पूरा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच रख अगले चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। मुख्यमंत्री की कवायद से साफ है कि अगला विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उनके पास विकास का ही अचूक हथियार होगा जिसके भरोसे वो विपक्ष की चालों को भोंथरा करेंगे।
दूसरी ओर विपक्ष योगी सरकार पर लगातार हमलावर है। ,सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सहित तमाम बड़े नेताओं ने किसान आंदोलन के समय से ही लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर फोकस कर रखा है। अखिलेश यादव का कहना है कि सरकार ने कोई काम नहीं किया बल्कि फर्जी आंकड़ों से जनता को गुमराह करने की कोशिश की है। चार सालों में उत्तर प्रदेश को देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से ज्यादा कर देने के दावों के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के सालगिरह वाले जश्न की शुरूआत कर दी है। रिफार्म, परफार्म एंड ट्रांसफार्म को उत्तर प्रदेश का नया नारा बताते हुए उनका कहना है कि बीते चार सालों में प्रदेश की तस्वीर बदली है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बीते शुक्रवार को चार साल पूरे हो गए। गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण किया था। इससे पहले कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकारों का नेतृत्व कर चुके हैं। हालांकि इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री तीन साल से अधिक समय तक कुर्सी पर नहीं बैठा है।
चाल साल के कार्यकाल में निजी क्षेत्र के तीन लाख करोड़ रुपये के निवेश, 35 लाख नौकरियों, ईज आफ डूइंग बिजनेस में देश में 14 स्थान से उठकर दूसरे नंबर पर आने सहित कई उपलब्धियों के जिक्र के साथ मु यमंत्री योगी का दावा है कि पिछले चार साल में राज्य में कोई दंगा नहीं हुआ और सभी त्योहार शांतिपूर्वक मनाए गए। जबकि पहले उत्तर प्रदेश में कोई भी त्योहार शांतिपूर्वक नहीं मनता था। योगी आदित्याथ का दावा है कि आज उत्तर प्रदेश कई केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वन में देश में पहले स्थान पर काबिज हो चुका है। इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन, उज्ज्वला और किसान स मान निधि शामिल है। मु यमंत्री ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाकर चार लाख लोगों को सरकारी नौकरियां दी गयी हैं।
आगामी विधानसभा चुनावों में राम मंदिर को बड़ा भावनात्मक मुद्दा मानते हुए योगी सरकार इसके लिए भी विकास को ही हथियार बना रही है और मंदिर निर्माण के साथ उसका जोर रामनगरी अयोध्या के विकास पर है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उद्योग एवं विकास से महरूम अवध क्षेत्र के विकास के लिए राम का सहारा लेगी। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के साथ विकास की कई बड़ी परियोजनाओं के सहारे समूचे अवध क्षेत्र के पर्यटन स्थलों को लोगों का आकर्षण बनाने की योजना पर काम होगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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